Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    भारत से डराने वाली रिपोर्ट, देश का हर पांचवां किशोर डिप्रेशन का शिकार; दिल्ली के आंकड़ों ने भी किया हैरान

    Updated: Mon, 27 Oct 2025 08:23 AM (IST)

    एक नई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत में हर पांचवां किशोर डिप्रेशन से जूझ रहा है। दिल्ली के आंकड़े विशेष रूप से चिंताजनक हैं, जहां डिप्रेशन की दर राष्ट्रीय औसत से भी अधिक है। विशेषज्ञ इस स्थिति को लेकर चिंतित हैं और किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने और सहायता प्रदान करने की आवश्यकता पर बल दे रहे हैं।

    Hero Image

    अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। देश का हर पांचवां किशोर (10-19 वर्ष) मानसिक रूप से अस्वस्थ है। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 25 करोड़ किशोरों में से पांच करोड़ (करीब 20 प्रतिशत) डिप्रेशन, चिंता और बौद्धिक अक्षमता जैसी समस्याओं से प्रभावित हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बताया कि समस्या शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में गंभीर है, जो देश के भविष्य के लिए गंभीर चुनौती है। यूनिसेफ की ‘चाइल्ड एंड एडोलसेंट मेंटल हेल्थ सर्विस मैपिंग-इंडिया 2024’ और जीबीडी-2024 अपडेट के अनुसार, सात से 14 प्रतिशत किशोर डिप्रेशन, तनाव, चिंता और बौद्धिक अक्षमता जैसे विकारों से प्रभावित हैं।

    द इंडिया फोरम 2024 के अनुसार, कोविड-19 ने किशोरों में तनाव को 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ाया। इसकी प्रमुख वजह बढ़ता स्क्रीन टाइम का बढ़ना रहा, विशेषकर ऑन लाइन क्लास की अधिकता। यह अब भी है।

    2024 सिस्टेमेटिक रिव्यू (क्योरियस, मई 2024) में ग्रामीण क्षेत्रों के 30,970 स्कूली किशोरों में डिप्रेशन 21.7 प्रतिशत और चिंता 20.5 प्रतिशत पाई गई। दिल्ली को लेकर हुए 2024 क्रास सेक्शनल अध्ययन (पीएमसी, 2025) में शहरी किशोरों में चिंता 50.6 प्रतिशत, डिप्रेशन 24.2 से 39.3 प्रतिशत तक पाया गया है, करीब 10 प्रतिशत चिड़चिड़पन और झुंझुलाहट से ग्रसित पाह गए।

    यह स्थिति किशोरों के संपूर्ण मानसिक विकास (संज्ञानात्मक, भावनात्मक, सामाजिक) को बाधित कर रही है। इसका प्रमुख कारण अकेलापन, बढ़ता स्क्रीन टाइम, प्रदूषण, शोर, शहरी तनाव, प्रतिस्पर्धा और परामर्श सेवाओं की कमी है। इतनी बड़ी संख्या में किशोरों की मानसिक अस्वस्थता देश के भविष्य की सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक प्रगति के लिए चुनौती बनती जा रही है।

    राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएमएचएस 2015-16, 2024 अपडेट) के अनुसार, किशोरों में मानसिक विकारों की दर 7.3 प्रतिशत है (लड़के: 7.5 प्रतिशत, लड़कियां: 7.1 प्रतिशत)। 2025 अध्ययन (साइंस डायरेक्ट) में टियर-1 शहरों के 40 प्रतिशत किशोरों ने तनाव को मुख्य समस्या बताया। अध्ययन बताता है कि केवल 80 प्रतिशत किशोर (करीब 20 करोड़) संपूर्ण मानसिक स्वास्थ्य वाले हैं। इस मामले में क्षेत्रीय असमानताएं गंभीर हैं।

    बिहार में बौद्धिक अक्षमता (लड़कियां: 6.87 प्रतिशत), तमिलनाडु में डिप्रेशन (3.67 प्रतिशत) अधिक है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में कम साक्षरता और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी स्थिति को बिगाड़ रही है। 2024 उदया सर्वे (प्लास वन) में अविवाहित किशोरयों की तुलना में विवाहितों में डिप्रेशन 40-60 प्रतिशत अधिक पाया गया।

    यह भी पढ़ें- दिल्ली में नहीं थम रहा एसिड अटैक का कहर, महिलाओं की सुरक्षा पर गहराया संकट

    राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरकेएसके) और राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनएमएचपी) इसमें सुधार को प्रयासरत हैं, लेकिन स्कूलों में परामर्श सेवाओं की कमी बाधा है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्कूल आधारित मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रम से भारत अपनी युवा शक्ति को सशक्त बना सकता है।