आखिर दिल्ली में आज तक क्यों नहीं हुआ वन्यजीव परिषद का गठन? नुकसान होने पर लोगों को मुआवजा तक नहीं मिलता
दिल्ली में राज्य वन्यजीव परिषद का गठन न होने के कारण वन्यजीवों से होने वाले नुकसान पर मुआवजा नहीं मिलता। वन विभाग ने परिषद के गठन का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। परिषद वन्यजीवों के संरक्षण और विकास के लिए महत्वपूर्ण है। इसके न होने से कई तरह के नुकसान हो रहे हैं। पूर्व वन संरक्षक सीडी सिंह ने बताया कि केजरीवाल सरकार को प्रस्ताव भेजा गया था, पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

आखिर दिल्ली में आज तक क्यों नहीं हुआ इस परिषद का गठन? नुकसान होने पर लोगों को मुआवजा तक नहीं मिलता
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। इसे विडंबना कहें या प्रशासनिक अनदेखी... लेकिन राष्ट्रीय राजधानी में वन्य जीवों से होने वाले जान माल के नुकसान को लेकर मुआवजा मिलने का प्रावधान ही नहीं है। जी हां, सच यही है। यहां जब- तब तेंदुए की घुसपैठ से अगर कोई हादसा हो जाए या फिर नीलगाय अथवा सूअर किसी फसल को बर्बाद कर जाएं तो किसी भी तरह का कोई मुआवजा नहीं मिलेगा।
वजह, राजधानी में राज्य वन्यजीव परिषद (स्टेट वाइल्डलाइफ काउंसिल) का गठन न होना। हालांकि बीच बीच में इसके गठन की मांग उठती रही है, लेकिन सरकार के स्तर पर कोई निर्णय नहीं लिया गया।
गौरतलब है कि पिछले कुछ सालों के दौरान राजधानी में तेंदुए की घुसपैठ बढ़ी है। वन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि अकेले असोला भाटी क्षेत्र में ही सात से आठ तेंदुए हैं। ग्रामीण और फसली इलाकों में नीलगाय और सूअर भी मिल जाते हैं।
इसके अलावा बंदरों को हालांकि वन्यजीव की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है, लेकिन उनकी संख्या भी दिल्ली में कम नहीं है। इस संदर्भ में वन एवं पर्यावरण विभाग से पक्ष लेने का भी प्रयास किया गया, लेकिन मिल नहीं पाया।
क्या है राज्य वन्यजीव परिषद
किसी भी राज्य में राज्य वन्यजीव परिषद होना इसलिए आवश्यक है ताकि वह राज्य में वन्यजीवों के संरक्षण और विकास को बढ़ावा दे सके। यह परिषद वन्यजीवों से संबंधित सभी मामलों की समीक्षा करने, राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों की स्थापना और प्रबंधन की सिफारिश करने, संरक्षित क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं को मंजूरी देने जैसे महत्वपूर्ण कार्य करती है।
राज्य वन्यजीव परिषद के प्रमुख कार्य और इसके न होने से नुकसान
- नीति और कानून का कमजोर क्रियान्वयन : वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के तहत राज्य वन्यजीव परिषद राज्य में नीतियों को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके बिना उक्त अधिनियम से जुड़े कानूनों का पालन कमजोर हो जाएगा, जिससे वन्यजीवों की सुरक्षा और संरक्षण का प्रयास बाधित होगा।
- अवैध शिकार और तस्करी में वृद्धि : परिषद अवैध शिकार और वन्यजीवों की तस्करी से निपटने के लिए नीतियों और रणनीतियों को विकसित करती है। इसके अभाव में, ऐसे अपराध बढ़ेंगे क्योंकि उन्हें रोकने के लिए कोई समर्पित और समन्वित प्रयास नहीं होगा।
- संरक्षित क्षेत्रों का अभाव : नए राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों को स्थापित करने व उनके प्रबंधन के लिए परिषद की सिफारिशें आवश्यक हैं। इसके बिना, कई महत्वपूर्ण वन्यजीव आवासों को संरक्षित नहीं किया जा सकेगा, जिससे प्रजातियों को खतरा होगा।
- संसाधनों और धन की कमी : यह परिषद वन्यजीव संरक्षण परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता और अन्य संसाधनों की वकालत करती है। इसके अभाव में, संरक्षण के लिए आवश्यक धन और संसाधन उपलब्ध नहीं होंगे।
- मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि : परिषद मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष को कम करने के लिए कार्य करती है। इसके बिना, संघर्षों को प्रभावी ढंग से हल नहीं किया जा सकेगा, जिससे दोनों पक्षों के लिए खतरा बढ़ेगा।
- जैव विविधता का नुकसान : संरक्षण प्रयासों में कमी के कारण विभिन्न प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर पहुंच सकती हैं। पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ने से पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- पर्यावरणीय असंतुलन : वन्यजीवों के घटने से पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा होगा, जिसका प्रभाव पूरे पर्यावरण पर पड़ेगा।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा : वन्यजीवों से इंसानों में बीमारियों का प्रसार (जैसे जूनोटिक रोग) भी बढ़ सकता है, क्योंकि अवैध शिकार और तस्करी के कारण वन्यजीवों और मनुष्यों के बीच संपर्क बढ़ जाता है।
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यह सही है कि राजधानी में आज तक भी राज्य वन्यजीव परिषद नहीं है। हालांकि इसका होना बहुत जरूरी है। जब अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री थे तो उन्हें इसके गठन को लेकर विस्तृत प्रस्ताव भेजा गया था। लेकिन उन्होंने इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया। अब नई सरकार को इसके बारे में सोचना होगा।
-सीडी सिंह, पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक, दिल्ली सरकार
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