Delhi Pollution: सीधे उत्सर्जन से नहीं, सेकेंडरी पार्टिकुलेट मैटर से बढ़ता है पीएम 2.5 का स्तर; स्टडी में खुलासा
एक नए अध्ययन के अनुसार, दिल्ली में पीएम 2.5 प्रदूषण का एक बड़ा हिस्सा सीधे उत्सर्जन से नहीं, बल्कि सेकेंडरी पार्टिकुलेट मैटर से बनता है, जिसमें अमोनिय ...और पढ़ें
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राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। सेंटर फार रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) के एक नए अध्ययन से पता चलता है कि देश में पीएम 2.5 प्रदूषण का एक बड़ा हिस्सा सीधे उत्सर्जन से नहीं आता, बल्कि पूर्ववर्ती गैसों से वातावरण में रासायनिक रूप से बनता है। अध्ययन में पाया गया कि भारत के पीएम 2.5 भार का 42 प्रतिशत तक हिस्सा सेकेंडरी पार्टिकुलेट मैटर है, जो मुख्य रूप से सल्फर डाइआक्साइड (एसओ2) से बनने वाला अमोनियम सल्फेट है।
भारत वैश्विक स्तर पर एसओ2 का सबसे बड़ा उत्सर्जक है, जिसमें कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्र राष्ट्रीय कम से कम 60 प्रतिशत योगदान देते हैं। यह दर्शाता है कि पीएम 2.5 को कम करने में इसकी केंद्रीय भूमिका है। इसके बावजूद, मौजूदा नियामक ढांचे में लगभग 78 प्रतिशत कोयला आधारित संयंत्रों को फ्ल्यू गैस डीसल्फराइजेशन (एफजीडी) सिस्टम लगाने से छूट दी गई है, जिससे स्रोत पर एसओ2 नियंत्रण बेहद कमजोर हो गया है।
दिल्ली के वार्षिक पीएम 2.5 का लगभग एक-तिहाई हिस्सा सेकेंडरी अमोनियम सल्फेट है। शहर के सबसे प्रदूषित महीनों—मानसून के बाद और सर्दियों में क्रमशः 49 प्रतिशत और 41 प्रतिशत योगदान के साथ अमोनियम सल्फेट पीएम 2.5 पर हावी रहता है। जबकि गर्मियों और मानसून में यह केवल 21 प्रतिशत के करीब रहता है।
नासा के री-एनालिसिस डेटा (2024) का उपयोग करते हुए अध्ययन में पाया गया कि अमोनियम सल्फेट का योगदान भारत के राज्यों में 17 से 42 प्रतिशत तक है और अधिकांश राज्य वार्षिक रूप से 30 से 40 प्रतिशत की श्रेणी में आते हैं। इससे स्थापित होता है कि सेकेंडरी पार्टिकुलेट मैटर भारत के पीएम 2.5 प्रदूषण का केंद्रीय चालक है, न कि कोई सीमित या मौसमी कारक।
मौसमी पैटर्न बताते हैं कि अमोनियम सल्फेट वर्ष भर पीएम 2.5 का एक मुख्य हिस्सा बना रहता है। सर्दियों में 31–52 प्रतिशत, मानसून के बाद 27–53 प्रतिशत और गर्मियों में भी 11–36 प्रतिशत। मानसून में भी इसका योगदान 4–26 प्रतिशत के बीच रहता है। यह दर्शाता है कि सबसे प्रदूषित मौसमों में पीएम 2.5 पर सेकेंडरी पार्टिकुलेट मैटर का प्रभुत्व रहता है।
अध्ययन से यह भी पता चलता है कि मौजूदा वायु गुणवत्ता नीतियों में बड़े अंतर हैं। ये नीतियां अब भी पीएम 10, सड़क की धूल एवं अन्य दृश्यमान प्रदूषण स्रोतों को प्राथमिकता देती हैं, जबकि एसओ2, नाइट्रोजन डाइआक्साइड और अमोनिया जैसे पूर्ववर्ती गैसों की भूमिका को लगभग नजरअंदाज करती हैं।
सीआरईए के मुख्य विश्लेषक मनोज कुमार का कहना है कि राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के संशोधन के दौरान भारत को केवल पीएम 2.5 के स्तर पर नहीं, बल्कि इसकी संरचना पर भी ध्यान देना होगा। जब सेकेंडरी अमोनियम सल्फेट पीएम 2.5 का 42 प्रतिशत हिस्सा बन रहा है। इसका मुख्य स्रोत भी कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से आने वाला एसओ2 है तो पूर्ववर्ती गैसों का नियंत्रण और संरचना-आधारित मॉनिटरिंग वायु गुणवत्ता सुधार के लिए बहुत जरूरी है।

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