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    कटोरे जैसी बनावट दिल्ली को बनाती है गैस चैंबर, गाड़ियां ही नहीं भूगोल भी प्रदूषण की वजह; रिसर्च में खुलासा

    Updated: Tue, 16 Dec 2025 08:58 PM (IST)

    दिल्ली इंडो-गंगा के मैदान में स्थित है और हिमालय, अरावली पहाड़ियों तथा यमुना नदी के बीच बेसिन जैसी आकृति बनाती है, जो प्रदूषकों को बाहर निकलने से रोक ...और पढ़ें

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    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। ठंड बढ़ने के साथ ही दिल्ली की हवा भी जहरीली हो गई है। हालत ये है कि बिना मास्क के लोग घर से बाहर निकलने से बच रहे हैं। स्माॅग की वजह से दिल्ली की हवा सांस लेने लायक नहीं बची, लेकिन दिल्ली का यह प्रदूषण सिर्फ स्थानीय स्रोतों से नहीं जुड़ा है।

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    दिल्ली की हवा को जहरीला करने में इसकी भौगालिक स्थितियां भी काफी हद तक जिम्मेदार है। पर्यावरणविदों के अनुसार दिल्ली का भूगोल प्रदूषण को कैद कर देता है, जिसकी वजह से दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी में बदल जाती है।

    कटोरे जैसी है दिल्ली की भौगालिक स्थिति

    राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली इंडो-गंगा मैदान में स्थित है। हिमालय, अरावली पहाड़ियों तथा यमुना नदी के बीच यह एक बेसिन (कटोरे) जैसी आकृति बनाती है, जो प्रदूषकों को बाहर निकलने से रोकती है।

    थोड़ा सरल शब्दों में समझें तो दिल्ली की भौगोलिक संरचना एक कटोरे की तरह है। इसके चारों तरफ ऊंची- ऊंची संरचनाएं मौजूद हैं जबकि उत्तर में हिमालय, दक्षिण एवं दक्षिण पश्चिम में अरावली, पश्चिम में मालवा का पठार मौजूद है. जो तीन तरफ से दिल्ली की हवाओं को कैद कर देता है। ऐसे में प्रदूषित हवाएं दिल्ली के ऊपर ही मंडराती रहती हैं।

    भूगोल ही है जिम्मेदार

    रीडिंग विश्वविद्यालय (यूनाइटेड किंगडम में स्थित एक प्रतिष्ठित सार्वजनिक अनुसंधान विश्वविद्यालय) के शोधकर्ताओं अंकित भंडेकर और लारा विल्काक्स ने भी अपनी एक रिसर्च में दिल्ली के भूगोल को काफी हद तक वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराया है।

    उनकी रिसर्च के मुताबिक दिल्ली की प्रदूषित हवाएं अपने चारों तरफ मौजूद ऊंची संरचनाओं से टकराकर कैद हो जाती हैं, जिसकी वजह से ये प्रदूषित हवाएं बंगाल की खाड़ी तक पहुंचने में देरी करती हैं।

    तापमान और हवाओं की स्थिति भी है जिम्मेदार

    दिल्ली का भूगोल सर्दी के मौसम में और भी खतरनाक हो जाता है। जब सर्दियां आती हैं तो टेम्परेचर इनवर्जन (एक मौसमी घटना है जहां ऊंचाई के साथ तापमान सामान्य रूप से घटने के बजाय बढ़ने लगता है), जैसे कारक होते हैं।

    इस स्थिति में सतह पर मौजूद ठंडी हवाओं के ऊपर गर्म हवाओं की परत चढ़ जाती है। यह एक तरह से चाय की केतली के ढक्कन की तरह काम करती हैं, जो प्रदूषित हवाओं को ऊपर उठने से रोकता है।

    घट जाती है मिक्सिंग हाइट

    सर्दियों में हल्की हवाएं तापमान को जमीन के पास कैद कर लेती हैं। इसकी वजह से स्माग और गहरा हो जाता है। सर्दियों में इन गर्म और हल्की हवाओं की वजह से भारी और ठंडी हवाएं बहुत ऊंचाई तक नहीं जा पाती हैं।

    सर्दियों में दिल्ली की मिक्सिंग हाइट घटकर मात्र कुछ सौ मीटर हो जाती हैं, जो गर्मियों में कम से कम एक किमी होती है। ज्ञात हो कि मिक्सिंग हाइट वह ऊंचाई होती है जहां पर प्रदूषण फैल सकता है।

    दिल्ली का प्रदूषण सिर्फ दिल्ली का नहीं

    विशेषज्ञों के अनुसार ढलान वाली स्थिति में होने के कारण ही दिल्ली में पाकिस्तान और अफगानिस्तान तक की धूल आ जाती है। पहाड़ों यानी हिमालय की ओर से जब उत्तर पश्चिमी हवाएं चलती हैं तो वह एकदम साफ होती है।

    इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि उत्तर पश्चिमी हवा के रास्ते में जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़ और पानीपत का एक्यूआई अपेक्षाकृत कम होता है जबकि दिल्ली पहुंचकर कहीं ज्यादा हो जाता है।

    कहने का मतलब यह कि राजधानी का जो अपना प्रदूषण है, वह तो है ही, बाहर का प्रदूषण भी इसमें जुड़ता जाता है। और बिना तेज हवा के यह प्रदूषण दिल्ली से छंट नहीं पाता।

    दिल्ली में प्रदूषण के अन्य कारक

    • वाहन प्रदूषण : गाड़ियों से निकलने वाला धुआं प्रदूषण का मुख्य स्रोत है, जिसमें पीएम 2.5 और नाइट्रोजन आक्साइड (नाक्स) शामिल हैं।
    • निर्माण कार्य और धूल : सड़कों पर और निर्माण स्थलों से उड़ने वाली धूल पीएम 10 और पीएम 2.5 के स्तर को बढ़ाती है।
    • औद्योगिक उत्सर्जन : बिजली संयंत्र, ईंट भट्ठे और अन्य औद्योगिक गतिविधियां भी प्रदूषण में योगदान करती हैं।
    • कचरा जलाना : खुले में कचरा जलाने से भी प्रदूषण बढ़ता है।
    • कोयला, लकड़ी और उपले जलाना : बायोमास के रूप में इन सब चीजों से भी धुआं उत्पन्न होता है और प्रदूषण बढ़ाता है।

    यह भी पढ़ें- PUC सर्टिफिकेट नहीं तो पेट्रोल-डीजल नहीं, दिल्ली में 18 दिसंबर से इन गाड़ियों पर बैन; सिर्फ BS-6 वाहनों को मिलेगी एंट्री

    दिल्ली का भूगोल एक तालाब की तरह है जहां प्रदूषक फंस जाते हैं। जब सर्दियां होती हैं तो यह और भी घातक हो जाता है क्योंकि पीएम 2.5 कण फंसकर दिल्ली के ऊपर ही मंडराते रहते हैं। इसकी वजह से दिल्ली में कोहरे और स्माग जैसा माहौल दिखता है। ऐसे में दिल्ली का भूगोल ही प्रदूषण का असली जिम्मेदार ठहराते हैं। मौसम के अनुसार जरूरी नीतियों को लाकर ही दिल्ली के प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है। इसका कोई स्थायी समाधान मौजूद नहीं है।



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    -डाॅ. गुफरान बेग, चेयर प्राफेसर, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज, बंगलुरू

    दिल्ली की भौगालिक स्थितियों के मद्देनजर यहां पर प्रदूषण संकट का स्थायी समाधान संभव नहीं। अलबत्ता, दिल्ली के साथ- साथ पंजाब और हरियाणा के लिए भी एक समान नीतियां लागू कर इसे नियंत्रित अवश्य किया जा सकता है। हो यह रहा है कि जो प्रतिबंध दिल्ली में हैं, हरियाणा और पंजा उससे मुक्त हैं। मसलन, दिल्ली में कोयले से चल रहे सभी ऊर्जा उत्पादन संयंत्र सालों पहले ही बंद हो चुके हैं। लेकिन दिल्ली के 300 किमी के दायरे में 11 ऐसे संयंत्र आज भी बदस्तूर चल रहे हैं और दिल्ली की हवा को भी काला कर रहे हैं।


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    -डाॅ. दीपांकर साहा, पूर्व अपर निदेशक, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड