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    Year Ender 2025: दिल्ली की पुलिसिंग में सुधार की जरूरत, मजबूत लोकल इंटेलिजेंस से आतंकी घटनाओं पर लगेगा ब्रेक

    Updated: Thu, 25 Dec 2025 03:48 PM (IST)

    वर्ष 2025 के अंत में, दिल्ली की पुलिसिंग में सुधार की आवश्यकता है। मजबूत लोकल इंटेलिजेंस के माध्यम से आतंकी घटनाओं को रोका जा सकता है। पुलिस व्यवस्था ...और पढ़ें

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    मजबूत लोकल इंटेसिजेंस से टल सकता था दिल्ली धमाका। जागरण

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली पिछले कई दशक से आतंकियों के निशाने पर है, ऐसे मेें केंद्रीय एजेंसियों को अत्यधिक सतर्कता बरतनी ही होगी। साथ ही दिल्ली पुलिस को अपनी पुलिसिंग में काफी सुधार लाने की जरूरत है।

    दिल्ली पुलिस को अपने लोकल इंटेलीजेंस को काफी मजबूत करना होगा, यह तभी संभव होगा जब दिल्ली पुलिस का बीट सिस्टम दुरूस्त हो। बीट में तैनात हर बीट अफसर की जिम्मेदारी तय की जानी होगी। अगर किसी इलाके में कोई अपराध होता है तब सबसे पहले उस संबंधित इलाके के बीट अफसर को जिम्मेदार ठहराया जाए।

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    बीट अफसर को उनके इलाके के एक-एक व्यक्ति और एक-एक गतिविधि के बारे में जानकारी होनी चाहिए। यह लोकल इंटेलीजेंस मजबूत करने का सबसे जरूरी तरीका है। दिल्ली पुलिस में वर्षों से बीट पुलिसिंग पूरी तरह से ध्वस्त है।

    हवा हवाई साबित हुए दावे

    पिछले ढ़ाई दशक के इतिहास को देखें तो इस दौरान 12 से अधिक पुलिस आयुक्त ने अपने-अपने कार्यकाल में बीट सिस्टम को मजबूत बनाने के लिए बड़े-बड़े दावे किए लेकिन उनके दावे पूरी तरह हवाई साबित हुए। यही वजह है कि दिल्ली में न तो किसी तरह के अपराध और न ही आतंकवादी घटनाओं पर अंकुश लग पा रहा है।

    इन सब के पीछे कहीं न कहीं दिल्ली पुलिस में चरम पर फैला भ्रष्टाचार भी बड़ा कारण माना जा रहा है। गृह मंत्रालय ने हाल के वर्षों में भ्र्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए तमाम तरह के प्रयोग भी किया लेकिन प्रयोग सफल नहीं हो पाया।

    यह इंटेलीजेंस का फेल्योर ही माना जा रहा है कि दिल्ली में 14 साल बाद फिर लाल किला के बाहर आतंकी धमाका हुआ जिसमें 15 लोग मारे गए। इस घटना में इंटेलीजेंस का फेल्योर और राज्यों की पुलिस का केद्रीय एजेंसियों के साथ कोआर्डिनेशन का अभाव दो तरह की बात सामने आई।

    सही कोआर्डिनेशन से रोका जा सकता था धमाका

    स्पेशल ब्रांच के अधिकारियों की मानें तो उनका कहना है कि अगर ठीक तरीके से कोआर्डिनेशन हुआ होता तो संभवत लाल किला ब्लास्ट की घटना काे रोका जा सकता था। और तो और फरीदाबाद में साथियों के पकड़े जाने पर जैश आतंकी उमर नबी बट दिल्ली में प्रवेश कर सात घंटा तक दिल्ली की सड़कों पर कार दौड़ाता रहा लेकिन कहीं भी दिल्ली पुलिस उसकी कार को नहीं रोक पाई।

    यह अपने आप में हैरान करने वाली बात है। साक्ष्य मिले हैं कि आतंकी संसद भवन के करीब तक भी पहुंच गया था। इसलिए दिल्ली पुलिस को चेकिंग सिस्टम में भी सुधार लाने की जरूरत है। निर्भया के बाद दिल्ली में जिस तरह से वाहनों के चेकिंग की व्यवस्था की गई थी उसी तरह की व्यवस्था दिल्ली में हमेशा रखने की जरूरत है।

    पुलिस अधिकारी का कहना है कि दिल्ली पुलिस का पड़ोसी राज्यों की पुलिस के साथ कोआर्डिनेशन मजबूत होना चाहिए क्योंकि दिल्ली से दो राज्यों की कई सीमाएं लगती हैं जिससे बाहरी राज्यों के अपराधी दिल्ली आकर अपराध को अंजाम देकर आसानी से भाग जाते हैं।

    सीमाओं पर चेकिंग सिस्टम को ठीक करने से लेकर पर्याप्त सीसीटीवी कैमरे लगाने की जरूरत है। यह योजना भी दिल्ली पुलिस की तीन दशक पुरानी है लेकिन दिल्ली पुलिस कोई व्यवस्था नहीं बना पा रही है।

    इस साल की हाल की कुछ घटनाओं को देखा जाए तो दिल्ली में अपराधी बेखौफ हो गए हैं उन्हें पुलिस का कोई डर नहीं रह गया है। कहीं न कहीं दिल्ली पुलिस की सबसे बड़ी स्पेशलाइज्ड यूनिट स्पेशल सेल के काफी कमजोर पड़ने के कारण बदमाशों का दुस्साहस बढ़ा है।

    राजनीति का अड्डा बना स्पेशल सेल

    स्पेशल सेल काम करने के बजाय राजनीति का अड्डा बन चुका है। पिछले तीन साल में सेल की छवि खत्म हो गई। आया नगर में डेरी संचालक को 70 गोलियां मारी गई, जाफराबाद में गैंगवार में एक शख्स को 51 गोलियां मारी गई। ये घटना साफ बयां करता है कि दिल्ली पुलिस का खौफ बदमाशों में कम हो रहा है।

    तभी आए दिन विदेश में बैठे गैंग्स्टर दिल्ली के व्यापारियों को काल कर उनसे रंगदारी मांग रहे हैं। दिल्ली पुलिस रंगदारी रैकेट पर रोक लगाने में पूरी तरह विफल है।वही हाल ड्रग्स व हथियार तस्करों के मामले में है। इन दोनों पर भी पुलिस रोक नहीं लगा पा रही है। वाहन चोरी की घटनाएं दिल्ली में नासूर बनी ही है।

    हाल के वर्षों को देखें तो नाबालिगों का आतंक चरम पर बढ़ा है। गैंग्स्टर इसका इस्तेमाल करने लगे हैं। दिल्ली पुलिस की कोई ऐसी प्रभावी योजना नहीं है जिससे नाबालिगों को अपराध पर जाने से रोक सके। बांग्लादेशियों का भी दिल्ली में गढ़ है। गृह मंत्रालय व उप राज्यपाल के निर्देश पर दिल्ली पुलिस ने कई माह तक बांग्लादेशियों की धर पकड़ के लिए अभियान चलाया लेकिन अब बंद कर दिया गया है।

    तीन साल के अपराध के आंकड़े

    तीन साल के अपराध के आंकड़े (30 जून तक)
    अपराध 2023 2024 2025
    हत्या 269 241 250
    हत्या का प्रयास 368 430 386
    लूट 790 826 637
    फिरौती के लिए अपहरण 4 6 4
    दुष्कर्म और पाक्सो 1,034 1,040 932
    जघन्य अपराध 2,465 2,543 2,209
    झपटमारी 3,865 3,381 2,503
    चोट पहुंचाना 719 712 699
    सेंधमारी 3,398 4,271 3,186
    घरों में चोरी 10,179 8,769 7,360
    वाहन चोरी 19,360 18,626 17,512
    अन्य चोरी 79,856 54,612 49,507
    छेड़छाड़ 1,216 968 863
    फब्ती कसना 181 176 154
    बंधक बनाना 2,752 2,738 2,716
    बहला फुसलाकर भगा ले जाना 117 85 55
    जानलेवा हादसे 653 673 667
    मामूली हादसे 2,030 2,074 1,971
    अन्य आइपीसी/बीएनएस 36,605 30,065 29,420

    लोकल इंटेलिजेंस कलेक्ट करना सबसे ज्यादा जरूरी

    आज के समय में लोकल इंटेलिजेंस कलेक्ट करना सबसे ज्यादा जरूरी है। आजकल इंटरनेट मीडिया का इस्तेमाल ऐसे घातक हमलों में किया जा रहा है। इसलिए ह्यूमन इंटेलिजेंस ज्यादा होना चाहिए। आतंकी घटनाओं से संबंधी मामलों में को-आर्डिनेशन एजेंसी इंटेलिजेंस ब्यूरो है।

    इंटेलिजेंस एजेंसी का सभी राज्यों से समन्वय होता है। हर राज्य की पुलिस की ड्यूटी बनती है कि अगर उन्हें लोकल इंटेलीजेंस से आतंकी संबंधी घटना प्लानिंग के बारे में सूचना मिलती है तो उसे तुरंत आइबी के साथ साझा करे। केवल मोबाइल इंटरसेप्शन से हर जानकारी मिलना अब संभव नहीं है।

    लोकल तंत्र विकसित करने की जरूरत

    मौजूदा समय में राज्यों की पुलिस को पुराने पुलिसिंग की तर्ज पर लोकल मुखबिर तंत्र को ज्यादा विकसित करने की जरूरत है। पूरे शहर में सड़कों व गलियों में सीसीटीवी कैमरे लगा देने से कोई ज्यादा फायदा नहीं मिल सकता है। सीसीटीवी कैमरे गाड़ियों में छिपाकर कौन क्या ले जाया जा रहा है उसे डिटेक्ट नहीं किया जा सकता है।

    कैमरे पोस्ट इंवेस्टिगेशन में मदद कर सकते हैं। इससे गाड़ियों के नंबर के बारे मेें पता लगाया जा सकता है। बिना नंबर के वाहनों के सीसीटीवी कैमरे से पता नहीं किया जा सकता है। इसलिए सीसीटीवी फ्यूचर इंवेस्टिगेशन में मददगार साबित हो सकते हैं। लाल किला की घटना में अगर हमले की वीडियो को देखा जाए तो उसी से तुरंत पता लग गया था कि यह आतंकी घटना है।

    क्योंकि लो एक्सप्लोसिव व हाई एक्सप्लोसिव में काफी फर्क होता है। जब लाे एक्सप्लोसिव फटता है और उसमें लोहे की चीज अगर कटती है तो वह जार्ड होती है और जब हाई एक्सप्लोसिव फटता है तो शार्प जैसे लोहे को ब्लेड से काट दिया गया हो ऐसा लगता है। इस धमाके में शार्प कटिंग देखी गई।

    ऐसे में ब्लास्ट के तरीके से पहले दिन ही पता लग गया था कि इसमें पाक की साजिश मिलेगा। आतंकी इनपुट को लेकर राज्यों की पुलिस को बहुत ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।

    आतंकवादियों के हमेशा से दो उद्देश्य रहे हैं। पहला डैमेज और दूसरा भय का माहौल बनाना। यह दिखाना की सरकार फैल हो रही है। आतंकवादियों का मकसद है ब्लास्ट करो और लोगों में भय का माहौल बनाओ। वह यह संदेश देना चाह रहे हैं कि हम सरकार से ज्यादा पावरफुल हैं।

    आतंकी हमले के बाद लोग बेबुनियाद कमेंट करते हैं। पुलिस अपना काम करती है। बहुत से लोग पुलिस पर सरकार पर सवाल उठाते हैं। आतंकवाद को लेकर एक नेशनल पालिसी होनी चाहिए। बेबुनियाद कमेंट करने वालों के खिलाफ भी मामला दर्ज होना चाहिए। कई मामलों में अभिभावक अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देते। बच्चों का व्यवहार बदलने पर ध्यान नहीं देते। ऐसे में माता-पिता को पुलिस से भी मदद लेना चाहिए। क्योंकि मौजूदा समय मेें अभिभावकों को आइडियोलाजी बदलने की आवश्यकता है।

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    अशोक चांद, पूर्व संयुक्त आयुक्त, दिल्ली पुलिस

    दिल्ली धमाकों की क्रोनोलॉजी

    दिल्ली धमाकों की क्रोनोलॉजी
    तारीख घटना
    25 मई, 1996 लाजपत नगर सेंट्रल मार्केट में बम विस्फोट, 16 लोगों की मौत।
    1 अक्टूबर, 1997 सदर बाजार के पास दो बम विस्फोट, लगभग 30 घायल।
    10 अक्टूबर, 1997 शांतिवन, कौड़िया पुल एवं किंग्सवे कैंप इलाकों में तीन विस्फोट, एक की मौत, लगभग 16 घायल।
    18 अक्टूबर, 1997 रानी बाग मार्केट में दो विस्फोट, एक की मृत्यु, करीब 23 घायल।
    26 अक्टूबर, 1997 करोल बाग मार्केट में दो विस्फोट, एक की मौत, 34 घायल।
    30 नवंबर, 1997 लाल किला क्षेत्र में दो विस्फोट, तीन की मृत्यु, 70 घायल।
    30 दिसंबर, 1997 पंजाबी बाग के पास बस में विस्फोट, चार मरे, 30 घायल।
    18 जून, 2000 लाल किला के निकट दो शक्तिशाली विस्फोट, दो की मौत, दर्जनभर लोग घायल।
    16 मार्च, 2000 सदर बाजार में विस्फोट, सात घायल।
    27 फरवरी, 2000 पहाड़गंज में विस्फोट, आठ घायल।
    14 अप्रैल, 2006 जामा मस्जिद प्रांगण में दो विस्फोट, 14 घायल।
    22 मई, 2005 लिबर्टी एवं सत्यं सिनेमा हाल में दो विस्फोट, एक की मृत्यु, लगभग 60 घायल।
    29 अक्टूबर, 2005 सरोजिनी नगर, पहाड़गंज व गोविंदपुरी में तीन विस्फोट, लगभग 59-62 मरे, 100 से अधिक घायल।
    13 सितंबर, 2008 करोल बाग (गफ्फार मार्केट), कनाट प्लेस व ग्रेटर कैलाश-1 में पांच विस्फोट, 20-30 मरे, 90 से अधिक घायल।
    27 सितंबर, 2008 मेहरौली के फ्लावर मार्केट (सराय) में विस्फोट, 3 की मौत, 23 घायल।
    25 मई, 2011 दिल्ली हाई कोर्ट पार्किंग में विस्फोट — कोई मृत्यु नहीं।
    सितंबर, 2011 दिल्ली हाई कोर्ट के गेट नंबर-5 पर ब्लास्ट, 15 लोग मारे गए, 79 घायल।