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    60 वर्षीय वृद्धा से दुष्कर्म के बाद नाबालिग ने की थी हत्या, बालिग की तरह चला मुकदमा; आठ साल बाद दोषी करार

    Updated: Wed, 29 Oct 2025 10:01 PM (IST)

    दिल्ली के रोहिणी में, एक नाबालिग को 2017 में एक बुजुर्ग महिला के साथ दुष्कर्म और हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया। अदालत ने उसे बालिग मानते हुए यह फैसला सुनाया। आरोपी ने महिला को लोहे की रॉड से बेरहमी से मारा था। अदालत ने दुष्कर्म और हत्या के आरोपों को सही पाया। अगली सुनवाई में सजा का एलान होगा।

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    नाबालिग ने बुजुर्ग की दुष्कर्म के बाद हत्या की, कोर्ट ने बालिग मानते हुए दोषी ठहराया।

    धर्मेंद्र यादव, बाहरी दिल्ली। फुटपाथ पर 15 साल से रह रहीं मानसिक तौर पर अस्वस्थ्य 60 वर्षीय महिला की दुष्कर्म के बाद हत्या करने के मामले में आठ साल बाद रोहिणी जिला न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया। नाबालिग आरोपी को बालिग मानने हुए न्यायालय ने दुष्कर्म व हत्या की धाराओं के तहत दोषी ठहराया है।

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    अगली सुनवाई सात नंवबर को होगी, इस दिन बहस के बाद संभवत: सजा का एलान होगा। नाबालिग ने धातु की राॅड से महिला को बड़ी ही निर्दयता से मारा। महिला के शरीर के हर हिस्से पर चोट के निशान पाए गए। राॅड से महिला के अंदरुनी अंगों में भी चोट पहुंचाई। वारदात के दिन किशोर की उम्र आयु 16 वर्ष, 11 माह और 22 दिन थी।

    जघन्य अपराध को देखते हुए न्यायालय ने किशोर न्याय बोर्ड की सहमति के बाद किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 19(1) के अंतर्गत नाबालिग पर वयस्क अपराधी के रूप में मुकदमा चलाया गया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमित सहरावत ने मंगलवार को सुनवाई के बाद आठ साल पुराने इस मामले में किशोर को दोषी करार दिया।

    नाबालिग नवंबर 2017 से प्रोटेक्टिव कस्डटी (सुरक्षात्मक हिरासत) में है। 89 पेज के अपने निर्णय में न्यायालय ने किशोर को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (दुष्कर्म) और 302 (हत्या) की धारा के तहत दोषी करार दिया है। लगभग आठ साल चले इस मामले में प्रत्यक्षदर्शी के अलावा पुलिस, फारेंसिक टीम, डाक्टर समेत 28 लोगों ने गवाही दी।

    न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा कि धारा 375 (ख) के अनुसार, यदि कोई वस्तु (लिंग के अलावा) किसी भी हद तक महिला की योनी, मूत्रमार्ग या गुदा में डाली जाती है तो यह दुष्कर्म माना जाएगा। तथ्यों के अनुसार, सीसीएल ने मृतका के अंदरुनी अंगों में राड डाली थी, और यह कृत्य स्वयं नाबालिग के कृत्य को दुष्कर्म की परिभाषा में लाने के लिए पर्याप्त है।

    भले ही गवाहों के बयानों में मृतका के अंदरुनी अंगों में किशोर के गुप्तांग डालने के संबंध में कोई स्पष्टीकरण न हो, फिर भी मृतका के अंदरुनी अंगों में राड डालने का कृत्य दुष्कर्म माना जाएगा। मुख्य लोक अभियोजक आदित्य कुमार ने दलील दी कि महिला के खून के छींटे नाबालिग के कपड़ों पर पाए गए।

    बेहद निर्दयता से बुजुर्ग महिला को मारा

    यह सनसनीखेज वारदात 25 नंबवर 2017 को रात 11:40 मिनट की है। बादली फैक्ट्री क्षेत्र में 60 वर्षीय महिला फुटपाथ पर 15 साल से रह रही है। उसका मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं था। प्रत्यक्षदर्शी गार्ड ने पुलिस को बताया कि किशोर को लोहे की राड से महिला को मारते हुए देखा। उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वह भागने मे सफल रहा। इसके बाद पुलिस आरोपित को उसके घर से पकड़ा। चार दिन बाद 29 तारीख को महिला की मौत हो गई। महिला के शरीर पर एक दर्जन से ज्यादा चोट के निशान पाए गए।

    नाबालिग से वयस्क होने तक अपराधी पर यूं चली प्रक्रिया

    चूंकि किशोर अपराधी की आयु 16-18 वर्ष के बीच थी, इसलिए किशोर न्याय बोर्ड द्वारा धारा 15(1) के तहत उसका प्रारंभिक मूल्यांकन किया गया। 25 अगस्त 2018 के अपने आदेश के तहत किशोर न्याय बोर्ड इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि किशोर अपराधी पर एक वयस्क अपराधी के रूप में मुकदमा चलाया जाना आवश्यक है।

    इसके बाद मामले को न्यायालय को स्थानांतरित कर दिया गया। सात सितंबर को न्यायालय ने किशोर न्याय बोर्ड के आदेश पर सहमति व्यक्त की कि नाबालिग पर बालिग अपराधी की तरह केस चलाया गया।

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    नाबालिग को अधिकतम कारावास की सजा मिलने पर मृतक महिला और समाज को न्याय मिलेगा। चूंकि नाबालिग को हत्या और दुष्कर्म के अपराध में बहुत ही क्रूर तरीके से किया गया है, इसलिए वह कठोरतम सजा का हकदार है, लेकिन किशोर न्याय अधिनियम 2015 की धारा 21 के अनुसार नाबालिग को रिहाई की संभावना के बिना आजीवन कारावास और मृत्युदंड की सजा नहीं दी जा सकती, इसलिए उसे अधिकतम आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती है। इसके बावजूद न्यायालय के समक्ष अधिकतम आजीवन कारावास की सजा की मांग जाएगी। नाबालिग ने जिस क्रूर तरीके से अपराध किया है, उससे पता चलता है कि नाबालिग एक राक्षस था और भविष्य में उसके सुधार की कोई संभावना नहीं है और वह समाज की मुख्यधारा में रहने के लायक नहीं है।


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    - आदित्य कुमार, मुख्य लोक अभियोजक

    किशोर न्याय अधिनियम की धारा 15 के अंतर्गत प्रारंभिक मूल्यांकन करेगा, जहां 16 से 18 वर्ष की आयु के किसी किशोर ने कोई जघन्य अपराध किया हो। यह किशोर न्याय अधिनियम के अनुसार एक अनिवार्य प्रक्रिया है, जो मनोवैज्ञानिकों द्वारा की जाती है। प्रारंभिक मूल्यांकन का उद्देश्य यह निर्धारित करना है कि क्या किशोर में ऐसा अपराध करने के लिए मानसिक परिपक्वता और शारीरिक क्षमता है और क्या किशोर अपराध के परिणामों को समझने की क्षमता रखता है। किशोर की सामाजिक पृष्ठभूमि का भी आकलन किया जाता है। मूल्यांकन के दौरान निर्धारित किए जाने वाले प्रमुख कारक किशोर पर कुछ परीक्षणों के माध्यम से किए जाते हैं, जैसे मनोप्रेरक गतिविधि, मानक प्रगतिशील मैट्रिक्स आदि। किशोर न्याय बोर्ड द्वारा प्रारंभिक मूल्यांकन के आधार पर, यह निर्णय लिया जाता है कि किशोर पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जाना चाहिए या नहीं।



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    - गगन भटनागर, वकील, दिल्ली हाई कोर्ट