मानसिक दिव्यांग महिला से दुष्कर्म करने वाले को साढ़े सात साल की कैद, सवा आठ वर्ष जेल में बीता चुका है दोषी
दिल्ली में मानसिक रूप से दिव्यांग महिला से दुष्कर्म के मामले में अदालत ने दोषी को साढ़े सात साल की कैद की सजा सुनाई है। दोषी पहले ही सवा आठ साल जेल मे ...और पढ़ें

सांकेतिक तस्वीर
जागरण संवाददाता, बाहरी दिल्ली। मानसिक तौर से दिव्यांग 25 वर्षीय महिला से दुष्कर्म करने वाले व्यक्ति को रोहिणी कोर्ट ने साढ़े सात साल के कठोर कारावास की सजा दी है। उल्लेखनीय पहलू यह है कि दोषी लगभग सवा आठ वर्ष जेल में बीता चुका है। हालांकि, दोषी को धारा 428 सीआरपीसी के (दोष सिद्धि से पहले हिरासत की अवधि का सजा के विरुद्ध समायोजन) तहत लाभ मिलेगा।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभियुक्त के कृत्य के कारण पीड़िता को गहरा मानसिक कष्ट झेलना पड़ा। कोर्ट ने डीएलएसए को पीड़िता को नियम अनुसार मुआवजा देने के निर्देश देते हुए कहा कि पीड़िता को मुआवजा देने से उसके घावों को कुछ हद तक भरने में सहायता मिलेगी।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विप्लव डबास ने लगभग आठ साल पुराने दुष्कर्म के मामले की सुनवाई करते हुए दोषी को सजा सुनाई। न्यायाधीश ने धारा 376 के तहत दोषी गुड्डू झा को साढ़े सात साल की कठोर कैद की सजा और 10 हजार रुपये का आर्थिक दंड भी लगाया है।
जुर्माना अदा न करने की स्थिति में, दोषी को छह महीने के कारावास की सजा भुगतनी होगी। यह घटना आठ सितंबर 2017 की है। स्वरूपनगर पुलिस थाने में दर्ज की गई प्राथमिकी के अनुसार, आरोपित गुड्डू झा ने पड़ोस में रहने वाली महिला के साथ गलत काम किया। विरोध करने पर सिर पर डंडे से प्रहार भी किया। आरोपित को मौके पर ही पकड़ लिया।
न्यायाधीश ने अपने फैसले में लिखा कि यह सर्वविदित कानून है कि दोषी को दी जाने वाली सजा अपराध की गंभीरता के अनुरूप होनी चाहिए और धारा 376 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध की गंभीरता के संबंध में कोई संदेह नहीं है। यह भी निर्विवाद है कि अपराध के समय दोषी और पीड़िता के पति के बीच वित्तीय लेन-देन हो रहा था और पीड़िता/उसके परिवार तथा दोषी के बीच कोई पूर्व दुश्मनी या द्वेष नहीं था।
इन बातों, दोषी के स्वच्छ पूर्व रिकार्ड और वर्तमान तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट दोषी को ऐसे शातिर अपराधी की श्रेणी में नहीं पाता है जो इस मामले में आजीवन कारावास जैसी कठोर सजा का हकदार हो। अतिरिक्त लोक अभियोजक विनीत दहिया ने अपराध की प्रकृति और गंभीरता को देखते हुए दोषी को किसी भी प्रकार की नरमी न दिए जाने का निवेदन किया और कानून द्वारा निर्धारित अधिकतम सजा दिए जाने की मांग की। साथ ही पीड़िता को उचित मुआवजा दिया जाने का अनुरोध किया।
बचाव पक्ष के वकील ने कोर्ट में कहा कि दोषी और उसके परिवार के पास जुर्माना अदा करने के लिए आय का कोई स्रोत नहीं है और हिरासत में बिताया गया समय (जो 8 वर्ष और 3 महीने से अधिक है) और जुर्माने की राशि में समायोजित किया जाए। इस पर कोर्ट ने कहा कि दोषी को धारा 428 सीआरपीसी के तहत लाभ दिया जा रहा है। यदि किसी भी कार्य में दोषी की आवश्यकता नहीं है, तो उसे हिरासत से रिहा कर दिया जाए।

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