Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    प्राइवेट स्कूलों में फीस वृद्धि नियंत्रण पर दिल्ली सरकार को झटका, HC ने सीमा रेखा तय कर खारिज की याचिका

    Updated: Fri, 10 Oct 2025 06:05 PM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने निजी स्कूलों की फीस वृद्धि के मामले में दिल्ली सरकार के अधिकारों को सीमित किया है। कोर्ट ने कहा कि सरकार मुनाफाखोरी रोकने के लिए फीस नियंत्रित कर सकती है, लेकिन व्यापक प्रतिबंध नहीं लगा सकती। अदालत ने शिक्षा निदेशालय की याचिका खारिज करते हुए एकल पीठ के फैसले को बरकरार रखा। अब निदेशालय स्कूलों के शुल्क विवरण की जांच कर सकता है और गड़बड़ी पाए जाने पर कार्रवाई कर सकता है।

    Hero Image

    दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा- मुनाफाखोरी या शिक्षा के व्यावसायीकरण रोकने को ही फीस नियंत्रित कर सकती है सरकार।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। निजी स्कूलों की ओर से मनमानी फीस बढ़ाने के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र की सीमारेखा तय कर दी। दो निजी स्कूलों के मामले में एकल पीठ के निर्णय को दिल्ली हाई कोर्ट ने बरकरार रखा।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    हाई कोर्ट ने माना कि दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय (डीओई) को निजी स्कूलों के फीस ढांचे को मुनाफाखोरी और शिक्षा के व्यावसायीकरण पर अंकुश लगाने की आवश्यकता तक रेगुलेट करने का अधिकार है।

    मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय व न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने स्पष्ट किया कि दिल्ली सरकार ऐसे निजी स्कूलों पर न तो व्यापक प्रतिबंध लगा सकती है और न ही फीस वृद्धि के संबंध में आदेश दे सकती है।

    दो सदस्यीय पीठ ने इस टिप्पणी के साथ एकल पीठ के निर्णय को चुनौती देने वाली शिक्षा निदेशालय व विभिन्न छात्रों की याचिका को खारिज कर दिया। एकल पीठ ने ब्लूबेल्स इंटरनेशनल स्कूल और लीलावती विद्या मंदिर को 2017-18 शैक्षणिक सत्र के लिए शुल्क बढ़ाने से रोकने वाले आदेशों को रद कर दिया था।

    पीठ ने कहा कि ऐसा नहीं है कि स्कूलों की ओर से ली जाने वाली फीस को सरकार की ओर से रेगुलेट नहीं किया जा सकता, लेकिन रेगुलेशन की अनुमति केवल यह सुनिश्चित करने के लिए की जा सकती है कि स्कूल मुनाफाखोरी या शिक्षा के व्यावसायीकरण या कैपिटेशन शुल्क वसूलने में लिप्त न हों।

    अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसी फीस संरचना उपलब्ध बुनियादी ढांचे और अन्य सुविधाओं, शिक्षकों और कर्मचारियों को दिए जाने वाले वेतन और संस्थान के विस्तार या बेहतरी की भविष्य की योजनाओं को ध्यान में रखते हुए तय की जानी चाहिए।

    पीठ ने कहा कि अगर स्कूलों द्वारा दाखिल किए जाने वाले शुल्क विवरण की जांच करने पर शिक्षा निदेशालय यह पाता है कि स्कूलों द्वारा एकत्रित राशि का व्यय शिक्षा निदेशालय-1973 या उसके तहत बनाए गए प्रावधानों के अनुसार नहीं हो रहा है तो स्कूल के विरुद्ध उचित कार्रवाई की जा सकती है।

    यह भी कहा कि ऐसी कार्रवाई यह सुनिश्चित करने के लिए भी है कि संबंधित स्कूल मुनाफाखोरी, व्यावसायीकरण या कैपिटेशन शुल्क वसूलने में लिप्त न हों और स्कूल की ओर से अर्जित लाभ का उपयोग केवल स्कूल की बेहतरी और शिक्षा से संबंधित अन्य उद्देश्यों के लिए किया जाए।

    यह भी पढ़ें- चैतन्यानंद की जमानत याचिका पर अब सोमवार को होगी सुनवाई, दूसरे जज को सौंपा गया केस