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    'दूसरे पक्ष को परेशान करने के लिए स्थगन और पास ओवर का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं', दिल्ली हाईकोर्ट ने की सख्त टिप्पणी

    Updated: Sun, 23 Nov 2025 06:50 PM (IST)

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्थगन और पास ओवर के दुरुपयोग पर सख्त रुख अपनाया है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि दूसरे पक्ष को परेशान करने के लिए इस तरह की प्रथाओं को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। न्यायालय ने मुकदमेबाजी में देरी पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे अनुरोधों से न्याय मिलने में देरी होती है।

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    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। कभी अधिवक्ता की अनुपलब्धता तो कभी अस्वस्थ्य होने के कारण सामान्य तौर पर अदालत से स्थगन या पास-ओवर (अधिवक्ता के उपस्थित नहीं होने पर प्राॅक्सी वकील द्वारा अदालत से कुछ समय मोहलत मांगना) की मांग पर दिल्ली हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति गिरीश कथपालिया की पीठ ने कहा कि सुनवाई स्थगित करने से लेकर पास ओवर देना अदालत की तरफ से वकील को सुविधा है और इसका इस्तेमाल दूसरे पक्ष को परेशान करने के लिए नहीं किया जा सकता।

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    अदालत ने उक्त टिप्पणी इसी कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड की एक याचिका पर विचार करते हुए दी। इसमें 2006 के एक मुकदमे में बचाव पक्ष के गवाह से आगे जिरह करने के वादी के अधिकार को बंद करने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी।

    याचिका में तर्क दिया गया था कि वादी ने स्थगन की मांग के लिए अदालत द्वारा लगाया गया जुर्माना का भुगतान नहीं किया था।

    हालांकि, न्यायमूर्ति गिरीश कथपालिया की पीठ ने याची के अधिवक्ता की इस बात को खारिज कर दिया कि उन्होंने सिर्फ दोपहर दो बजकर 30 मिनट तक स्थगन के बजाय पास ओवर मांगा था।

    पीठ ने कहा कि पहले स्थगन का अनुरोध मुख्य वकील की बीमारी के आधार पर की गई थी, लेकिन जब मेडिकल दस्तावेज मांगे गए, तो प्राॅक्सी वकील ने कहा कि मुख्य वकील किसी पारिवारिक जरूरत के कारण उपलब्ध नहीं हैं।

    पीठ ने पाया कि लगभग हर तारीख पर पिटीशनर की तरफ से या तो स्थगन या फिर पास ओवर की मांग की गई थी। पीठ ने कहा कि ऐसा लगता है कि याची के वकील को यह गलतफहमी है कि पास ओवर वकील का अधिकार है।

    स्थगन के लिए ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाई गई 5,000 जुर्माना की राशि का भुगतान नहीं होने के तथ्यस को देखते हुए अदालत ने फैसला सुनाया कि गवाह का आगे का क्रास एग्जामिनेशन बंद करना ट्रायल कोर्ट का सही फैसला था। अदालत ने माना कि याची जानबूझकर 2006 से लंबित केस की कार्यवाही को लंबा खींच रहा था।

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