'मेडिकल जांच से पहले कपड़े बदलने से कमजोर नहीं हो जाते सुबूत...', पॉक्सो मामले में दिल्ली HC की अहम टिप्पणी
दिल्ली हाई कोर्ट ने नाबालिग दुष्कर्म मामले में दोषी को राहत देने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि पीड़िता के मेडिकल परीक्षण से पहले कपड़े बदलने से अभियोजन पक्ष के साक्ष्य कमजोर नहीं होते। अदालत ने दोषी की अपील खारिज करते हुए कहा कि पीड़िता के कपड़ों पर मिले वीर्य के धब्बे अभियोजन पक्ष के मामले की पुष्टि करते हैं। अदालत ने यह भी कहा कि एक माँ का अपनी बेटी के कपड़े बदलना स्वाभाविक है।

दोषी को राहत देने से दिल्ली हाई कोर्ट का इनकार।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में दोषी को राहत देने से इनकार करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि पाक्सो अधिनियम के तहत नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता के मेडिकल परीक्षण से पहले उसके कपड़े बदलने से अभियोजन पक्ष के साक्ष्य कमजोर नहीं हो सकते।
न्यायमूर्ति स्वर्णकांत शर्मा की पीठ ने कहा कि जहां तक पीड़िता के मेडिकल परीक्षण से पहले चादर न जब्त करने और मां द्वारा कपड़े न बदलने का सवाल है, यह अदालत मानती है कि इससे अभियोजन पक्ष के साक्ष्य की विश्वसनीयता पर कोई उचित संदेह पैदा नहीं होता है।
अदालत ने उक्त टिप्पणी करते हुए दोषसिद्धि व 10 साल की सजा को चुनौती देने वाली दोषी की अपील याचिका खारिज कर दी। अपीलकर्ता को पाक्सो अधिनियम की धारा 18 और भारतीय दंड संहिता की धारा 376एबी के तहत दोषी ठहराया गया था। नौ साल की नाबालिग ने पुलिस को बताया कि उसके मामा ने सोते समय उसका यौन उत्पीड़न किया था और उसकी मां ने औपचारिक शिकायत दर्ज कराई थी।
दोषी का तर्क था कि पीड़िता द्वारा इस्तेमाल की गई चादर कभी जब्त नहीं की गई थी और मेडिकल जांच से पहले उसकी मां ने उसके कपड़े बदले थे। इससे फोरेंसिक जांच के निष्कर्ष अविश्वसनीय साबित होते हैं।
हालांकि, अपील को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि मेडिकल निष्कर्षों को साक्ष्यों की समग्रता के साथ पढ़ा जाना चाहिए और पीड़िता के निचले वस्त्र पर वीर्य के धब्बों की मौजूदगी अभियोजन पक्ष के मामले की पूरी तरह से पुष्टि करते हैं।
पीड़िता के कपड़े बदलने के विवाद के संबंध में पीठ ने कहा कि नौ वर्षीय बेटी के कपड़े गंदे मिलने व उसे अस्पताल ले जाने से पहले उन्हें बदलना एक मां का स्वाभाविक व मानवीय पहलू प्रतीत होता है।
यह भी कहा कि ऐसा कोई तथ्य रिकार्ड पर नहीं पेश किया गया, जिससे साबित हो कि साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ की गई थी या जांच एजेंसी या शिकायतकर्ता दोषी को झूठा फंसाने की कोशिश की गई हो।
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