'पत्नि को भरण-पोषण और घर का अधिकार अलग-अलग...', दिल्ली HC ने पति के हक में दिया सेशन कोर्ट का आदेश पलटा
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि पत्नी का आवास का अधिकार स्वतंत्र है, इसे आय छिपाने के आधार पर खत्म नहीं किया जा सकता। भरण-पोषण और आवास अलग-अलग हैं। कोर्ट न ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पत्नी का आवास का अधिकार एक स्वतंत्र कानूनी अधिकार है, जिसे केवल इस आधार पर खत्म नहीं किया जा सकता कि उसने अपनी आय छिपाई और उसे अंतरिम भरण-पोषण नहीं दिया गया। अदालत ने कहा कि भरण-पोषण और रहने का अधिकार दो अलग-अलग राहत हैं और दोनों को एक-दूसरे से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है।
न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा याचिकाकर्ता पत्नी की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थीं, जिसमें सत्र अदालत के आदेश को चुनौती दी गई थी। सत्र अदालत ने यह मानते हुए कि पत्नी ने अपनी आय से जुड़े अहम तथ्य छिपाए हैं, उसके लिए अंतरिम भरण-पोषण को निरस्त कर दिया था, लेकिन नाबालिग बच्चे के लिए दी जा रही राशि बरकरार रखी थी।
मामले के अनुसार, पत्नी ने घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत दहेज उत्पीड़न और मानसिक-मौखिक प्रताड़ना के आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी। मजिस्ट्रेट अदालत ने शुरुआत में पत्नी को 30 हजार रुपये प्रतिमाह अंतरिम भरण-पोषण दिया था, जिसे बाद में पत्नी और बेटे के लिए 15-15 हजार रुपये प्रतिमाह कर दिया गया। इसके खिलाफ दोनों पक्षों ने अपील दायर की।
हाई कोर्ट ने माना कि रिकार्ड से यह स्पष्ट है कि पत्नी ने अपनी वास्तविक आय और आर्थिक स्थिति स्पष्ट नहीं की। वह एमबीए डिग्रीधारक है और उसके पास पूर्व कार्य अनुभव भी है। इस कारण उसे अंतरिम भरण-पोषण न देने के फैसले में हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।
लेकिन अदालत ने यह भी कहा कि मौजूदा समय में पत्नी और नाबालिग बच्चा किराए का मकान खाली करने के बाद उसके भाई के घर रह रहे हैं, जहां वे केवल सहमति और सद्भावना के आधार पर ठहरे हुए हैं। अदालत ने कहा कि ऐसी अस्थायी व्यवस्था को स्थायी आवास नहीं माना जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि आय छिपाने का निष्कर्ष अपने आप पत्नी के आवास अधिकार को खत्म नहीं करता। घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 19 के तहत सुरक्षित आवास सुनिश्चित करना अदालत की जिम्मेदारी है, खासकर तब जब नाबालिग बच्चा भी साथ हो।
दिल्ली हाई कोर्ट ने पति को निर्देश दिया कि वह पत्नी और नाबालिग बच्चे के लिए किराए का आवास सुनिश्चित करने हेतु 10 हजार रुपये प्रतिमाह दे। साथ ही ट्रायल कोर्ट को मामले की सुनवाई तेज करने और बिना अनावश्यक देरी के साक्ष्य पूरे कराने के निर्देश भी दिए।

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