दिल्ली HC ने कहा-दृष्टिदोष वाले जवान सुरक्षा बलों के लिए सही नहीं, कलर ब्लाइंडनेस वाले 13 CISF प्रोबेशनर्स बर्खास्त
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि सुरक्षा बलों में दृष्टिदोष वाले जवान सही नहीं हैं। कोर्ट ने कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित 13 सीआईएसएफ प्रोबेशनर्स को बर्खास् ...और पढ़ें

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। केंद्रीय सैन्य पुलिस बल (सीएपीएफ) और असम राइफल्स (एआर) में दृष्टिदोष (कलर ब्लाइंडनेस) वाले लोगों की भर्ती के खिलाफ गृह मंत्रालय द्वारा जारी गाइडलाइंस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने अपनी मुहर लगा दी है। दिशा-निर्देश को चुनौती देने वाली अंजार अली खान सहित अन्य की याचिका पर गृह मंत्रालय के दिशानिर्देश को सही ठहराते हुए अदालत ने कहा कि केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) में सिपाही के तौर पर भर्ती हुए 13 प्रोबेशनर्स को उनके दृष्टिदोष के कारण नौकरी से निकालने के फैसले को बरकरार रखा।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद व न्यायमूर्ति विमल कुमार यादव की पीठ ने कहा कि 2013 के दिशानिर्देशों का उद्देश्य साफ है सीएपीएफ या एआर के जवान ऐसे जवान जिनमें दृष्टिदोष है, वे वर्दी के बीच फर्क नहीं कर पाते हैं, तो इस बात का खतरा है कि वे खुद को या अपने साथियों को बचाने या विद्रोहियों या आतंकवादी से ठीक से लड़ने में सक्षम नहीं होंगे।
पीठ ने निर्णय सुनाया कि 2013 के दिशानिर्देशों में ऐसे कर्मियों की भर्ती के संभावित बुरे असर बताए गए हैं। ऐसे में यह कोर्ट 2013 के दिशानिर्देशों काे मनमाना, अनुचित या गलत नहीं मानता है। पीठ ने उक्त टिप्पणी के साथ याचिकाकर्ताओं की 2013 के दिशानिर्देशों को संविधान का उल्लंघन बताने वाली याचिका खारिज कर दी।
याचिका के अनुसार में याचिकाकर्ताओं को 2015 में भर्ती किया गया था और मेडिकल जांच में उन्हें सेवा के लिए फिट पाया गया था। हालांकि, जब वे अपने-अपने प्रशिक्षण केंद्रों में प्रोबेशन पर थे, तो उनका कलर ब्लाइंडनेस टेस्ट कराया गया। सीआइएसएफ अस्पताल के डाक्टरों ने पाया कि उम्मीदवारों को दृष्टिदोष था। नतीजतन, उनके कमांडेंट ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया।
याचिकाकर्ताओं ने पहले सीआइएसएफ नियमों के तहत अपील में नौकरी से निकाले जाने को चुनौती दी। हालांकि, 2013 के नियमों के मद्देनजर उनकी अपीलें खारिज कर दी गईं। इसके बाद, उन्होंने नौकरी से निकाले जाने के साथ-साथ नियमों को भी चुनौती देने के लिए हाई कोर्ट का रुख किया।
हालांकि, नियमों को सही ठहराते हुए पीठ ने कहा कि जब उन्हें नौकरी से निकालने का फैसला लिया गया था, तब याचिकाकर्ता प्रोबेशन पर थे। पीठ ने कहा कि यह एक स्थापित कानून है कि प्रोबेशनर्स को स्थायी होने तक नौकरी में बने रहने का कोई पक्का अधिकार नहीं होता है और अगर वे अयोग्य पाए जाते हैं तो सक्षम अधिकारी उन्हें हटा सकता है। इस तरह एक प्रोबेशनर और एक स्थायी कर्मचारी को नौकरी से निकालने में फर्क होता है।
पीठ ने कहा कि सीआइएसएफ में काम करने वाले मेडिकल प्रैक्टिशनर्स याचिकाकर्ताओं की मेडिकल फिटनेस पर फैसला लेने के लिए सबसे सही हैं और उन पर कोई गलत इरादा होने का आरोप नहीं लगाया जा सकता।
हालांकि, पीठ ने याचिकाकर्ताओं को सीआईएसएफ में दूसरे पद भर्ती के लिए विचार करने के लिए एक प्रतिवेदन देने की भी छूट दी। पीठ ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं से ऐसे प्रतिवेदन मिलने पर सीआईएसएफ उक्त तिथि से 10 सप्ताह के अंदर अपना फैसला दे।

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