सैन्यकर्मी की पत्नी को विशेष पारिवारिक पेंशन देने में लग गए 45 साल, केंद्र सरकार को दिल्ली HC से झटका
दिल्ली हाई कोर्ट ने सशस्त्र बल ट्रिब्यूनल के फैसले को बरकरार रखते हुए एक सैन्यकर्मी की विधवा को विशेष पारिवारिक पेंशन देने का आदेश दिया है। 1978 में सैन्यकर्मी की मृत्यु के बाद, विधवा को 45 साल तक पेंशन के लिए संघर्ष करना पड़ा। कोर्ट ने केंद्र सरकार की याचिका को खारिज करते हुए, पेंशन स्वीकृति प्राधिकरण की त्रुटि पर चिंता जताई और विधवा को बकाया भुगतान करने का निर्देश दिया।

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। सरकारी तंत्र के ढुलमुल रवैये इससे स्पष्ट उदाहरण नहीं हो सकता कि 1978 में दिवंगत हुए एक सैन्यकर्मी की पत्नी 45 साल से विशेष पारिवारिक पेंशन की लड़ाई लड़ने को मजबूर थी। आखिरकार, दिल्ली हाई कोर्ट के अहम निर्णय से अब दिवंगत सैन्यकर्मी की पत्नी को उनका हक मिलेगा।
न्यायमूर्ति सी हरिशंकर व न्यायमूर्ति ओपी शुक्ला की पीठ ने विशेष पारिवारिक पेंशन का बकाया भुगतान करने संबंधी सशस्त्र बल ट्रिब्यूनल (एएफटी) के आदेश को बरकरार रखते हुए प्रतिवादी को उनका हक देने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा प्रतिवादी महिला को विशेष पारिवारिक पेंशन तुरंत जारी करनी चाहिए थी। 
अदालत ने चिंता व्यक्त की कि अजीब बात है कि पेंशन स्वीकृति प्राधिकरण ने पांच मार्च 1979 को प्रतिवादी के विशेष पारिवारिक पेंशन के दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया कि हवलदार पूरन चंद्र सिंह बिष्ट की मृत्यु सैन्य सेवा के कारण नहीं हुई थी।
हम यह समझने में असफल हैं कि कोर्ट ऑफ इंक्वायरी (सीओआई) के विपरीत निष्कर्ष के बावजूद, ऐसा निष्कर्ष कैसे निकाला जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि सीओआई ने उनके पति की मृत्यु सैन्य सेवा के कारण पाया था, जबकि पेंशन स्वीकृति प्राधिकरण ने स्वयं उन्हें लाभ देने से इनकार करके गलती की है। 
विशेष पारिवारिक पेंशन न दिए जाने को हवलदार पूरन चंद्र सिंह बिष्ट की पत्नी गुड्डी बिष्ट ने वर्ष 2015 में ही चुनौती दी थी। गुड्डी के पति की सेवाकाल के दौरान बिजली के झटके से मृत्यु हो गई थी और उन्होंने 1979 में ही विशेष पारिवारिक पेंशन के लिए आवेदन किया था।
अदालत ने कहा कि अजीब बात है कि पेंशन स्वीकृति प्राधिकरण ने प्रतिवादी के दावे को खारिज करते हुए उन्हें साधारण पारिवारिक पेंशन प्रदान कर दी। उसे इस निर्णय के विरुद्ध छह महीने के भीतर अपील करने के अधिकार के बारे में भी बताया गया था, जिसका उसने लाभ नहीं उठाया। 
हालांकि, 2015 में, प्रतिवादी महिला ने विशेष पारिवारिक पेंशन की मांग करते हुए अपील की, जिसे स्वीकृत कर दिया गया, लेकिन यह लाभ 12 अक्टूबर 2015 से प्रभावी हुआ। अदालत ने रिकार्ड पर लिया कि इसके बाद गुड्डी ने एएफटी में याचिका दायर कर अपने पति की मृत्यु की तिथि से यानी 30 अप्रैल 1978 से 11 अक्टूबर 2015 तक की अवधि के लिए, ब्याज सहित विशेष पारिवारिक पेंशन के बकाया की मांग की।
जिसे एएफटी ने स्वीकार कर लिया था। इसके विरुद्ध केंद्र सरकार ने हाई कोर्ट का रुख किया। केंद्र सरकार की याचिका खारिज करते हुए पीठ ने एएफटी का निर्णय बरकरार रखा। पीठ ने कहा कि यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि पेंशन स्वीकृति प्राधिकारी सीओआई के निर्णय के विरुद्ध अपील नहीं कर सकता।
अदालत ने कहा कि क्योंकि याचिकाकर्ता एजेंसी ने पांच मार्च 1979 को एक गंभीर त्रुटि की थी, इसलिए अदालत महिला द्वारा विशेष पारिवारिक पेंशन के लिए केंद्र सरकार से पुनः संपर्क करने में की गई देरी को उसके मामले के लिए अहम नहीं मानते।

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