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    'POCSO एक्ट में पीड़िता के मुकरने पर भी सजा रहेगी बरकरार', दुष्कर्म मामले में दिल्ली HC ने सुनाया अहम फैसला

    Updated: Sun, 28 Dec 2025 09:33 AM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने POCSO मामले में सौतेली बेटी से दुष्कर्म के दोषी सौतेले पिता की 20 साल की सजा बरकरार रखी। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के बयान बदलने के ...और पढ़ें

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    दिल्ली हाई कोर्ट ने POCSO मामले में सौतेली बेटी से दुष्कर्म के दोषी सौतेले पिता की 20 साल की सजा बरकरार रखी। सांकेतिक तस्वीर

    पीटीआई, नई दिल्लीदिल्ली हाई कोर्ट ने एक सौतेले पिता द्वारा अपनी नाबालिग सौतेली बेटी से दुष्कर्म के मामले में ट्रायल कोर्ट की ओर से दी गई 20 साल की कैद की सजा को बरकरार रखा है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि POCSO एक्ट के तहत दोषी को सिर्फ इसलिए बरी नहीं किया जा सकता क्योंकि पीड़िता ट्रायल के दौरान अपने बयान से मुकर गई, खासकर जब वैज्ञानिक और मेडिकल सबूत मौजूद हों।

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    जस्टिस अमित महाजन की बेंच ने आरोपी की अपील खारिज करते हुए कहा कि बच्ची पीड़िताओं का बाद में बयान बदलना अक्सर परिवार के दबाव, आर्थिक निर्भरता और घर टूटने के डर से होता है। कोर्ट ने जोर दिया कि ऐसे मामलों में बच्चे को अपराधी को बचाने का बोझ नहीं डाला जा सकता।

    मामला मार्च 2016 का है, जब पीड़िता की उम्र 12 साल से कम थी। उसने आरोप लगाया था कि आधी रात को सोते समय उसके सौतेले पिता ने उसके साथ यौन उत्पीड़न किया। पीड़िता ने यह बात अपनी मां को बताई, जिसके बाद पुलिस में शिकायत दर्ज हुई और CRPCकी धारा 164 के तहत उसका बयान दर्ज किया गया।

    हालांकि, ट्रायल के दौरान पीड़िता, उसकी मां और बहन ने अपने बयान बदल दिए और अभियोजन पक्ष का समर्थन नहीं किया। आरोपी ने दलील दी कि घटना की एकमात्र चश्मदीद गवाह (पीड़िता) ने ही केस का समर्थन नहीं किया, इसलिए उसे बरी किया जाए।

    कोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा, "एक बच्चा जिसे ऐसे व्यक्ति को दोषी ठहराने की स्थिति का सामना करना पड़ता है जो उसे आश्रय और आर्थिक स्थिरता देता है, वह निस्संदेह एक गंभीर संघर्ष का सामना करता है। बच्चे की जीवित रहने की प्रवृत्ति, समाज से अलग-थलग पड़ने का डर और परिवार को बचाने की इच्छा पीड़िता को सच से पीछे हटने के लिए मजबूर कर सकती है।"

    जस्टिस महाजन ने आगे कहा कि इस मामले में भी पीड़िता के बदले रवैये का पता उसके धारा 164 के बयान से ही लगाया जा सकता है। कोर्ट ने वैज्ञानिक सबूतों का हवाला देते हुए कहा कि फोरेंसिक साइंस लेबोरेट्री (FSL) रिपोर्ट में पीड़िता के अंडरगारमेंट से मिला DNA आरोपी से मैच करता है। ऐसे में POCSO एक्ट की धारा 29 और 30 के तहत दोष की धारणा को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

    कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि विधायिका ने POCSO एक्ट के तहत स्पेशल जुवेनाइल पुलिस यूनिट या स्थानीय पुलिस को ऐसे अपराधों की पीड़ित बच्चों को शेल्टर होम भेजने और तुरंत व्यवस्था करने के लिए बाध्य किया है, ताकि बच्चे दबाव में न आएं।

    यह फैसला POCSO मामलों में पीड़िताओं के होस्टाइल हो जाने की बढ़ती घटनाओं के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने साफ कहा कि बच्ची पीड़िता के बाद के रवैये को अलग-थलग करके नहीं देखा जा सकता, खासकर जब वैज्ञानिक सबूत मजबूत हों।इस फैसले से बच्चों के यौन शोषण के मामलों में न्यायिक दृष्टिकोण मजबूत हुआ है, जहां परिवारिक दबाव अक्सर न्याय की राह में बाधा बनता है।