'मानसिक बीमारी को अनुशासनहीनता नहीं मान सकते', सीआरपीएफ अफसर को दिल्ली हाई कोर्ट से मिली राहत
दिल्ली हाई कोर्ट ने एक सीआरपीएफ अफसर को राहत देते हुए कहा कि मानसिक बीमारी को अनुशासनहीनता नहीं माना जा सकता। अदालत ने मानसिक बीमारी से जूझ रहे अफसर क ...और पढ़ें

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के एक अधिकारी को राहत देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि मानसिक बीमारी को गलत नहीं माना जा सकता है और मानसिक स्वास्थ्य की वजह से होने वाले व्यवहार को अनुशासनहीनता नहीं माना जा सकता है।
याचिकाकर्ता छत्तर सिंह की याचिका को स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम- 2017 का उद्देश्य यह है कि ऐसी बीमारी वाले लोगों को अलग-थलग न किया जा सके और उनके साथ भेदभाव न हो या उन्हें संस्थागत प्रतिक्रियाओं का सामना न करना पड़े, जिससे उनकी हालत और बिगड़ जाए।
याचिकाकर्ता काे सीआरपीएफ अधिकारी को अनुशासनहीनता और बात न मानने के आरोप में पांच साल तक कोई भी इंक्रीमेंट न देकर सजा दी गई थी। हालांकि, कई मेडिकल जांच से पता चला कि याचिकाकर्ता कंपल्सिव पर्सनैलिटी डिसआर्डर (ओसीडी) और डिप्रेशन से जूझ रहे थे। अदालत ने पाया कि याची के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई मैकेनिकल तरीके से की गई थी और मानसिक स्थिति, मेडिकल सलाह और कानूनी सुरक्षा को नजरअंदाज किया गया।
याचिका के अनुसार, याची को उसके वरिष्ठ ने ड्यूटी से गैरहाजिर रहने, घमंडी व्यवहार और अपनी ड्यूटी ठीक से न करने के लिए डांटा था। याची पर एक सूबेदार के साथ हाथापाई का आरोप है, जिसके कारण उसे सस्पेंड कर दिया गया।
इसके बाद याची पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई और उनकी पेंशन और ग्रेच्युटी में 30 परसेंट की कटौती के साथ अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा दी गई। इसके साथ ही याची से उनके मेडल और अवार्ड भी छीन लिए गए। हालांकि, अदालत ने अनुशासनात्मक कार्रवाई संबंधी आदेश को रद करते हुए आठ सप्ताह के अंदर भत्ता सहित अन्य लाभ दिया जाए।

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