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    पूर्व रेल मंत्री की मौत के 50 साल बाद क्यों उठी दोबारा जांच की मांग ? दिल्ली HC ने याचिका पर उठाया सवाल

    Updated: Tue, 04 Nov 2025 05:16 PM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने पूर्व रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा की मृत्यु के 50 साल बाद दोबारा जांच की मांग पर सवाल उठाए हैं। भाजपा नेता अश्विनी कुमार चौबे की याचिका पर अदालत ने कहा कि इतने लंबे समय बाद जांच की मांग कैसे की जा सकती है। अदालत ने याचिकाकर्ता को चेतावनी भी दी है। मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर को होगी। चौबे ने अदालत की निगरानी में नए सिरे से जांच की मांग की है।

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    दिल्ली हाई कोर्ट ने पूछा- 50 साल बाद दोबारा जांच की कैसे की जा सकती है मांग, 11 नवंबर को होगी सुनवाई।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। पूर्व रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा की मृत्यु के 50 साल से भी ज्यादा समय बाद मामले की दोबारा जांच की मांग वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता अश्विनी कुमार चौबे की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने सवाल उठाया है।

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    न्यायमूर्ति विवेक चौधरी व न्यायमूर्ति मनोज जैन की पीठ ने कहा कि ऐसे नहीं किया जा सकता है कि 50 साल बाद कोई आवेदन लगा दे और बोले इसमें दोबारा जांच होनी चाहिए।

    अदालत ने कहा कि 50 साल बाद दोबारा जांच की मांग कैसे की जा सकती है? मामले की सुनवाई 11 नवंबर के लिए सूचीबद्ध करते हुए पीठ ने चेतावनी दी कि यदि भाजपा नेता अपना पक्ष रखने में विफल रहते हैं तो उन्हें कठोर कीमत चुकानी पड़ेगी।

    अश्विनी चौबे ने मिश्रा की मौत मामले की अदालत की निगरानी में नए सिरे से जांच की मांग की है। चौबे ने दावा किया है कि मिश्रा की हत्या के लिए गलत लोगों को दोषी ठहराया गया है।

    सीबीआई ने हत्याकांड की पूरी जांच नहीं की। दो जनवरी, 1975 को बिहार के समस्तीपुर में एक रेलवे परियोजना का उद्घाटन करते समय ग्रेनेड विस्फोट में उनकी हत्या कर दी गई थी।

    सीबीआई की जांच में सामाजिक-आध्यात्मिक संगठन के सदस्यों को हत्या के लिए जिम्मेदार पाया गया था और संतोषानंद, सुदेवानंद, गोपालजी और रंजन द्विवेदी को हत्या के लगभग चार दशक बाद 2014 में दिल्ली की एक ट्रायल कोर्ट ने दोषी करार दिया था।

    चौबे ने अब दोषियों द्वारा दायर अपीलों में हस्तक्षेप याचिका दायर की है। उन्होंने तर्क दिया है कि ललित नारायण मिश्रा की मृत्यु एक बड़े राजनीतिक विवाद का परिणाम थी और इसका उद्देश्य जनता के एक शक्तिशाली नेता से छुटकारा पाना था।

    याचिका में दावा किया गया कि जयप्रकाश नारायण से मिलने के बाद ललित नारायण तत्कालीन सरकार के खिलाफ जेपी आंदोलन में शामिल होने वाले थे, लेकिन उससे पहले ही उनकी हत्या कर दी गई।

    उन्होंने अक्टूबर 1978 की बिहार सीआईडी रिपोर्ट, फरवरी 1979 की न्यायविद वीएम तारकुंडे रिपोर्ट और 1978 में एक अखबार द्वारा की गई जांच का हवाला देते हुए तर्क दिया कि सीबीआई ने जांच का रुख बदलकर आनंद मार्गी सदस्यों को दोषी ठहराया।

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