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    दिल्ली हाईकोर्ट का अहम निर्णय, आपसी सहमति से तलाक में एक साल अलग रहने की कानूनी शर्त अनिवार्य नहीं

    Updated: Wed, 17 Dec 2025 09:35 PM (IST)

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि आपसी सहमति से तलाक के लिए एक साल तक अलग रहने की कानूनी शर्त अनिवार्य नहीं है। कोर्ट ने इस श ...और पढ़ें

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    विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। तलाक की कार्यवाही पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाले एक फैसले में दिल्ली हाईकोर्ट ने अहम निर्णय पारित किया है। अदालत ने कहा कि आपसी सहमति से तलाक के लिए अर्जी दाखिल करने से पहले एक साल तक अलग रहने की कानूनी शर्त अनिवार्य नहीं है और उचित मामलों में पारिवारिक अदालत और हाईकोर्ट इसे माफ कर सकते हैं।

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    न्यायमूर्ति नवीन चावला, न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी व न्यायमूर्ति रेनू भटनागर की संपूर्ण पीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम-1955 की धारा 13बी (एक) के तहत बताई गई शर्त काे निर्देशिका बताया और कहा कि यह अनिवार्य नहीं है। पीठ ने कहा कि धारा 13बी (एक), जो इस अधिनियम के प्रविधानों के अधीन वाक्यांश से शुरू होती है, उसे अधिनियम की धारा 14(एक) के साथ सामंजस्य बिठाकर पढ़ा जाना चाहिए। यह अदालत को असाधारण दुराचार वाले मामलों में कानूनी प्रतीक्षा अवधि को माफ करने की अनुमति देता है।

    पीठ ने कहा कि जब यह सुविधा विवादित मामलों में भी उपलब्ध है, तो आपसी सहमति से तलाक में ऐसी छूट देने से इन्कार करने का कोई कानूनी औचित्य नहीं है। अदालत ने उक्त निर्णय आपसी सहमति से तलाक के लिए कोर्ट जाने से पहले पक्षकारों ने एक साल तक अलग रहना जरूरी है या नहीं, इस बारे में अलग-अलग व्याख्याओं से उठे एक मामले पर सुनवाई करते हुए दिया।

    संकल्प सिंह बनाम प्रार्थना चंद्र मामले में अपने पहले के निर्णय की पुष्टि करते हुए अदालत ने फैसला सुनाया कि पारिवारिक अदालत और हाई कोर्ट के पास तलाक के लिए पहली अर्जी पर सुनवाई करने का अधिकार है, भले ही अलग रहने का एक साल पूरा न हुआ हो। अदालत ने इसके साथ ही पूर्व के उस निर्णय को पलट दिया जिसमें जोर दिया गया था कि एक साल तक अलग रहने की शर्त अनिवार्य है और इसमें छूट नहीं दी जा सकती।

    हालांकि, संपूर्ण पीठ ने जोर दिया कि 13बी की मुख्य शर्त दोनों पक्षों की आजाद स सोच समझकर दी गई सहमति है, न कि समय-सीमा का सख्ती से पालन करना। पीठ ने कहा कि अनिच्छुक पति-पत्नी को टूटी हुई शादी में कानूनी तौर पर बंधे रहने के लिए मजबूर करना संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा में अनुचित दखल हो सकता है।

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