'हर वादाखिलाफी शादी का झूठा वादा नहीं हो सकती...', पड़ोसी से दुष्कर्म के आरोपी को दिल्ली HC ने दी जमानत
दिल्ली उच्च न्यायालय ने दुष्कर्म के एक मामले में आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि हर वादाखिलाफी को शादी का झूठा वादा मानना उचित नहीं है। अदालत ने झूठे वादे और वादाखिलाफी के बीच अंतर स्पष्ट किया। अदालत ने यह भी कहा कि आपराधिक कानून को सहमति से बने रिश्ते में खटास आने पर बदला लेने के साधन के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

दुष्कर्म आरोपित को जमानत देते हुए अदालत ने स्पष्ट किया।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। 20 वर्षीय युवती से दुष्कर्म के मामले में आरोपी को जमानत देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने शादी करने के झूठे वादे और वादाखिलाफी के बीच का अंतर समझाया है।
न्यायमूर्ति रविंदर डुडेजा की पीठ ने कहा कि दुष्कर्म के आरोपों पर विचार करते समय हर वादाखिलाफी को शादी का झूठा वादा मानना उचित नहीं है। पीठ ने कहा कि झूठा वादा करने और अभियुक्त द्वारा वादाखिलाफी करने में अंतर है।
तथ्यों को स्पष्ट करते हुए पीठ ने कहा कि झूठे वादे के मामले में अभियुक्त का शुरू से ही अभियोक्ता से शादी करने का कोई इरादा नहीं होता और उसने सिर्फ अपनी पूर्ति के लिए अभियोक्ता से शादी का झूठा वादा करके उसे धोखा दिया होगा या छला होगा।
जबकि वादाखिलाफी के मामले में इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि अभियुक्त ने शादी करने के इरादे से वादा किया हो, लेकिन बाद में किसी अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण वह अपना वादा पूरा नहीं कर पाया हो। ऐसे में हर वादाखिलाफी को शादी का झूठा वादा मानना उचित नहीं है।
आरोपी पर अपनी पड़ोसी के साथ शादी का झूठा वादा करके दो साल तक दुष्कर्म करने का आरोप है। यह भी आरोप है कि उसने शिकायतकर्ता को होटलों में बुलाया और कई मौकों पर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए।
युवती ने आरोप लगाया था कि जब भी शिकायतकर्ता ने शादी के लिए जोर दिया, तो उसने किसी न किसी बहाने से इनकार कर दिया। यह भी कहा कि वे शादी करने के लिए तीस हजारी कोर्ट गए थे, लेकिन आरोपी अपने माता-पिता को फोन करने का बहाना बनाकर वहां से चला गया और नहीं लौटा।
हालांकि, पीठ ने आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि उसके और शिकायतकर्ता के बीच संबंध सहमति से थे। पीठ ने कहा कि आपराधिक कानून को सहमति से बने रिश्ते में खटास आने पर जबरदस्ती या बदला लेने के साधन के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

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