Back Image

Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    गुजारा भत्ते की मांग खारिज, दिल्ली HC ने कहा- आत्मनिर्भर जीवनसाथी को नहीं मिल सकती वित्तीय सहायता

    Updated: Sat, 18 Oct 2025 11:24 PM (IST)

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुजारा भत्ते की मांग को खारिज करते हुए कहा कि आत्मनिर्भर जीवनसाथी वित्तीय सहायता का हकदार नहीं है। अदालत ने स्पष्ट किया कि गुजारा भत्ता केवल उन लोगों के लिए है जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं। न्यायालय ने तलाकशुदा पत्नी की याचिका खारिज कर दी क्योंकि वह आत्मनिर्भर थी।

    Hero Image

    प्रतीकात्मक तस्वीर।

    विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। गुजारा भत्ता की मांग के मुकदमे में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अहम निर्णय सुनाते हुए कहा कि अगर जीवनसाथी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और स्वतंत्र है तो उसे गुजारा भत्ता नहीं दिया जा सकता।

    वास्तविक आवश्यकता प्रदर्शित करनी होगी

    न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल व न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने कहा कि यह एक स्थापित सिद्धांत है कि स्थायी गुजारा भत्ता सामाजिक न्याय के एक उपाय के रूप में है और इसे दो सक्षम व्यक्तियों की आर्थिक स्थिति को समृद्ध या समान बनाने के साधन के रूप में नहीं लिया जा सकता है। अदालत ने जोर देकर कहा कि कानून के अनुसार गुजारा भत्ता मांगने वाले व्यक्ति को वित्तीय सहायता की वास्तविक आवश्यकता प्रदर्शित करनी होगी।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    14 महीने में टूट गई शादी

    अदालत ने यह टिप्पणी पारिवारिक न्यायालय के एक निर्णय को बरकरार रखते हुए की। इसमें पारिवारिक न्यायालय ने एक महिला को स्थायी गुजारा भत्ता देने से इन्कार करते हुए पति को क्रूरता के आधार पर तलाक की मंजूरी दे दी थी। याचिका के अनुसार दंपती का पहले तलाक हो चुका था और यह उनकी दूसरी शादी थी। उन्होंने जनवरी 2010 में विवाह किया था, लेकिन 14 महीने के भीतर अलग हो गए।

    पत्नी है रेलवे में ग्रुप-ए की अधिकारी

    पति एक अधिवक्ता है और पत्नी भारतीय रेलवे यातायात सेवा (आईआरटीएस) की ग्रुप-ए अधिकारी थी। पति ने पत्नी पर मानसिक और शारीरिक क्रूरता का आरोप लगाया। उसने पत्नी पर अपमानजनक भाषा का प्रयोग करने के साथ ही वैवाहिक अधिकारों से वंचित करने और पेशेवर एवं सामाजिक क्षेत्रों में अपमानित करने का आरोप लगाया था। वहीं, महिला ने इन आरोपों का खंडन किया और पति पर क्रूरता का आरोप लगाया।

    भत्ते का निर्णय विवेकपूर्ण तरीके से होना चाहिए

    पारिवारिक न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखते हुए पीठ ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के तहत न्यायिक विवेकाधिकार का प्रयोग गुजारा भत्ता देने के लिए नहीं किया जा सकता। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता महिला आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और स्वतंत्र है और ऐसे मामले में रिकाॅर्ड पर पेश तथ्यों के आधार पर विवेकपूर्ण तरीके से निर्णय किया जाना चाहिए।

    न्यायालय के आदेश में कोई दोष नहीं 

    पारिवारिक न्यायालय ने तलाक मंजूर करते हुए दर्ज किया कि पत्नी ने तलाक के लिए सहमति देने हेतु वित्तीय समझौते के रूप में 50 लाख रुपये की मांग की थी। यह बात उसके हलफनामे में कही गई थी और जिरह के दौरान भी दोहराई गई। हालांकि, पारिवारिक न्यायालय ने इसकी अनुमति देने से इनकार कर दिया। मामले पर विचार करने के बाद पीठ ने कहा कि न्यायालय के आदेश में कोई दोष नहीं है।

    मानसिक क्रूरता के समान

    महिला ने पति के विरुद्ध अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया और उसकी मां के लिए गंदी गालियां दीं, जो मानसिक क्रूरता के समान है। पीठ ने महिला की गुजारा भत्ता की मांग को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि वह एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी है और अच्छी-खासी आय अर्जित करती है और आर्थिक रूप से स्वतंत्र है।

    यह भी पढ़ें- दीपावली की भीड़ को देखते हुए दिल्ली मेट्रो का बड़ा फैसला- पिंक, मैजेंटा और ग्रे लाइनों का बदला टाइमटेबल