दिल्ली HC की दो टूक, बच्चे के कल्याण में मातृत्व जिम्मेदारियों की अनदेखी नहीं हो सकती; पिता को मिली कस्टडी
दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा कि बच्चे के कल्याण में मातृत्व जिम्मेदारियों की अनदेखी नहीं की जा सकती। अदालत ने बच्चे की कस्टडी पिता को सौंपते हुए कहा कि मां बच्चे की देखभाल करने में असमर्थ है। अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि मातृत्व एक पवित्र जिम्मेदारी है और बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है। यह फैसला उन माताओं के लिए एक सबक है जो अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से नहीं लेतीं।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि यदि कोई मां विवाहेतर संबंध में लिप्त होने के साथ-साथ अपने बच्चे की जानबूझकर अनदेखी और मातृत्व कर्तव्यों से उदासीनता दिखाती है, तो उसे बच्चे की अंतरिम कस्टडी से वंचित किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने यह आदेश देते हुए स्पष्ट किया कि केवल विवाहेतर संबंध का आरोप या उसका प्रमाण कस्टडी देने या न देने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता, लेकिन जब ऐसा व्यवहार मातृत्व जिम्मेदारियों की उपेक्षा और जानबूझकर बच्चे से दूरी के साथ जुड़ जाता है, तो यह अदालत के लिए निर्णय को उचित ठहराने के लिए पर्याप्त कारण बन जाता है।
अदालत ने कहा कि बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है और मां के व्यवहार से यह सिद्ध होता है कि उसने अपने मातृत्व दायित्वों का त्याग किया।
अदालत ने परिवार न्यायालय के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें चार वर्षीय बच्चे की अंतरिम कस्टडी पिता को दी गई थी, क्योंकि मां ने लगातार बच्चे की अनदेखी, अदालत की कार्यवाही से दूरी, और लापरवाही दिखाई थी।
दिल्ली हाई कोर्ट ने महिला की याचिका खारिज करते हुए बच्चे की अंतरिम कस्टडी पिता के पास ही रहने का आदेश बरकरार रखा।
यह दंपती फरवरी 2020 में विवाह के बंधन में बंधा था और अक्टूबर 2023 में अलग हो गया। पिता ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी कई बार बिना बताए घर छोड़ देती थी और कई अवसरों पर बच्चे को अकेला छोड़ देती थी। उसने यह भी दावा किया कि पत्नी का एक विवाहित व्यक्ति के साथ संबंध था।
परिवार न्यायालय की सुनवाई के दौरान महिला कई बार समन और गैर-जमानती वारंट जारी होने के बावजूद अदालत में पेश नहीं हुई। यहां तक कि उसकी मां ने अदालत को बताया कि वह एक ऐसे व्यक्ति के साथ भाग गई है, जिसके पहले विवाह से दो बच्चे हैं।
इन परिस्थितियों को देखते हुए परिवार न्यायालय ने बच्चे की अंतरिम कस्टडी पिता को सौंप दी, जबकि मां को केवल सीमित मुलाकात की अनुमति दी गई। महिला ने इस आदेश को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी।
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