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    'जनता का विश्वास कोर्ट पर कम हो जाएगा अगर...' किस मुद्दे पर CJI बीआर गवई जताई चिंता? पढ़ें कॉलेजियम पर क्या कहा

    Updated: Wed, 04 Jun 2025 09:49 PM (IST)

    Justice Yashwant Varma case सीजेआइ (CJI) ने कहा कि सेवानिवृति के बाद के इन एंगेजमेंट का समय और प्रकृति न्यायपालिका की ईमानदारी में जनता का भरोसा कमजोर कर सकती हैं क्योंकि इससे धारणा बन सकती है कि न्यायिक निर्णय भविष्य की सरकारी नियुक्तियों या राजनीतिक भागीदारी की संभावना से प्रभावित थे।

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    न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और कदाचार की घटनाएं न्यायपालिका में जनता का विश्वास खत्म कर सकती हैं: सीजेआई।(फाइल फोटो)

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने कहा है कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और कदाचार की घटनाएं न्यायपालिका में जनता का विश्वास खत्म कर सकती हैं। ऐसी घटनाओं से जनता के विश्वास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे पूरी व्यवस्था की सत्यनिष्ठा में विश्वास कम हो सकता है।

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    हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रणाली में पुन: विश्वास स्थापित करने का रास्ता त्वरित, निर्णायक और पारदर्शी कार्रवाई में निहित है। भारत में जब भी ऐसे मामले प्रकाश में आए, सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे कदाचार से निबटने के लिए लगातार, तत्काल और उचित कदम उठाए हैं। सीजेआइ ने यह बात यूनाइटेड किंग्डम (यूके) के सुप्रीम कोर्ट में न्यायिक वैधता और सार्वजनिक विश्वास बनाए रखने के विषय पर आयोजित गोलमेज सम्मेलन में बोलते हुए कही।

    सीजेआइ ने क्यों जताई चिंता 

    सीजेआइ ने सेवानिवृति के तुरंत बाद न्यायाधीशों के पद स्वीकार करने या इस्तीफा देकर चुनाव लड़ने पर भी गंभीर टिप्पणी की। जस्टिस गवई ने कहा कि यदि कोई न्यायाधीश सेवानिवृति के तुरंत बाद कोई सरकारी पद स्वीकार करता है या चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा देता है तो ये चीजें महत्वपूर्ण नैतिक चिंताओं को जन्म देती हैं और पब्लिक स्क्रूटनी को आमंत्रित करती हैं।

    उन्होंने कहा कि किसी न्यायाधीश का किसी राजनैतिक पद के लिए चुनाव लड़ने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के बारे में संदेह पैदा हो सकता है, क्योंकि इसे हितों के टकराव या सरकार का पक्ष लेने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है।

    सीजेआइ ने कहा कि सेवानिवृति के बाद के इन एंगेजमेंट का समय और प्रकृति न्यायपालिका की ईमानदारी में जनता का भरोसा कमजोर कर सकती हैं, क्योंकि इससे धारणा बन सकती है कि न्यायिक निर्णय भविष्य की सरकारी नियुक्तियों या राजनीतिक भागीदारी की संभावना से प्रभावित थे।

    जस्टिस गवई ने कहा कि न्यायपालिका की विश्वस्नीयता और स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए उन्होंने और उनके कई सहयोगियों ने सेवानिवृति के बाद सरकार की कोई भी भूमिका य पद न स्वीकार करने की शपथ ली है।

    सीजेआइ की ये टिप्पणियां सरकारी आवास से बड़ी मात्रा में नगदी मिलने के मामले में आरोपों का सामना कर रहे इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के मामले को देखते हुए महत्वपूर्ण है।

    सीजेआइ ने कोलेजियम प्रणाली को भी उचित ठहराया

    सीजेआइ बीआर गवई ने यूके में आयोजित सम्मेलन में न्यायपालिका की स्वतंत्रता और स्वायत्तता पर भी जोर दिया।

    उन्होंने न्यायाधीशों की नियुक्ति की कोलेजियम प्रणाली को भी उचित ठहराया। जस्टिस गवई ने कहा कि 1993 तक सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में अंतिम निर्णय कार्यपालिका का होता था। उन्होंने कहा कि इस अवधि के दौरान कार्यपालिका ने दो बार सीजेआइ की नियुक्ति में वरिष्ठ न्यायाधीशों को दरकिनार कर दिया, जो स्थापित परंपरा के खिलाफ था।

    1993 और 1998 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के संवैधानिक प्रविधानों की व्याख्या की सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति के लिए कोलिजियम प्रणाली स्थापित की। जस्टिस गवई ने कहा कि कोलेजियम प्रणाली का उद्देश्य कार्यपालिका के हस्तक्षेप को कम करना और नियुक्तियों में न्यायपालिका की स्वायत्तता बनाए रखना है। कहा कि कोलेजियम प्रणाली की आलोचना हो सकती है, लेकिन कोई भी समाधान न्यायिक स्वतंत्रता की कीमत पर नहीं आना चाहिए।

    न्यायाधीशों को बाहरी नियंत्रण से मुक्त होना चाहिए। सीजेआइ ने भारत में न्यायपालिका में पारदर्शिता और जनता का भरोसा बनाए रखने के लिए अपनाए गए तरीकों का भी जिक्र किया जिसमें न्यायाधीशों द्वारा स्वैच्छिक रूप से संपत्ति की घोषणा करना और न्यायाधीश बनने से पहले अगर कोई न्यायाधीश किसी मामले में वकील के तौर पर पेश हो चुका है या उसका उस केस से कोई संबंध रहा है तो, ऐसी स्थिति में उस न्यायाधीश का सुनवाई से स्वयं को अलग कर लेने की परंपरा का भी उदाहरण दिया।