Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    सेक्स चेंज कराने पर नौसेना अधिकारी को किया था बर्खास्त, दिल्ली HC ने रक्षा मंत्रालय से AFT पर मांगा जवाब

    Updated: Mon, 27 Oct 2025 10:09 PM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने एक नौसेना अधिकारी की याचिका पर रक्षा मंत्रालय से जवाब मांगा है कि क्या सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) अन्य कानूनों की वैधता पर निर्णय ले सकता है। अदालत ने मामले में न्यायमित्र नियुक्त किया और सभी पक्षों को लिखित जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। यह याचिका एक अधिकारी की बर्खास्तगी से जुड़ी है, जिसने सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी करवाई थी। अगली सुनवाई 28 नवंबर को होगी।

    Hero Image

    क भारतीय नौसेना अधिकारी की याचिका पर अदालत ने स्थिति स्पष्ट करने का दिया आदेश।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) से जुड़ी याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने रक्षा मंत्रालय को अपना पक्ष रखने के लिए कहा है। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय, न्यायमूर्ति सी हरिशंकर व न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुल्का की पूर्ण पीठ ने रक्षा मंत्रालय से पूछा है कि क्या सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) सशस्त्र बल न्यायाधिकरण अधिनियम, 2007 के अलावा अन्य कानूनों की संवैधानिक वैधता पर निर्णय ले सकता है?

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    नौसेना अधिकारी मनीष कुमार गिरि उर्फ सबी गिरि की याचिका पर पूर्ण पीठ ने कहा कि इस मामले में रक्षा मंत्रालय का रुख महत्वपूर्ण है क्योंकि इस मामले का परिणाम थल सेना, नौसेना और वायु सेना सहित सभी सशस्त्र बलों के कर्मियों पर प्रभाव डालेगा।

    पीठ ने कहा कि अदालत स्पष्ट करती है कि चूंकि इस मामले का प्रभाव नौसेना के अलावा थल सेना और वायु सेना सहित सभी सशस्त्र बलों के कर्मियों पर पड़ सकता है, इसलिए हम यह प्रावधान करते हैं कि इस मामले में प्रतिवादियों के वकील को निर्देश रक्षा मंत्रालय के सचिव या उनके द्वारा उक्त उद्देश्य के लिए नामित किसी अन्य उच्च पदस्थ अधिकारी द्वारा ही प्रदान किए जाएंगे।

    साथ ही पीठ ने मामले में अदालत के सहयोग के लिए वरिष्ठ वकील गौतम नारायण को न्यायमित्र भी नियुक्त किया। पीठ ने सभी पक्षकारों काे अपने-अपने लिखित प्रस्तुतियां दाखिल करने का निर्देश दिया। साथ ही न्यायमित्र सहित सभी पक्षकार विधिवत पृष्ठांकित निर्णयों का एक समूह भी 14 नवंबर तक दाखिल करने का निर्देश दिया। मामले में अगली सुनवाई 28 नवंबर को होगी।

    मामले को लेकर कुछ सवाल तैयार करते हुए दो सदस्यीय पीठ ने इसे पूर्ण पीठ को भेजा था। यह याचिका भारतीय नौसेना अधिकारी द्वारा दायर की गई थी। जिसमें सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी के बाद उन्हें सेवा से बर्खास्त करने के आदेश को रद करने की मांग की गई थी। जिनके तहत याचिकाकर्ता को सेवा से बर्खास्त किया गया था। याचिका में तर्क दिया गया कि ये प्रावधान ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की पहचान को मान्यता नहीं देते हैं।

    हालांकि, केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को कदाचार के आधार पर हटाया गया था क्योंकि उसके लंबे बाल, नेल पाॅलिश और कटी हुई भौहें पाई गईं थीं और नौसेना अधिकारियों को सूचित किए बिना लिंग परिवर्तन सर्जरी करवाई थी। इतना ही नहीं याचिकाकर्ता आठ बार बिना छुट्टी के अनुपस्थित रही।

    केंद्र ने हाई कोर्ट में याचिका की विचारणीयता को चुनौती दी और कहा कि ऐसे मामलों में एएफटी प्रथमदृष्टया अदालत है। दो सदस्यीय पीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई राहत नौसेना अधिनियम के एक प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने की प्रकृति की है और इसलिए, प्रश्नों को पूर्ण पीठ को भेज दिया गया।

    यह भी पढ़ें- दिल्ली HC ने Delhi Police की विश्वसनीयता पर उठाया सवाल, कहा- वीडियो या फोटो बिना बयान पर नहीं है विश्वास