वायरल वीडियो के बाद एक्शन... फिर लंच पर बुलाया, राघव चड्ढा ने डिलीवरी ब्वॉय से की दिल की बात; VIDEO
ब्लिंकिट डिलीवरी पार्टनर हिमांशु थपलियाल का एक पुराना वीडियो वायरल हुआ, जिसमें उन्होंने 15 घंटे काम करके मात्र 763 रुपये कमाने का खुलासा किया। इस वीडि ...और पढ़ें
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सांसद राघव चड्ढा ने थपलियाल को लंच पर आमंत्रित किया। सोशल मीडिया
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली की भीड़भाड़ वाली सड़कों पर दिन-रात मेहनत करने वाले गिग वर्कर्स (डिलेवरी ब्वाय) की स्थिति फिर सुर्खियों में है। ब्लिंकिट के एक डिलीवरी पार्टनर हिमांशु थपलियाल (उत्तराखंड मूल के निवासी) का पुराना वीडियो हाल ही में वायरल हुआ, जिसमें उन्होंने खुलासा किया कि लगभग 15 घंटे काम करने और 28 ऑर्डर डिलीवर करने के बाद उनकी दैनिक कमाई मात्र 763 रुपये रही। आखिरी ऑर्डर पर तो सिर्फ 15 रुपये मिले।
इस वीडियो ने सोशल मीडिया पर हड़कंप मचा दिया और गिग इकॉनमी में काम करने वालों की कम वेतन, लंबे घंटे और सुरक्षा की कमी पर बहस छेड़ दी ।वीडियो सितंबर 2025 का है, लेकिन दिसंबर में दोबारा वायरल होने के बाद इसने राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा शुरू कर दी। कई यूजर्स ने इसे 'सिस्टेमैटिक शोषण' करार दिया और प्लेटफॉर्म कंपनियों की जवाबदेही पर सवाल उठाए।
वहीं, आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने सबसे पहले इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया दी। 16 दिसंबर को उन्होंने वीडियो शेयर कर लिखा, "यह गिग इकॉनमी की सफलता की कहानी नहीं, बल्कि ऐप्स और एल्गोरिदम के पीछे छिपा शोषण है।" चड्ढा ने संसद के शीतकालीन सत्र में पहले ही गिग वर्कर्स की समस्याएं उठाई थीं, जिसमें कम वेतन, अत्यधिक काम के घंटे, सोशल सिक्योरिटी की कमी और एल्गोरिदम से आने वाले दबाव का जिक्र किया था।
इसके बाद चड्ढा ने मानवीय पहल करते हुए थपलियाल को अपने दिल्ली स्थित घर पर लंच के लिए आमंत्रित किया। 26 दिसंबर को हुई इस मुलाकात का वीडियो दोनों ने सोशल मीडिया पर शेयर किया, जो तेजी से वायरल हो रहा है। लंच के दौरान थपलियाल ने अपनी रोजमर्रा की चुनौतियां साझा कीं, जिसमें अनिश्चित आय, टारगेट का प्रेशर, शिकायत निवारण की कमी और बेसिक सुरक्षा का अभाव शामिल है।
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उन्होंने कहा कि किसी नेता का उनकी बात गंभीरता से सुनना अच्छा लगा। चड्ढा ने दोहराया कि भारत की डिजिटल इकॉनमी की तरक्की वर्कर्स की कीमत पर नहीं होनी चाहिए। उन्होंने उचित वेतन, मानवीय काम के घंटे और सोशल सिक्योरिटी की मांग की। यह मुलाकात गिग वर्कर्स के मुद्दे को नीतिगत स्तर पर ले जाने का प्रतीक बनी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि प्लेटफॉर्म इकॉनमी में लाखों कार्यकर्ता बिना कर्मचारी दर्जे के काम करते हैं, जिससे उन्हें कानूनी सुरक्षा नहीं मिलती। सरकार की नई लेबर कोड में गिग वर्कर्स को सोशल सिक्योरिटी का प्रावधान है, लेकिन कार्यान्वयन बाकी है। इस घटना ने फिर से बहस छेड़ दी है कि तेज डिलीवरी मॉडल वर्कर्स पर कितना दबाव डाल रहा है।

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