बीते 9 महीने में दिल्लीवासियों से 1000 करोड़ की साइबर ठगी, सबसे ज्यादा निशाने पर रहे निवेशक
दिल्ली में साइबर ठगी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। पिछले नौ महीनों में दिल्लीवासियों को 1000 करोड़ रुपये से अधिक का चूना लगा है, जिसमें निवेशकों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। पुलिस साइबर अपराधों को रोकने के लिए प्रयासरत है और लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान चला रही है। साइबर अपराध से बचने के लिए सावधानी बरतना आवश्यक है।

प्रतीकात्मक तस्वीर।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। साइबर अपराधियों ने इस साल 9 महीने 15 दिन में दिल्लीवासियों के लगभग 1000 करोड़ रुपये ठग लिए। डिजिटल अरेस्ट व शेयर बाजार में निवेश आदि मामले को लेकर सबसे अधिक ठगी की गई।
पिछले वर्ष से ज्यादा रोके गए ट्रांसफर होते रकम
2024 में राजधानी में रहने वाले लोगों ने 1100 करोड़ रुपये गंवा दिए थे, जिनमें लगभग 10 प्रतिशत राशि बैंक खातों में सफलतापूर्वक रोक दी गई थी। इस वर्ष दिल्ली पुलिस ने बैंकों के साथ मिलकर, धोखाधड़ी की गई लगभग 20 प्रतिशत राशि को रोकने में कामयाबी हासिल की है जो 2024 के आंकड़े से लगभग दोगुना है। यह नुकसान पर अंकुश लगाने में एक महत्वपूर्ण सुधार को दर्शाता है।
...तो पीड़ितों को वापस मिल जाती है रकम
डीसीपी इंटेलिजेंस फ्यूजन एंड स्ट्रैटेजिक आपरेशंस विनीत कुमार ने बताया कि पुलिस बार-बार लोगों से आग्रह करती है कि अगर वे साइबर अपराधियों के शिकार बनते हैं तो तुरंत उसकी हेल्पलाइन नंबर 1930 पर रिपोर्ट करें।
जब कोई पीड़ित अपराध की रिपोर्ट करता है और लेन-देन का विवरण प्रदान करता है, तो हम ठगी वाले पैसे को रोकने के लिए प्रक्रिया शुरू करते हैं।
उन्होंने बताया कि पीड़ितों को साइबर अपराधों से संबंधित शिकायतें दर्ज कराने और उनके प्रश्नों का समाधान करने में सहायता के लिए 24 समर्पित हेल्पलाइन चौबीसों घंटे काम करती हैं।
इसके बाद बैंक धन की आवाजाही पर नजर रखते हैं और अगर पैसा बैंकिंग प्रणाली में रहता है, तो उसे रोक लेते हैं। अदालत द्वारा आदेश दिए जाने के बाद पीड़ितों को पैसे वापस कर दिया जाता है।
साइबर ठग ऐसे फंसाते हैं जाल में
शेयर बाजार में निवेश व डिजिटल अरेस्ट इस साल सबसे प्रचलित और उच्च-मूल्य वाले धोखाधड़ी के मामले रहे हैं।
शेयर बाजार में निवेश अक्सर इंटरनेट मीडिया पर महिलाओं के रूप में सामने आकर पीड़ितों को आकर्षक रिटर्न का वादा करके ऑनलाइन समूहों में शामिल होने के लिए लुभाते हैं।
छोटे शुरुआती निवेशों पर नकली लाभ दिखाने के बाद, वे पीड़ितों को लाखों या करोड़ों की बड़ी रकम निवेश करने के लिए राजी करते हैं।
इन देशों से हो रहा सबसे ज्यादा 'अटैक'
ये धोखेबाज अक्सर कंबोडिया, लाओस और वियतनाम जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से काम करते हैं, जहां चीनी संचालकों द्वारा संचालित बड़े पैमाने पर साइबर अपराधी दुनियाभर के लोगों को निशाना बनाते हैं।
भारत में स्थित ठग, चोरी के धन को सफेद करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले नकली बैंक खाते और सिमकार्ड उपलब्ध कराकर ठगी को अंजाम देने में मदद करते हैं।
रुपये देने को हो जाते हैं मजबूर
डिजिटल अरेस्ट में ठग कानून प्रवर्तन अधिकारियों का रूप धारण करके, डर और धमकी का इस्तेमाल करके पीड़ितों से पैसे ऐंठते हैं।
पुलिस, सीबीआई या कोरियर एजेंसियों से होने का नाटक करके पीड़ितों को काॅल करते हैं और दावा करते हैं कि उनका बैंक खाता या पार्सल आतंकवाद, मनी लांड्रिंग या साइबर अपराध जैसे अपराधों से जुड़ा है।
नकली नंबरों, नकली दस्तावेज और छेड़छाड़ किए गए वीडियो का इस्तेमाल करके वे पीड़ितों को जुर्माना या सुरक्षा जमा के रूप में रुपये ट्रांसफर करने के लिए मजबूर करते हैं।
भरोसा रचने के लिए बनाते हैं चक्रव्यूह
'बाॅस घोटाला' कंपनी के अधिकारियों का रूप धारण करके कार्पोरेट कर्मचारियों को निशाना बनाता है।
ठग आमतौर पर किसी कंपनी के उच्च अधिकारियों की तस्वीर अपने इंटरनेट मीडिया प्रोफाइल पर डालते हैं और वित्त विभाग में कार्यरत कर्मचारियों को तत्काल संदेश या भुगतान का अनुरोध भेजते हैं।
संचार को वैध मानकर, कर्मचारी अक्सर धन हस्तांतरित कर देते हैं, उपहार कार्ड कोड साझा करते हैं, या संवेदनशील जानकारी प्रकट करते हैं।
ये संदेश प्रामाणिक प्रतीत होते हैं क्योंकि ये सत्यापित दिखने वाले आधिकारिक आईडी या नंबरों से आते हैं। यही इन ठगों को विशेष रूप से खतरनाक बनाता है।
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