Delhi Blast: 'मैंने टीवी तक नहीं खोला, इस तरह का मंजर...', सरोजिनी नगर ब्लास्ट के पीड़ितों का छलका दर्द
दिल्ली में हुए पुराने धमाकों की यादें ताजा हो गईं। सरोजिनी नगर ब्लास्ट के पीड़ितों का दर्द छलका, जिन्होंने 2005 में अपने प्रियजनों को खो दिया था। दोषियों को सजा न मिलने से उनमें कसक है। मुआवजे से जख्म नहीं भरे, क्योंकि लचर जांच के कारण आरोपी बरी हो गए। पीड़ितों को आज भी न्याय का इंतजार है।

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। करीब 14 साल के एक लंबे अंतराल के बाद राष्ट्रीय राजधानी में हुए तेज धमाके की गूंज ने पूर्व में हुए आतंकी हमलों की यादें ताजा कर दीं। उठी। वर्ष 2011 से पहले आतंकियों ने दिल्ली को कई बार दहलाया। लाल किले के पास हुए हालिया विस्फोट से दिल्ली की वर्षों की यादें ताजा हो गई है।
लाजपत नगर मार्केट से लेकर सरोजिनी नगर मार्केट में हुए आतंकी हमले की बात हो या फिर दिल्ली हाई कोर्ट के गेट नंबर-पांच के पास हुए धमाके की। देश की राजधानी कई सालों तक आतंकी दहशत का शिकार रही। इसी बीच सोमवार को ऐतिहासिक लाल किला के सामने हुए तेज विस्फोट की आवाज में अतीत की एक अप्रिय प्रतिध्वनि जैसी महसूस हुई। सरोजिनी नगर ब्लास्ट के पीड़ितों का दर्द भी इस हमले के बाद छलक पड़ा।
सरोजनी नगर मिनी मार्केट ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक रंधावा का कहना है कि 2005 में सबसे बड़ा ब्लास्ट हुआ था। इसमें तीन आतंकी को गिरफ्तार हुए और 12 साल बाद आए निर्णय में सभी को बरी कर दिया गया। यह सुरक्षा की बड़ी लापरवाही है।
सवाल यही है कि बड़ी मात्रा में फरीदाबाद में विस्फोटक पकड़ा गया और इसके बाद भी दिल्ली में कोई सतर्कता नहीं थी, जिसके कारण ऐसी घटना हुई। इसे सुरक्षा की लापरवाही कहा जाए या क्या कहा जाए। अभी पहलगाम में हमला हुए अधिक समय नहीं बीता है। लाल किले पर हुई इस घटना ने सरोजिनी नगर मार्केट की दर्दनाक घटना को जीवंत कर दिया।
सरोजिनी नगर ब्लास्ट में अपने बेटे को खोने वाले विनोद पोद्दार का कहना है कि चैनल पर खबर देने के बाद 2005 का वह दर्दनाक मंजर आंखों के सामने घूम गया। इस घटना के बाद स्थायी रूप से दिव्यांग हो चुके विनोद कहते हैं कि वह एक भयभीत, डरावनी घटना थी और हम यही दुआ करते हैं कि किसी भी परिवार को ये देखना पड़े, जो हमें उठाना पड़ा था।
मेरठ के मोदीपुरम निवासी सतीश ने कहा कि जैसे इससे जुड़ी खबर मैंने मोबाइल फोन पर देखी तो मुझे अस्पताल में बिताए वो 54 दिन याद आ गए, जो हमले के बाद मैंने अस्पताल में काटे थे। खबर फोन पर देखने के बाद मैंने टीवी नहीं खोला क्योंकि इस तरह का मंजर देखने की हिम्मत नहीं हुई।
सरोजिनी नगर ब्लास्ट में परिवार के तीन सदस्यों को खोने वाले सतीश कहते हैं कि उनकी बेटी लाल किले के हादसे की खबर सुनकर बेहद परेशान हो गई है। 2005 में पहाड़गंज, सरोजिनी नगर और गोविंदपुरी में एक डीटीसी बस में सिलसिलेवार बम विस्फोट हुए थे। इनमें 71 लोग मारे गए थे, जबकि 200 से ज्यादा घायल हुए थे।
मुआवजा मिला पर दोषियों को सजा न मिलने की रह गई कसक
सरोजिनी नगर विस्फोट में मरने वाले लोगों के स्वजन को चार-चार लाख और घायलों को एक-एक लाख रुपये मुआवजा मिल तो गया लेकिन दिल दहलाने वाली घटना को अंजाम देने वाले आतंकियों को फांसी की सजा न मिल पाने पर उनके दिल में कसक बरकरार है।
हमले की कड़ी न जोड़ पाने के कारण लचर जांच का ही नतीजा कहा जाए कि 12 साल तक चली सुनवाई के बाद फरवरी 2017 में पटियाला हाउस कोर्ट ने दो आरोपित मोहम्मद रफीक शाह और हुसैन को बरी कर दिया। आरोपी तारिक अहमद डार को सजा तो सुनाई गई, लेकिन बम धमाकों में शामिल होने के लिए नहीं बल्कि लश्कर-ए-तैयबा से होने के कारण उसे 10 साल की सजा मिली। तीनों 12 साल से जेल में बंद थे।
लिहाजा तारिक अहमद डार को भी जेल से रिहा कर दिया गया। जिस दिन कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कोर्ट में मौजूद धमाकों में मारे गए लोगों के व रिश्तेदार सन्न रह गए थे। एकजुट न हो पाने के कारण हाई कोर्ट में अपील नहीं किया जा सका। वहीं, दिल्ली पुलिस ने ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील नहीं की थी।

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