Delhi Balst केस की निगरानी की मांग पर दिल्ली HC का अहम फैसला, कहा-ट्रायल बिना निगरानी कैसे?
दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली ब्लास्ट केस की निगरानी की मांग पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए पूछा कि बिना निगरानी के ट्रायल कैसे हो सकता है। कोर्ट ने मामल ...और पढ़ें
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प्रतीकात्मक तस्वीर
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। लाल किला के बाहर हुए बम विस्फोट मामले में ट्रायल की निगरानी के लिए एक कमेटी बनाने और उसे छह महीने में पूरा करने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर विचार करने से दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को इन्कार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि अदालत ऐसे ट्रायल की निगरानी नहीं कर सकती जो अभी शुरू भी नहीं हुआ है।
पीठ ने याचिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह ट्रायल शुरू भी नहीं हुआ है, और आप चाहते हैं कि अदालत निगरानी करें? पीठ ने कहा कि अदालत समझ सकती है कि अगर यह सालों से लंबित होता, लेकिन यह अभी शुरू भी नहीं हुआ है।
इस पर याची की तरफ से कहा गया कि कोर्ट के निर्देशों से विस्फोट के पीड़ितों को भरोसा मिलेगा। यह भी कहा कि पूर्व में हुए आतंकी हमले का ट्रायल 25 साल से ज्यादा समय तक चले हैं और लाल किले पर पूर्व में हुए आतंकी हमले का केस भी सात साल से ज्यादा समय तक चला था।
वहीं, केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए एडिशनल सालिसिटर जनरल (एएसजी) चेतन शर्मा ने कहा कि जनहित याचिका गलत तरीके से बनाई गई है और याचिकाकर्ता यह बताना भूल गए हैं कि जांच अब दिल्ली पुलिस के पास नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को स्थानांतरित कर दी गई है। मामला गैर कानूनी गतिविधियों रोकथाम अधिनियम के तहत चलेगा। सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने याचिका पर विचार करने से इन्कार कर दिया। अदालत का रुख देखते हुए याचिकाकर्ता ने याचिका वापस ले ली।
अधिवक्ता राजा चौधरी के माध्यम से याचिका दायर कर डाॅ. पंकज पुष्कर ने कहा कि इस मामले में दिन-प्रतिदिन ट्रायल की मांग की गई है। याचिका में एनआईए और अभियोजन को न्यायिक कमेटी के सामने हर महीने स्टेटस रिपोर्ट फाइल करने का निर्देश देने की भी मांग की थी।

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