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    आसमान में घंटों चक्कर काट रहे विमान, एयरपोर्ट का नहीं मिल रहा सटीक लोकेशन; आखिर क्या है प्रॉब्लम?

    Updated: Thu, 06 Nov 2025 07:09 PM (IST)

    दिल्ली में विमान चालकों को एयरपोर्ट का सही लोकेशन ढूंढने में परेशानी हो रही है, जिसके कारण विमान आसमान में चक्कर काट रहे हैं। 'स्नूफिंग' नामक एक समस्या के कारण पायलटों को लैंडिंग में दिक्कत हो रही है, जिससे विमानों की सुरक्षा पर सवाल उठ रहे हैं।

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    दिल्ली एयरपोर्ट पर सटीक लोकेशन की तलाश में भ्रम के शिकार हो रहे पायलट।

    गौतम कुमार मिश्रा, नई दिल्ली। पिछले कुछ दिनों से नई दिल्ली के आसमान पर लैंडिंग के लिए चक्कर लगा रहे पायलट एक विकट परिस्थिति से जूझ रहे हैं। विमान के जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम, यह सेटेलाइट बेस्ड पोजिशनिंग सिस्टम है) उन्हें दिल्ली एयरपोर्ट का सटीक लोकेशन नहीं मिल रहा है और वे भ्रम का शिकार हो रहे हैं। पायलट को इसका अहसास तब होता है कि जब वे उड़ान के दौरान आइजीआई एयरपोर्ट के रनवे को ट्रेस करने की कोशिश करते हैं।

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    भले ही वे नई दिल्ली के आसमान पर मंडरा रहे हों लेकिन जीपीएस उनकी पोजिशन को नई दिल्ली से दूर बताता है। नेविगेशन की दुनिया में लोकेशन से जुड़ी गलत जानकारी व इससे पैदा हुए भ्रम की स्थिति का स्पूफिंग कहा जाता है। विशेषज्ञ इस स्थिति को उड्डयन क्षेत्र की नई चुनौती बता रहे हैं।

    उड्डयन विशेषज्ञ मार्क मार्टिन बताते हैं कि यह समस्या नई नहीं है, लेकिन पिछले कुछ समय से इसकी आवृत्ति बढ़ गई है, यानि यह समस्या अब पहले के मुकाबले अधिक सामने आ रही है।

    देश के सबसे बड़े और सर्वाधिक व्यस्त एयरपोर्ट आइजीआइ की बात करें तो यह समस्या पिछले सात दिनों से कई पायलट के सामने आई है। कुछ पायलट ने इससे पार पा लिया जो ऐसा नहीं कर पाए, उनकी उड़ान को डाइवर्ट कर जयपुर लैंडिंग के लिए भेज दिया गया। इस मंगलवार को ही नई दिल्ली आ रही करीब आठ उड़ानों को जयपुर डाइवर्ट करना पड़ा। आधिकारिक तौर पर इसका कारण एयर ट्रैफिक कंजेशन बताया गया, लेकिन सूत्रों का कहना है कि इस कंजेशन की वजह में एक बड़ा कारण स्नूफिंग का भी था।

    स्नूफिंग क्यों बन रही बड़ी समस्या

    विशेषज्ञ बताते हैं कि आमतौर पर युद्ध के दिनों में दुश्मन का टोही या लड़ाकू विमान या फिर ड्रोन सटीक निशाने पर न पहुंचे, इसके लिए स्नूफिंग का सहारा लिया जाता है। इन दिनों दुनिया में युद्धग्रस्त क्षेत्र बढ़ रहे हैं, टोही विमानों की सक्रियता बढ़ रही है तो स्नूफिंग का सहारा लिया जाता है। यह समस्या एशिया की हवाई सीमा में सर्वाधिक है, क्योंकि इन दिनों यहां युद्ध या तनाव वाले हालात से अधिकांश देश जूझ रहे हैं। इसमें नया तथ्य अब यह आया कि अब स्पूफिंग की जद में यात्री विमान भी आ रहे हैं। इससे एक खास क्षेत्र में पूरा हवाई यातायात गड़बड़ा रहा है। इन दिनों यह स्थिति आइजीआइ एयरपोर्ट पर बन रही है।

    नेविगेशन के लिए जीपीएस पर कम करें निर्भरता

    मार्क मार्टिन बताते हैं कि भारत के लिए यह चिंता की बात इसलिए अत्यधिक है क्योंकि हमारा उड्डयन जगत जीपीएस पर अत्यधिक निर्भर है। हमारे पास बैकअप प्लान नहीं है। आने वाले समय में न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में स्पूफिंग एक बड़ी समस्या बनने वाली है तो बेहतर है कि हम अभी से इसके लिए तैयारी कर लें। जीपीएस पर अपनी अत्यधिक निर्भरता को धीरे धीरे कम करें। ऐसा एकाएक नहीं होगा। जब तक हमारे देश का अपना नेविगेशन सिस्टम विकसित नहीं होता, तब तक हम पायलटों को जीपीएस नेविगेशन के साथ साथ ग्राउंड बेस्ड नेविगेशन के इस्तेमाल का प्रशिक्षण समय समय पर दें।

    उन्हें इस बात के लिए प्रेरित करते रहें कि वे स्वयं समय समय पर जीपीएस के बजाय ग्राउंड बेस्ड नेविगेशन की मदद से लैंडिंग करें। ग्राउंड बेस्ड नेविगेशन करीब 300 किलोमीटर के रेंज को कवर करता है। ऐसे में इसका इस्तेमाल जीपीएस से बहुत कम उपयोगी नहीं है। जरुरत अभ्यास की है। ऐसा नहीं है कि पायलटों को ग्राउंड बेस्ड नेविगेशन के इस्तेमाल का प्रशिक्षण नहीं दिया जाता, समस्या यह है कि यह बात केवल प्रशिक्षण तक ही सीमित रहती है। जबकि प्रशिक्षण के बाद इसके इस्तेमाल का अभ्यास नियमित तौर पर होना चाहिए।

    मार्टिन कहते हैं कि यह अच्छी बात है कि समस्या के शुरुआती दौर में ही लोग स्पूफिंग की चर्चा कर रहे हैं। शुरुआती दौर में चर्चा से एक सार्थक निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद मिलेगी।ॉ

    स्पूफिंग का कारण क्या है

    साइबर विशेषज्ञ अमित दूबे कहते हैं कि आइजीआइ एयरपोर्ट पर जीपीएस स्पूफिंग का कारण क्या है, इसे लेकर तत्काल निष्कर्ष पर पहुंचा नहीं जा सकता है। कई संभावनाएं हैं, जो जांच का विषय है। जीपीस सिग्नल एक विशेष स्पेक्ट्रम पर काम करता है। यदि काेई इसे हैक करना चाहे तो उतनी ही ताकत की सिग्नल जेनरेट करनी होगी। यह भी संभव है कि एयरपोर्ट पर कोई सिग्नल उतनी ही स्पेक्ट्रम पर काम कर रहा हो जितनी स्पेक्ट्रम पर जीपीएस का सिग्नल काम कर रहा है तब भी स्थिति गड़बड़ाएगी। कई अन्य बातें हैं, जिसपर जांच होनी चाहिए।