प्रदूषण से फेफड़े को नुकसान क्यों नहीं होता पूरी तरह ठीक? सालों जमा रहते हैं सूक्ष्म कण; स्टडी में खुलासा
दिल्ली की जहरीली हवा दिल्लीवासियों के फेफड़ों के लिए एक गंभीर खतरा है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, हवा में मौजूद सूक्ष्म कण फेफड़ों की गहराई में ज ...और पढ़ें

अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी की जहरीली हवा दिल्लीवासियों के फेफड़ों के लिए दीर्घकालीक गंभीर स्वास्थ्य खतरा बनती जा रही है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार सांस के साथ हवा में मौजूद सूक्ष्म कण फेफड़ों की गहराई में स्थायी रूप से जमा हो जाते हैं।
न तो शरीर इन्हें पूरी तरह बाहर निकाल पाता है और न ही एक बार हुआ नुकसान ठीक ही हो पाता है। उनके अनुसार एक्यूआई फेफड़ों को हो रहे नुकसान की सीधी चेतावनी है। क्योंकि जब एक्यूआई खराब होता है, नुकसान उसी समय से आरंभ हो जाता है, भले ही लक्षण बाद में दिखें।
साइंटिफिक रिपोर्ट्स नाम की अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका में 28 नवंबर 2025 को प्रकाशित ‘रेस्पिरेटरी डिपोजिशन ऑफ पार्टिकुलेट मैटर इन दिल्ली: फाइव-ईयर असेसमेंट ऑफ एक्सपोजर पैटंर्स एंड हेल्थ रिस्क्स’ विषयक प्रकाशित अध्ययन में बताया गया कि हवा में मौजूद अत्यंत सूक्ष्म प्रदूषण कण सांस के साथ फेफड़ों की गहराई तक पहुंचकर वहां लंबे समय तक जमा रहते हैं।
यह जमाव धीरे-धीरे फेफड़ों की कार्यक्षमता को कम करता है और सांस लेने की क्षमता घटाता है। हृदय को भी नुकसान पहुंचाता है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो. डाॅ. अनंत मोहन के अनुसार दिल्ली की यह स्थिति स्वास्थ्य आपातकाल जैसी है।
यथार्थ सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल नई दिल्ली के रेस्पिरेटरी मेडिसिन और इंटरवेंशनल पल्मोनोलाजिस्ट डाॅ. हरीश भाटिया का कहना है कि दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण से गले में खराश, खांसी, सर्दी-जुकाम, छींक आना, सांस लेने में तकलीफ और आंखों में जलन जैसी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं।
यह सिर्फ पर्यावरणीय समस्या नहीं, बल्कि एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है जो हृदय को भी नुकसान पहुंचा रहा है। एम्स के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के पूर्व प्रमुख और पीएसआरआई पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो. डाॅ. जीसी खिलनानी के अनुसार जहरीली हवा से फेफड़ों को एक बार नुकसान हो गया तो शरीर को इससे छुटकारा मिलना मुश्किल है।
नुकसान कैसे होता है
जब हम सांस लेते हैं तो हवा सीधे फेफड़ों तक जाती है। हवा में मौजूद धूल के सूक्ष्म कण, धुआं, वाहन और औद्योगिक उत्सर्जन, जहरीली गैस, इनमें सबसे खतरनाक होते हैं अत्यंत सूक्ष्म कण, जो इतने छोटे होते हैं कि नाक के बाल (म्यूकस), सामान्य श्वसन तंत्र इन्हें रोक नहीं पाता।
फेफड़ों में जाकर क्या होता है?
ये कण फेफड़ों की गहराई तक पहुंच जाते हैं, फेफड़ों की दीवारों पर चिपक जाते हैं। शरीर की आंतरिक सफाई व्यवस्था इन्हें पूरी तरह निकाल नहीं पाती। इस कारण ये कण वर्षों तक फेफड़ों में जमा रहते हैं।
यह नुकसान क्यों स्थायी हो जाता है?
फेफड़े कोई कपड़ा या अन्य कोई वस्तु नहीं, जिन्हें धोया जा सके। फेफड़ों की अंदरूनी सतह बहुत नाजुक होती है। बार-बार प्रदूषण से वहां सूजन और घाव बनने लगते हैं। धीरे-धीरे वह हिस्सा कठोर और काला होने लगता है इसी कारण चिकित्सक कहते हैं कि फेफड़ों का नुकसान धीरे होता है, एक बार होने पर यह खत्म नहीं होता।
मुख्य नुकसान
- सांस लेने की क्षमता घटती है।
- थोड़ा चलने में ही सांस फूलना।
- सीढ़ियां चढ़ने में परेशानी।
- रात में घुटन महसूस होना।
- अस्थमा और सीओपीडी।
- सीओपीडी में फेफड़े स्थायी रूप से कमजोर हो जाते हैं।
बच्चों और हृदय पर असर
बच्चों पर विशेष असर पड़ता है, फेफड़ों का विकास पूरा नहीं हो पाता है और जल्दी थकान हो जाती है। पढ़ाई और खेलकूद में कमी आने लगती है। हृदय पर भी असर पड़ता है। फेफड़ों में जमा कण, खून के जरिए शरीर में फैल सकते हैं, दिल की नलियों में सूजन बढ़ा सकते हैं। इससे हार्ट अटैक और ब्लड प्रेशर की समस्या का खतरा बढ़ता है।
कैसे बचें
- अनावश्यक बाहर निकलने से बचें।
- भारी ट्रैफिक और धुएं वाले इलाकों से दूरी रखें।
- बाहर जाते समय एन-95, एन-99 मास्क का सही उपयोग करें।
- घर में धुआं पैदा करने वाली चीजों से परहेज करें।
इन लक्षणों को न करें नजरअंदाज
- लगातार खांसी।
- थोड़ा चलने में सांस फूलना।
- सीने में जकड़न।
- रात में सांस लेने में दिक्कत।
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