न पराली, न पटाखे, न कड़ाके की ठंड… फिर भी क्यों घुट रहा दिल्ली का दम? नए अध्ययन में खुला प्रदूषण का बड़ा सच
दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर गंभीर श्रेणी में पहुंच गया है। एक अध्ययन के अनुसार, पड़ोसी राज्यों में पराली न जलने और पटाखे खत्म होने के बावजूद, दिल् ...और पढ़ें

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। पड़ोसी राज्यों में पराली अब जल नहीं रही है, दीवाली के पटाखे खत्म हो चुके हैं और कड़ाके की सर्दी अभी तक आई नहीं है। इसके बावजूद, 13 दिसंबर को राजधानी की वायु गुणवत्ता 'गंभीर' श्रेणी में पहुंच गई और तभी से 'गंभीर' से 'बहुत खराब' श्रेणी में है। एक नए अध्ययन में इसके पीछे भौगोलिक एवं मौसमी परिस्थितियाें से इतर राजधानी के अपने कारकों ही मुख्य वजह बताया जा रहा है।
सफर इंडिया और बेंगलुरु स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के इस संयुक्त अध्ययन में सामने आया है कि 13 दिसंबर को दिल्ली व इसके एयरशेड में हवा की गति लगभग शून्य हो गई। न तो कुछ बाहर से अंदर आ रहा था और न ही अंदर से बाहर जा पा रहा था।
'इनवर्जन लेयर' (वायुमंडल की एक परत, जहां तापमान ऊंचाई के साथ सामान्य रूप से घटने के बजाय बढ़ता है) के 500- 700 मीटर तक सिमट जाने के कारण ऊपर की ओर भी फैलाव थम गया। नतीजा निश्चित स्रोतों से निकलने वाला उत्सर्जन वहीं ठहर गया जहां से निकला था। इससे स्थानीय स्तर पर 'प्रदूषण हाॅट स्पाॅट' बन गए।
अध्ययन बताता है कि जब हवा ठहर जाती है तो वेंटिलेशन निकासी ठप हो जाती है और सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए कोई सुरक्षा कवच नहीं बचता। नेकिन जब वायुमंडल अस्थायी रूप से खुद को साफ करने की क्षमता खो देता है—भले ही कुछ दिनों के लिए—तो राजधानी के उत्सर्जन का वास्तविक पैमाना भी स्पष्ट रूप से सामने आ जाता है, जो एक स्व-निर्मित संकट है।
अध्ययन के अनुसार दिल्ली में सबसे घातक कणों पीएम 2.5 (जो स्वास्थ्य को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाते हैं) का लगभग आधा हिस्सा परिवहन (43 प्रतिशत) से आता है। इसके बाद कचरा जलाने से 15 प्रतिशत, आवासीय और औद्योगिक उत्सर्जन से 13-13 प्रतिशत और धूल से केवल आठ प्रतिशत प्रदूषण होता है।
अध्ययन बताता है कि ऐसी चरम स्थितियों में, यदि दिल्ली अपने स्थानीय उत्सर्जन में 50 प्रतिशत की कटौती करती है तो प्रदूषण का स्तर भी करीब 50 प्रतिशत गिर जाएगा। हालांकि जब मौसम सक्रिय होता है, तब भी यही तर्क लागू होता है।
लेकिन तब उत्सर्जन में कटौती पूरे 'एयरशेड' में होनी चाहिए। समाधान दोनों स्थितियों में एक ही है- उत्सर्जन के स्रोतों पर निरंतर और दीर्घकालिक कार्रवाई, न कि स्माग टावर, क्लाउड सीडिंग, पानी का छिड़काव या एयर प्यूरीफायर सरीखे अल्पकालिक दिखावे।
दिल्ली में प्रदूषण का वर्तमान 'गंभीर' दौर 'पश्चिमी विक्षोभ' के कारण 'बाउंड्री लेयर' की ऊंचाई और हवा की गति में भारी कमी आने से हुआ है। इसने क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर दोनों तरह के फैलाव को लगभग रोक दिया। ऐसे में अगर हमारा अपना प्रदूषण अधिक न हो तो गैस चैंबर वाली स्थिति से बचा जा सकता है।
-डाॅ. गुफरान बेग, चेयर प्राेफेसर, नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज बेंगलुरु तथा संस्थापक निदेशक, सफर इंडिया

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