प्रदूषण पर AIIMS की स्टडी में बड़ा खुलासा, दिल्ली में PM-10 को 24% तक बढ़ा देता है निर्माण और मलबा
एम्स की एक स्टडी में खुलासा हुआ है कि दिल्ली में निर्माण कार्य और मलबा PM-10 के स्तर को 24% तक बढ़ा देते हैं। निर्माण गतिविधियों से हवा में धूल और हानिकारक कणों की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे वायु गुणवत्ता खराब होती है। PM-10 का उच्च स्तर सांस लेने में तकलीफ और फेफड़ों की बीमारियों का खतरा बढ़ाता है।

अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी की हवा हर साल सर्दियों में मानों जहरीली गैस से भर जाती है, इसके लिए सिर्फ पराली या वाहन का धुआं ही जिम्मेदार नहीं हैं। कंस्ट्रक्शन-डिमोलेशन डस्ट भी इसके लिए बड़ा जिम्मेदार हैं।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के नए अध्ययन और सरकारी आकलन बताते हैं कि दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण में कंस्ट्रक्शन-डिमोलेशन डस्ट (सीएंडडी) अब दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण का प्रमुख कारणों में एक हो गया है। दिल्ली में प्रतिदिन औसतन छह हजार मीट्रिक टन तक सीएंडडी उत्पन्न होता है।
समस्या सिर्फ कंस्ट्रक्शन-डिमोलेशन डस्ट की ही नहीं है, बल्कि मलबे को रिसाइक्लिंग प्लांट तक पहुंचाने की कमजोर व्यवस्था की भी है। प्रतिदिन निकलने वाले छह हजार टन मलबे में से पांच हजार टन मलबे का ही निस्तारण हो पाता है, एक हजार टन मलबा सड़कों के किनारों, खुले स्थानों, मैदान और खाली प्लाट पर डंप किए जाते हैं, यह समस्या पैदा कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का दावा है कि सीएंडडी वेस्ट मैनेजमेंट, नियमों के सख्त पालन, आन साइट धूल नियंत्रण, नियमित निगरानी और रिसाइक्लिंग क्षमता बढ़ाने से प्रदूषण में 20 से 30 प्रतिशत तक कमी लायी जा सकती है। पर, दिल्ली में इसे संभालने की क्षमता व निगरानी दोनों ही नाकाफी हैं। जो साबित करता है कि सरकारी तंत्र लापरवाह और नागरिक गैर जिम्मेदार हैं।
दिल्ली में सड़क व निर्माण से उड़ने वाली धूल पहले से ही पीएम-10 का बड़ा हिस्सा मानी जाती रही है। अब 2024 -25 के सरकारी आंकड़े व एम्स पल्मोनरी व क्रिटिकल केयर स्लिप मेडिसिन विभाग का हालिया अध्ययन बता रहा है कि सिर्फ कंस्ट्रक्शन-डिमोलेशन डस्ट इसमें 20 से 24 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी कर रही है।
सर्दियों में यह और भी बढ़ जाता है। दिल्ली में जैसे-जैसे सरकारी निर्माण परियोजनाएं और निजी निर्माण बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे प्रदूषण में कंस्ट्रक्शन-डिमोलेशन डस्ट की हिस्सेदारी भी तेजी से बढ़ी है। दिल्ली की मौजूदा रिसाइक्लिंग क्षमता पांच हजार टन है, इसलिए एक हजार टन मलबा अनियोजित रूप में प्रतिदिन जमा हो रहा है।
चिकित्सकों के अनुसार, दिल-दिमाग और सांसों पर पड़ता है असर
अखिल भारतीय आयर्विज्ञान संस्थान पल्मोनरी व क्रिटिकल केयर स्लिप मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. डाॅ. अंनत मोहन बताते हैं कि ‘कंस्ट्रक्शन-डिमोलेशन डस्ट महीन कण फेफड़ों में अंदर तक जाते हैं।
सीएंडडी वेस्ट मैनेजमेंट, नियमों के सख्त पालन, ऑन साइट धूल नियंत्रण, नियमित निगरानी और रिसाइक्लिंग क्षमता बढ़ाने से प्रदूषण में 20 से 30 प्रतिशत तक कमी हो सकती है।
दिल्ली में इसे संभालने की क्षमता व निगरानी दोनों ही नाकाफी हैं। जो साबित करता है कि सरकारी तंत्र लापरवाह और नागरिक गैर जिम्मेदार हैं। रहे है। इससे दमा, एलर्जी, खांसी और सांस फूलने की समस्ता बढ़ रही है। इसका असर दिल और दिमाग पर भी पड़ रहा है।
कंस्ट्रक्शन-डिमोलेशन डस्ट पर भी सख्ती जरूरी
विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषण घटाने के लिए पराली और वाहनों पर सख्ती के साथ कंस्ट्रक्शन-डिमोलेशन डस्ट पर भी कड़ाई आवश्यक है। क्योंकि जब तक इसे नियंत्रित नहीं किया जाता, तब तक दिल्ली की हवा साफ नहीं हो सकती, प्रदूषण कम नहीं हो सकता।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।