दिल्ली में हुई क्लाउड सीडिंग को पर्यावरणविदों ने क्यों नकारा? खतरनाक वजह भी बताई
पर्यावरणविदों ने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए क्लाउड सीडिंग को नकार दिया है। उनका मानना है कि यह तकनीक अभी इतनी विकसित नहीं है कि प्रदूषण को कम कर सके। इसके बजाय, उन्होंने जमीनी स्तर पर उत्सर्जन को कम करने और नागरिक जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया है। उनका कहना है कि क्लाउड सीडिंग के रसायन पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं।

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। वायु प्रदूषण से जंग में पर्यावरणविदों ने क्लाउड सीडिंग को सिरे से नकार दिया है। आईआईटी दिल्ली के वायुमंडलीय विज्ञान विभाग की पूर्व प्रमुख प्रो मंजू मोहन ने बताया कि क्लाउड सीडिंग की तकनीक अभी इतनी परिपक्व भी नहीं हुई है कि इससे प्रदूषण नीचे लाया जा सके। यह तकनीक शोध कार्य के लिए तो सही हो सकती है, लेकिन इस तरह की किसी गंभीर स्थिति से निपटने के लिए कतई नहीं।
जागरण से बातचीत में उन्होंने कहा कि कलाउड सीडिंग के बाद बादल वैसे भी अपनी जगह से खिसक जाते हैं। ऐसे में अगर वर्षा होती भी है तो कहीं और जाकर होगी। इससे अपेक्षित परिणाम नहीं मिल सकेगा। इसके अलावा इस प्रक्रिया में जो रसायन छोड़े जाते हैं, उनका अधिक प्रयोग करने पर वे पर्यावरण और मानव दोनों के लिए हानिकारक हो सकते हैं।
प्रो. मोहन के मुताबिक, वायु प्रदूषण कम करने के लिए हमें जमीनी उपायों पर ही फोकस करना चाहिए न कि हवाई उपायों पर।
एन्वायरोकैटेलिस्ट के संस्थापक एवं मुख्य विश्लेषक सुनील दहिया कहते हैं, “वायु गुणवत्ता सुधारने के लिए परिवहन, ऊर्जा, कचरे और निर्माण कार्य से होने वाले उत्सर्जन से निपटना होगा। इसके बिना कोई और कदम जैसे कि स्माग टावर, एंटी-स्मॉग गन या क्लाउड सीडिंग जैसे कास्मेटिक उपाय थोड़े समय के लिए फायदे दे सकते हैं, लंबे समय के लिए नहीं।
इनके बजाय राज्यों और एजेंसियों के बीच मिलकर काम करने पर ध्यान देना चाहिए, जिसमें एयरशेड-बेस्ड तरीका अपनाया जाए और प्रदूषण के असली सोर्स को टारगेट किया जाए।”
पर्यावरणविद् विमलेंदु झा ने कहा, 'वर्षा प्रदूषण को कम कर सकती है, लेकिन यह केवल एक अस्थायी उपाय है जो कुछ दिनों के लिए राहत दे सकता है। ऐसा हर बार नहीं किया जा सकता।' उन्होंने कहा कि सरकार को जमीनी स्तर पर प्रदूषण से निपटने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
उन्होंने पूछा, 'क्लाउड सीडिंग मिट्टी और जल निकायों को भी प्रभावित करती है क्योंकि सल्फर और आयोडाइड जैसे रसायन बादलों में डाले जाते हैं। इसके अलावा यह तरीका सिर्फ शहर-विशिष्ट है, पड़ोसी राज्यों से आने वाले प्रदूषकों का क्या?'
पर्यावरणविद ज्योति पांडे लवकारे ने क्लाउड सीडिंग परीक्षण की तुलना स्मॉग टावर जैसे पिछले अल्पकालिक उपायों से की। उन्होंने कहा, 'प्रदूषण कम करने का एकमात्र तरीका उत्सर्जन कम करना है, जिसे कोई भी करने को तैयार नहीं है। बादलों या हवा में रसायन मिलाना दिखावे की बात है, वास्तविक प्रभाव की नहीं।'
लवाकरे ने आगे कहा कि ताप विद्युत संयंत्रों के लिए उत्सर्जन मानदंडों को वापस लेने जैसे हालिया नीतिगत फैसलों ने प्रदूषण नियंत्रण के प्रयासों को कमजोर किया है।
यह भी पढ़ें- दिल्ली में पहले भी दो बार की जा चुकी है क्लाउड सीडिंग, जानिए कृत्रिम बारिश में कितना आता है खर्च
एक अन्य पर्यावरणविद्, कृति गुप्ता ने कहा कि ऐसे विकल्पों पर विचार किया जा सकता है, लेकिन इन्हें अपने आप में समाधान नहीं माना जाना चाहिए। उन्होंने कहा, 'हमें वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए तैयार रहना चाहिए, लेकिन उन्हें एकमात्र विकल्प के रूप में प्राथमिकता नहीं देनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि स्थायी सुधार के लिए नागरिक जागरूकता, निजी परिवहन का कम उपयोग, निर्माण धूल पर नियंत्रण और बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन आवश्यक हैं।'

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।