प्रत्यर्पण संधि के प्रविधान को क्रिश्चियन मिशेल ने दी चुनौती, याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी
क्रिश्चियन मिशेल ने प्रत्यर्पण संधि के कुछ प्रावधानों को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी है। अदालत ने इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। मिशेल का दावा है कि संधि के ये प्रावधान गैरकानूनी हैं और उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। अदालत ने सरकार से इस पर अपना पक्ष रखने को कहा है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। भारत-यूएई प्रत्यर्पण संधि के एक प्रविधान को चुनौती देने वाली क्रिश्चियन मिशेल की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। 3600 करोड़ के अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआइपी हेलीकाॅप्टर घोटाला मामले के क्रिश्चियन मिशेल ने बिचौलिए की भूमिका निभाई थी।
न्यायमूर्ति विवेक चौधरी व न्यायमूर्ति मनोज जैन की पीठ ने गृह मंत्रालय (एमएचए), विदेश मंत्रालय (एमईए), केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि सरकार याचिका की स्वीकार्यता पर आपत्तियां दर्ज करा सकती है। मामले की अगली सुनवाई नौ जनवरी को होगी।
क्रिश्चियन मिशेल ने याचिका में 1999 में हस्ताक्षरित की गई संधि के अनुच्छेद 17 को चुनौती दी है। इसमें अनुरोध करने वाले देश (इस मामले में भारत) को प्रत्यर्पित किए गए लोगों पर न केवल उस खास जुर्म के लिए बल्कि उससे जुड़े जुर्मों के लिए भी मुकदमा चलाने की इजाजत देता है।
दिसंबर 2018 में दुबई से प्रत्यर्पित करके भारत लाए गए मिशेल के वकील ने तर्क दिया कि प्रत्यर्पित किए गए व्यक्ति पर सिर्फ उन्हीं अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है जिनके लिए उसे प्रत्यर्पित किया गया था। उसके खिलाफ संबंधित मामले से जुड़े अन्य अपराधों के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। प्रत्यर्पण के बाद क्रिश्चियन मिशेल के खिलाफ सीबीआइ और ईडी ने गिरफ्तार किया था।
मिशेल ने सात अगस्त के भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 436ए के तहत जेल से रिहा करने की उसकी अर्जी खारिज करने के ट्रायल कोर्ट के निर्णय को चुनौती दी है।
मिशेल की तरफ से तर्क दिया गया कि उसे चार दिसंबर 2025 को जेल में सात साल पूरे हो जाएंगे और उसे एक बार भी जेल से रिहा नहीं किया गया है। यह भी कहा कि केस की जांच पिछले 13 सालों से चल रही है और यह अभी तक पूरी नहीं हुई है।
आरोप पत्र में आरोप लगाया गया है कि आठ फरवरी 2010 को वीवीआईपी चापर्स की डील से सरकारी खजाने को 2666 करोड़ का नुकसान हुआ था।
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