अरावली पर्वतमाला हमारी प्राकृतिक धरोहर, SC के फैसले; 90% संरक्षण और 0.19% खनन पर शहजाद पूनावाला का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, अरावली पर्वतमाला हमारी प्राकृतिक धरोहर है जिसका 90% संरक्षण किया जाएगा। शहजाद पूनावाला ने इस फैसले का विश्लेषण करते ...और पढ़ें

शहजाद पूनावाला, राष्ट्रीय प्रवक्ता, भारतीय जनता पार्टी।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इंटरनेट मीडिया की गूंज और विपक्ष की बातों में अरावली की पहाड़ियां एक बनावटी हंगामे का शिकार बन गई हैं। 20 नवंबर, 2025 को सुप्रीम कोर्ट का निर्णय, जो इस पर्वत शृंखला के लिए एक समान परिभाषा अपनाता है, उसे जानबूझकर "इको-विनाश" और इन प्राचीन पहाड़ियों के 90 प्रतिशत के लिए "मौत का वारंट" जैसी कहानी में बदल दिया गया है।
लेकिन अतिशयोक्ति हटा दें तो तथ्य कुछ और बताते हैं कि यह लूट नहीं, बल्कि संरक्षण है। ऐसे में हमें इस मामले के पीछे की सच्चाई को भी समझना चाहिए। अरावली पर्वत शृंखला राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली में फैली हुई है और लंबे समय से राज्यों में अलग-अलग परिभाषाओं की वजह से अवैध खनन का शिकार रही है। इस पर एक याचिका 1985 से चल रही थी, जो बिना रोकटोक के शोषण को उजागर करती थी।
मई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय के तहत एक कमिटी बनाई, ताकि परिभाषा को एकसमान किया जाए, जिससे चारों राज्यों और 39 जिलों में एक जैसे नियम लागू हों। इस पैनल में राज्य के फारेस्ट सेक्रेटरी और फारेस्ट सर्वे आफ इंडिया (एफएसआई) व जियोलाॅजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के एक्सपर्ट्स शामिल थे।
उन्होंने सिफारिश की कि केवल वो ऊंचाई जो लोकल टेरेन से 100 मीटर ऊपर उठती हो या 500 मीटर के दायरे में क्लस्टर ही अरावली हिल्स या रेंज कहलाएंगी। ये कोई मोदी सरकार की नई “लूपहोल” नहीं है। यह परिभाषा अशोक गहलोत के कांग्रेस शासन में बनी थी, जो 2002 की कमिटी रिपोर्ट और रिचर्ड मफ की 1968 की लैंडफार्म क्लासिफिकेशन पर आधारित है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश इसे एकसमान तरीके से लागू करता है, साथ ही सेफगार्ड्स जोड़ता है जैसे कोई खनन विचार करने से पहले सर्वे आफ इंडिया के टोपोशीट्स पर जरूरी मैपिंग, और “इनवायोलेट जोंस” जैसे प्रोटेक्टेड एरिया, इको-सेंसिटिव जोन्स, टाइगर काॅरिडोर और रामसर वेटलैंड्स में गतिविधियां पूरी तरह प्रतिबंधित।
मुख्य झूठ की फैक्ट-चेकिंग
प्रोपेगंडा करने वाले दावा करते हैं कि 100 मीटर का थ्रेशोल्ड रेंज के 90 प्रतिशत को बाहर कर देगा और खनन के लिए खोल देगा। जबकि हकीकत में ये पूरी हिल स्ट्रक्चर को प्रोटेक्ट करता है- बेस से पीक तक और सबसर्फेस तक। साथ ही रेंज में जुड़ी हुई निचली जमीनों को। केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने इस बारे में स्पष्ट किया है कि कोई रिलैक्सेशन नहीं है।
अरावली रीजन के 90 प्रतिशत से ज्यादा हिस्से पर संरक्षण बना हुआ है। अरावली जिलों के विश्लेषण से पता चलता है कि कुल एरिया 1.44 लाख वर्ग किमी है, जिसमें केवल 277.89 वर्ग किमी (0.19 प्रतिशत) पर लीगल माइनिंग लीज हैं, जिसमें 90 प्रतिशत राजस्थान में, नौ प्रतिशत गुजरात में और एक प्रतिशत हरियाणा में।
कोई नई लीज नहीं दी जा सकती जब तक मंत्रालय, इंडियन काउंसिल ऑफ फाॅरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन के जरिए हर जिले के लिए मैनेजमेंट प्लान फाॅर सस्टेनेबल माइनिंग तैयार न कर ले। मौजूदा खदानों को भी सख्त सस्टेनेबल प्रैक्टिस फाॅलो करनी होंगी, जैसे वाइल्डलाइफ प्लान और हर छह महीने ऑडिट। सुप्रीम कोर्ट का आदेश अरावली में माइनिंग शुरू करने का अनुमोदन नहीं है!
अब झूठ फैलाने वालों का ट्रैक रिकार्ड देखें। कांग्रेस का “सेव अरावली” अभियान विडंबना से भरा है। अशोक गहलोत के कार्यकालों में सुप्रीम कोर्ट के बैन के बावजूद अवैध खनन फलता-फूलता रहा। वर्ष 2018 की एक रिपोर्ट में राजस्थान में लगातार गतिविधियां उजागर हुईं, जहां माफिया पहाड़ियों को खोखला कर रहे थे।
2009 में कांग्रेस की केंद्र और राज्य सरकारों के समय सुप्रीम कोर्ट ने ब्लैंकेट माइनिंग बैन लगाया। अंदाजा लगाएं किसने इसका विरोध किया? गहलोत सरकार ने! साथ ही, एनफोर्समेंट बेहद खराब था। न्यायालय के रिकाॅर्ड्स के मुताबिक दशकों में राजस्थान में 31 पहाड़ियां गायब हो गईं।
गहलोत सरकार की परिभाषा शुरुआत तो थी, लेकिन बिना दांतों वाली- कोई एकसमान मैपिंग नहीं, कोई इनवायोलेट जोंस नहीं और ढीली माॅनिटरिंग से ओवर-एक्सप्लाइटेशन होता रहा। कांग्रेस पहाड़ियों को राजनीतिक हथियार बना रही है। इसके उलट मोदी सरकार का रिकार्ड देखें।
अरावली ग्रीन वाॅल प्रोजेक्ट, जो पीएम मोदी के नेतृत्व में लांच हुआ, रेंज के साथ जंगलों को बहाल कर रहा है, जिसमें गुजरात में सीड-बाॅल कैंपेन शामिल हैं। इस पहल के तहत सरकार अरावली रेंज में 20 से ज्यादा नए फारेस्ट रिजर्व एरिया बनाने का कमिटमेंट कर चुकी है, अतिरिक्त रिजर्व्ड और प्रोटेक्टेड जोंस बनाकर बायोडायवर्सिटी हाटस्पाट्स को मजबूत कर रही है।
मोदी सरकार ने ‘ग्रीन अरावली’ मूवमेंट से एनफोर्समेंट को तेज किया है, जिसमें बड़े पैमाने पर प्लांटिंग ड्राइव और समाज का शामिल किया गया है, ताकि रेगिस्तान को बढ़ने से रोका जाए। इसके अलावा, ड्रोन सर्विलांस, डिस्ट्रिक्ट टास्क फोर्स, एआई से अवैध खनन रोकना और पुरानी साइट्स की रिक्लेमेशन से एनफोर्समेंट को दांत मिल रहे हैं।
दिल्ली के जिलों में कोई खनन नहीं और 20 से ज्यादा रिजर्व/ प्रोटेक्टेड एरिया पूरी तरह सुरक्षित हैं। पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव के अनुसार, मोदी सरकार आने के बाद संरक्षण बढ़ा है, कमजोर नहीं हुआ। अरावली की तमाम समस्याएं जैसे अवैध खनन, शहरीकरण, ग्राउंडवाटर की ज्यादा निकासी इस फैसले और मोदी सरकार से पहले की हैं।
अशोक गहलोत के दौर में एनफोर्समेंट नाकाम रहा, लेकिन मोदी सरकार इसे एकजुट और मजबूत कर रही है। अरावली बर्बाद नहीं हो रही, बल्कि 90 प्रतिशत संरक्षित है और खनन 0.19 प्रतिशत पर ही सीमित है। अरावली भारत की सदाबहार प्राकृतिक धरोहर का प्रमाण है, और इसे बचाना राजनीतिक विभाजन से ऊपर एकजुटता मांगता है।
साइंस, एनफोर्समेंट और रिस्टोरेशन को प्राथमिकता देकर मोदी सरकार इन पहाड़ियों की केवल रक्षा नहीं कर रही, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए हरा-भरा, ज्यादा मजबूत भविष्य सुनिश्चित कर रही है। तथ्यों को झूठ पर हावी होने दें- असली प्रगति को सेलिब्रेट करने और राष्ट्र के विकास के लिए सामूहिक जिम्मेदारी निभाने का समय है।
( लेखक: शहजाद पूनावाला, राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा)
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