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    जामिया मिल्लिया के वैज्ञानिकों ने खोजा प्रदूषण नियंत्रण का नया तरीका, नालों को प्राकृतिक तौर पर कर सकेंगे साफ

    Updated: Mon, 27 Oct 2025 08:43 PM (IST)

    जामिया मिल्लिया इस्लामिया के वैज्ञानिकों ने शैवाल के डीएनए को नियंत्रित करने की प्रक्रिया खोजी है। इस खोज से प्रदूषित नालों में भी शैवाल को पनपने के लिए सक्षम बनाया जा सकेगा, जिससे प्रदूषण को प्राकृतिक रूप से कम करने में मदद मिलेगी। शोधकर्ताओं ने पाया कि एक विशेष प्रोटीन डोमेन के माध्यम से डीएनए की गतिविधियों को नियंत्रित करके शैवाल की कार्यक्षमता को बढ़ाया जा सकता है। इस तकनीक का उपयोग फोटो स्विच बनाने में भी किया जा सकता है।

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    जामिया मिल्लिया इस्लामिया के वैज्ञानिकों ने समझी डीएनए को रेगुलेट करने की प्रक्रिया।

    जागरण संवाददाता, दक्षिणी दिल्ली। दुनिया में ऑक्सीजन उत्पादन में सबसे बड़ा योगदान शैवाल का है। पानी के अंदर, जमीन-चट्टान पर, मिट्टी से लेकर बर्फ तक में ये जीवित रहते हैं और अपनी संख्या बढ़ाते रहते हैं।

    नाइट्रोजन, अमोनिया, कार्बन जैसे तत्व जो प्रदूषण के बड़े कारक हैं, वह इनका भोजन हैं। जामिया मिल्लिया इस्लामिया के वैज्ञानिकों ने शैवाल के डीएनए को रेगुलरेट करने की प्रक्रिया समझी। गंदे से गंदे नालों में भी शैवाल को पनपने के लिए प्रभावी बनाया जा सकेगा।

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    वर्तमान में खतरनाक स्तर पर पहुंच चुके प्रदूषण को प्राकृतिक तरीके से नियंत्रित करने में इनका इस्तेमाल किया जा सकेगा। विश्वविद्यालय के मल्टीडिस्प्लिनरी सेंटर फाॅर एडवांस रिसर्च एंड स्टडीज में डाॅ. अमित शर्मा के नेतृत्व में इनकी क्षमता को बढ़ाने की दिशा में शोध किया जा रहा है।

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    अमेरिका, स्वीडन, फ्रांस, जर्मनी जैसे देशों में भी इस पर काम चल रही है। सितंबर 2025 में जर्मनी में शैवाल की कार्यक्षमता बढ़ाने को लेकर हुए कांफ्रेंस में भी जामिया के शोधकार्य को सराहना मिली।

    अभी तक देखा गया है कि जब तक शैवाल को भोजन मिलता है, वो ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं। भोजन न मिलने पर सुसुप्तावस्था में जाकर टीएजी (ट्राई एसाइल ग्लिसराल) बनाने लगते हैं, जो जैव ईंधन का एक मालीक्यूल है।

    अब इसकी कोशिका में लाइट ऑक्सीजन वोल्टेज प्रोटीन डोमेन यानी एक प्रकार का प्रोटीन डोमेन जोड़ा जाएगा, जो डीएनए की गतिविधि को संचालित करने में मददगार बनेगा। इस प्रक्रिया से शैवाल की गतिविधियों को नियंत्रित करते हुए उसकी कार्यक्षमता को बढ़ाया जा सकता है।

    ऐसे काम करता है प्रोटीन डोमेन

    कोशिका का सोना-जगना सीएचटी-7 पर निर्भर होता है। डीएनए बाइंडिंग प्रोटीन सीएचटी-7 का डोमेन है सीएक्ससी। बाहरी डीएनए प्रोटीन की मौजूदगी में यह अमूमन निष्क्रिय रहता है। यह डीएनए से जुड़ भी सकता है, पर माॅलीक्यूलर क्राउडिंग यानी ज्यादा बाहरी प्रोटीन की मौजूदगी में धक्का लगने पर यह बाइंडिंग छोड़ देता है।

    ये है डीएनए को रेगुलरेट करने की प्रक्रिया

    एलओवी (डी) यानी लाइट ऑक्सीजन वोल्टेज प्रोटीन डोमेन पर जब लाइट नहीं पड़ती तो इसके सी-टर्मिनल पर बने स्प्रिंग जैसे हेलिक्स (जे अल्फा हेलिक्स) सिकुड़े हुए रहते हैं। वहीं जब इस पर लाइट पड़ती है तो यह खुल जाता है। प्रयोगशाला में देखा गया कि जब कोशिका में मौजूद डीएनए बाइंडिंग डोमेन में डाला जाता है तो यह सीएक्ससी को पकड़कर कर रखता है।

    हेलिक्स में संकुचन की वजह से सीएक्ससी हिल नहीं पाता। वहीं लाइट की मौजूदगी में स्प्रिंग जैसे हेलिक्स खुल जाते हैं और सीएक्ससी डीएनए से जुड़ जाता है। यह एक प्रकार के स्विच (एलोस्टेयरिक रेगुलेशन) की तरह है।

    इस पूरी प्रक्रिया के जरिए डीएनए को रेगुलरेट करने की प्रक्रिया को समझा गया। डाॅ. अमित शर्मा के निर्देशन में शोध छात्रा सैयदा आमना आर्शी व मनीषा चौहान की टीम का यह शोध 19 दिसंबर 2023 को बायोफिजिकल जर्नल व 13 मार्च 2024 को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ बायोलाॅजिकल माइक्रोमाॅलीक्यूल्स में प्रकाशित हुआ है। भविष्य में इससे हम सीएचटी-7 को मॉडिफाई भी कर सकेंगे।

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    फोटो स्विच बनाने में किया जा सकता है इस्तेमाल

    एमसीएआरएस के डाॅ. अमित शर्मा ने बताया कि डीएनए को रेगुलरेट करने की इस प्रक्रिया का इस्तेमाल फोटो स्विच करने में किया जा सकता है। बायोटेक्नोलाॅजी विभाग की ओर से इसे बनाने के लिए हाल ही फंड भी मिला है।

    इसका इस्तेमाल कर शैवाल को प्रभावी बनाकर नदी-नालों में इन्हें उगाया जा सकता है। यमुना समेत तमाम नदी-नालों में इनकी परिष्कृत स्ट्रेन विकसित कर जहां जल प्रदूषण का स्तर कम किया जा सकता है।

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