AIIMS ने विकसित की दुनिया की सबसे सुरक्षित मिर्गी सर्जरी ‘रोटेख’, सिर्फ 60 मिनट में मिर्गी से मिलेगी मुक्ति
एम्स दिल्ली ने मिर्गी के इलाज में एक महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है। संस्थान ने दुनिया की सबसे सुरक्षित मिर्गी सर्जरी विकसित की है, जिससे रोगियों को केवल 60 मिनट में बीमारी से छुटकारा मिल सकता है। यह नई तकनीक उन रोगियों के लिए आशा की किरण है जिनकी मिर्गी दवाओं से ठीक नहीं होती। एम्स का यह नवाचार मिर्गी रोगियों के जीवन में एक नई उम्मीद लेकर आया है।

प्रतीकात्मक तस्वीर।
अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली के चिकित्सकों ने मिर्गी (एपिलेप्सी) के जटिल और दवा-रोधी उपचार का आसान समाधान विकसित किया है। इससे अब असाध्य मिर्गी का उपचार सिर्फ एक सुई (इनवेसिव) तकनीक से संभव हो गया है।
मिर्गी की दवा भी नहीं करती असर
इस उपचार में न तो बड़ा चीरा लगता है न टांका और न खून बहने का खतरा होता है। ‘रोबोटिक थर्मोकोएगुलेटिव हेमिस्फेरोटोमी (रोटेख, आरओटीसीएम) नामक इस तकनीक से ऐसे रोगियों का इलाज किया जाता है, जिन पर मिर्गी की दवा असर करना बंद कर देती है। इनमें खासकर छोटे बच्चे शामिल होते हैं। इस नई तकनीक से ऐसे मरीजों का उपचार अब आसान, सुरक्षित और कम खर्चीला हो गया है।
विदेशों में भी बढ़ रही है मांग
इसे एम्स दिल्ली के न्यूरोसर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो. सरत चंद्रा ने विकसित किया है। अब तक 100 से अधिक मिर्गी पीड़ितों, जिनमें 50 से अधिक बच्चे शामिल हैं, इसका लाभ ले चुके हैं। बच्चों में इसके परिणाम विशेष रूप से बेहतर पाए गए हैं। वे जल्दी ठीक होते हैं। जल्दी बोलते हैं और दौरे तुरंत बंद होते हैं। अब विदेशों में भी इसकी मांग होने लगी है। इसे सर्जरी के क्षेत्र में विश्व के प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल ‘जर्नल ऑफ न्यूरो सर्जरी’ ने प्रमुखता से प्रकाशित किया है।
देश में एक करोड़ से अधिक मिर्गी रोगी
एम्स न्यूरोलाॅजी विभागाध्यक्ष प्रो. मंजरी त्रिपाठी ने बताया कि विश्व में पांच करोड़ से अधिक मिर्गी (एपिलेप्सी) रोगी हैं। भारत में इनकी संख्या करीब 1.2 करोड़ है। इनमें से 30 प्रतिशत यानी करीब 36 लाख दवा से ठीक नहीं होते। ऐसे मरीजों को सर्जरी की आवश्यकता होती है। उन्होंने बताया कि एम्स विश्व के सबसे बड़े सर्जिकल मिर्गी कार्यक्रम का संचालन करता है।
पुरानी हेमिस्फेरोटामी सर्जरी में खर्चा व जोखिम दोनों अधिक
पहले मिर्गी की सर्जरी में सिर में बड़ा चीरा लगाया जाता था। खोपड़ी की हड्डी काटकर दिमाग को खोलना पड़ता था। ऑपरेशन का समय लंबा होता था। संक्रमण, रक्तस्राव और बेहोशी की दिक्कतें अधिक रहती थीं। अच्छे अस्पतालों में खर्च 10 से 12 लाख रुपये तक पहुंच जाता था। रिकवरी में चार से छह सप्ताह लगते थे। सफलता का प्रतिशत भी 60 से 70 ही था।
नई ‘रोटेख’ सर्जरी तकनीक
रोटेख तकनीक में बिना खोपड़ी खोले दिमाग के उस बिंदु को एक सुई जैसे पतले उपकरण से गर्म कर निष्क्रिय कर दिया जाता है, जहां से मिर्गी के दौरे शुरू होते हैं। इसके लिए सिर में सिर्फ सुई जैसा पतला मार्ग बनाया जाता है। यह प्रक्रिया 45 से 60 मिनट में पूरी हो जाती है। रिकवरी भी जल्द हो जाती है। मरीज 24 घंटे में घर जा सकता है। इसकी सफलता दर 90 से 95 प्रतिशत है। अच्छे अस्पतालों में खर्च 1.25 लाख से 1.5 लाख तक है।
सस्ती और कम दर्द वाली सर्जरी हमारा लक्ष्य
इस तकनीक के जनक और एम्स न्यूरो सर्जरी के प्रमुख प्रोफेसर डाॅ. सरत चंद्रा कहते हैं कि रोटेख मिर्गी के ऐसे रोगियों खासकर बच्चों के लिए जिन पर दवा काम करना बंद कर देती है, के लिए क्रांतिकारी उपाय है। इससे अब बिना बड़ा ऑपरेशन किए दौरे रोकना संभव हो रहा है।
बच्चों के लिए यह सबसे सुरक्षित और प्रभावी विकल्प बनकर उभरी है। हमारा लक्ष्य है कि गंभीर मिर्गी से जूझ रहे बच्चों को सुरक्षित, सस्ती और कम दर्द वाली सर्जरी मिले। रोटेख में बड़ा चीरा नहीं लगता, खून भी नहीं निकलता और बच्चा जल्दी सुधर जाता है। यह तकनीक बच्चों को सचमुच नई जिंदगी देती है।
देश के बाहर इजरायल में पहला रोटेख ऑपरेशन
इजरायल की राजधानी तेल अवीव मेडिकल सेंटर के न्यूरोसर्जन प्रो. जोनाथन रोथ और प्रो. इदो स्ट्राउस ने एम्स से यह तकनीक सीखने के बाद अपने यहां 12 साल की एक बच्ची की रोटेख सर्जरी कर उसका सफल उपचार किया।
प्रो. जोनाथन रोथ और प्रो. इदो स्ट्राउस ने बताया कि ऑपरेशन से पहले बच्ची बोल नहीं पा रही थी। दाहिना हाथ-पैर काम नहीं कर रहा था और उसे लगातार दौरे पड़ रहे थे। सर्जरी के अगले ही दिन बच्ची सामान्य बातचीत करने लगी, दाहिना हाथ-पैर चलाने लगी और उसके सभी दौरे बंद हो गए।

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