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    दिल्ली के प्रदूषण से निपटने को AI से लैस क्लीन एयर ब्लूप्रिंट पेश, लो-कॉस्ट सेंसर नेटवर्क बनेगा हथियार

    Updated: Thu, 27 Nov 2025 08:19 PM (IST)

    दिल्ली में प्रदूषण से निपटने के लिए आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों ने एआई-आधारित क्लीन एयर ब्लूप्रिंट पेश किया है। उन्होंने शहरों में वायु गुणवत्ता सुधारने के लिए लो-काॅस्ट सेंसर नेटवर्क को महत्वपूर्ण बताया। विशेषज्ञों ने हाइपरलोकल और रियल-टाइम डेटा की जरूरत पर ज़ोर दिया, ताकि समय पर निर्णय लिए जा सकें। उनका कहना है कि तकनीक, नीति और नागरिक सहभागिता से ही स्वच्छ हवा सुनिश्चित की जा सकती है।

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    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। आईआईटी कानपुर के ऐरावत रिसर्च फाउंडेशन (एआरएफ) के सीईओ अमरनाथ ने दिल्ली में प्रदूषण के लिए एआई-आधारित क्लीन एयर ब्लूप्रिंट पेश करते हुए क्षमतापरक समाधानों पर बल दिया है।

    उन्होंने कहा, “भारत को ऐसे एयर-क्वालिटी सिस्टम चाहिए जो वैज्ञानिक रूप से मजबूत हों, साथ ही किफायती और हर शहर में लागू किए जा सकें। एआई-सक्षम लो-काॅस्ट सेंसर नेटवर्क इस बदलाव के केंद्र में हैं।”

    वह गुरुवार को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में “शहरों में वायु गुणवत्ता सुधारने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और लो-काॅस्ट सेंसर का उपयोग” विषयक राष्ट्रीय कार्यशाला में बोल रहे थे।

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    इस कार्यशाला में शिक्षाविदों, उद्योग प्रतिनिधियों एवं सरकारी विशेषज्ञों ने भाग लिया और चर्चा की कि भारत किस तरह एआई-समर्थित, क्षमतापरक लो-काॅस्ट सेंसर नेटवर्क को अपनाकर शहरी वायु-गुणवत्ता प्रबंधन को तेजी से मजबूत कर सकता है।

    जब देश के कई बड़े शहर गंभीर एयूआई स्तरों का सामना कर रहे हैं, ऐसे समय में इस कार्यशाला ने हाइपरलोकल और रियल-टाइम वायु-गुणवत्ता डेटा की तात्कालिक ज़रूरत पर जोर दिया, ताकि सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े निर्णय समय पर लिए जा सकें।

    आईआईटी कानपुर में सस्टेनेबल सिटीज़ के लिए एआइ-सीओई के प्रोजेक्ट डायरेक्टर, प्रो एसएन त्रिपाठी ने कहा “जब लो-काॅस्ट सेंसर को मज़बूत विश्लेषण और पारदर्शी कैलिब्रेशन के साथ जोड़ा जाता है, तब वे पड़ोस स्तर पर वायु-गुणवत्ता की भी ऐसी झलक दे सकते हैं, जो भारत ने पहले कभी नहीं देखी।”

    उद्योग विशेषज्ञ नमिता गुप्ता और वाम्सी कृष्ण ने बताया कि भारत अब बड़े पैमाने पर भरोसेमंद सेंसर निर्माण की क्षमता हासिल कर रहा है। गुप्ता ने कहा, “हम उस दौर में प्रवेश कर रहे हैं, जहां मेक इन इंडिया के तहत बने सेंसर भारत की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। अब अगला कदम डेटा गुणवत्ता सुधारने की चुनौती का समाधान करना है।”

    सीएसआईआर-एनपीएल के मुख्य विज्ञानी डाॅ. गोविंद गुप्ता ने गैर-नियामक निगरानी प्रणालियों को सुदृढ़ करने में लो-कास्ट सेंसर नेटवर्क की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “लो-काॅस्ट सेंसर नियामक माॅनिटरों का विकल्प नहीं हैं, लेकिन वे घने, रियल-टाइम सार्वजनिक एक्सपोजर आकलन और हाइपरलोकल प्लानिंग के लिए अनिवार्य हैं।”

    आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं, प्रो सागनिक डे और डाॅ. सोफिया ने इस बात के प्रमाण साझा किए कि कैसे विस्तृत सेंसर नेटवर्क स्थानीय प्रदूषण वृद्धि को पकड़ते हैं। अमर नाथ ने कहा, “स्वच्छ हवा के लिए एक समग्र दृष्टिकोण जरूरी है, जिसमें तकनीक, नीति, सार्वजनिक डेटा और नागरिक सहभागिता का एक-साथ आना आवश्यक है।”

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