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    इस शख्स ने बतौर चुनाव आयुक्त कराया था पहला लोकसभा चुनाव, पढ़ें- यह रोचक स्टोरी

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Sun, 31 Mar 2019 08:43 AM (IST)

    वर्ष 1899 में पैदा हुए सुकुमार सेन ने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज और लंदन विश्वविद्यालय में पढ़ाई की। उन्हें लंदन विश्वविद्यालय में गणित विषय में स्वर ...और पढ़ें

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    इस शख्स ने बतौर चुनाव आयुक्त कराया था पहला लोकसभा चुनाव, पढ़ें- यह रोचक स्टोरी

    नई दिल्ली [नलिन चौहान]। भारत को अगस्त 1947 में अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिली। फिर दो साल बाद, मार्च 1950 में भारत निर्वाचन आयोग का गठन हुआ और सुकुमार सेन को उसका पहला मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया। उसके एक महीने बाद संसद में जनप्रतिनिधित्व कानून पारित हुआ। संसद में इस अधिनियम के प्रस्ताव को पेश करते समय जवाहरलाल नेहरू ने आम चुनावों के 1951 के बसंत की शुरुआत में होने की उम्मीद जताई। नेहरू की व्यग्रता स्वाभाविक थी पर इस समय अवधि को लेकर चुनाव करवाने वाले व्यक्ति का नजरिया कुछ सावधानी भरा था। यह एक कड़वा सच है कि भारतीय जनमानस में सुकुमार सेन को लेकर जानकारी का अभाव है। वह बात अलग है कि उन्होंने भी संस्मरण और दस्तावेजों की शक्ल में अपने बारे में कुछ नहीं छोड़ा। वर्ष 1899 में पैदा हुए सुकुमार सेन ने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज और लंदन विश्वविद्यालय में पढ़ाई की। उन्हें लंदन विश्वविद्यालय में गणित विषय में स्वर्ण पदक मिला।

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    वे वर्ष 1921 में भारतीय सिविल सेवा (आइसीएस) में चयनित हुए और ब्रिटिश भारत में बंगाल के विभिन्न जिलों में न्यायाधीश के रूप में कार्यरत रहे। स्वतंत्र भारत में सेन पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव नियुक्त हुए और फिर वहां से सरकारी प्रतिनियुक्ति पर मुख्य निर्वाचन आयुक्त के रूप में दिल्ली आए। सेन दिल्ली में, देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर 21 मार्च 1950 से 19 दिसंबर 1958 तक आसीन रहे। शायद यह सेन की गणित की पृष्ठभूमि ही थी, जिसके कारण उन्होंने प्रधानमंत्री से देश में आम चुनाव संपन्न करवाने के लिए अधिक समय देने का अनुरोध किया।

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    उल्लेखनीय है कि सरकार के किसी भी अधिकारी, वह भी विशेषकर किसी भारतीय अधिकारी, को इस तरह की हिमालयी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा था। उन्होंने शून्य से शिखर तक का सफर तय करते हुए भारत के पहले आम चुनाव को करवाने के लिए चुनाव व्यवस्था को तैयार किया। अगर इस हिमालयी चुनौती को गणित की भाषा में कहें तो 17.6 करोड़ मतदाताओं का लक्ष्य था, जिसमें 21 साल और उससे अधिक उम्र के ऐसे भारतीय थे, जिनमें मात्र 15 फीसद ही साक्षर थे। दूसरे शब्दों में, 85 फीसद भारतीय मतदाता निरक्षर थे, जिन्हें पहली बार मतदान के लिए तैयार करना एक कठिन लक्ष्य था। हर मतदाता की पहचान करने के साथ उसका नाम और पंजीकरण किया जाना था। ऐसे में मतदाताओं का पंजीकरण इस दिशा में केवल पहला कदम था। राजनीतिक दलों के लिए चुनाव चिन्हों, मतदान पत्रों और मतदान पेटियों के डिजाइन तैयार करना भी एक दुरूह कार्य था क्योंकि अधिकांश मतदाता निरक्षर थे। लोकसभा के आम चुनाव के साथ राज्य विधानसभाओं के चुनाव होने के कारण स्थिति अधिक चुनौतीपूर्ण थी।

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    अच्छी बात यह थी कि ऐसी स्थिति में सेन के साथ काम करने वाले विभिन्न राज्यों के चुनाव आयुक्तों में अधिकतर इंडियन सिविल सर्विस आइसीएस सेवा के ही अधिकारी थे। 1951-52 में हुए आम चुनाव में पहली लोकसभा को निर्वाचित किया गया, जिसके लिए 25 अक्टूबर 1951 और 21 फरवरी 1952 के बीच में चुनावी मतदान हुआ। इस हिमालयी लक्ष्य को प्राप्त करने में सेन को कैसी कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा और कैसे उन्होंने चुनावी प्रणाली को कायम करते हुए सफलतापूर्वक आम चुनाव संपन्न करवाए, इस बात की झलकी भारत निर्वाचन आयोग की दो खंडों वाली एक रिपोर्ट में देखने को मिलती है। 1954 में दिल्ली से प्रकाशित ‘रिपोर्ट ऑफ द इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया’ शीर्षक वाला यह दस्तावेज सेन के महत्ती कार्य की अकथ कथा है। सेन को उनकी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए 1954 में पद्म भूषण के नागरिक सम्मान से भी सम्मानित किया गया।

    (दिल्ली के अनजाने इतिहास के खोजी)

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