'ये शर्म की बात है कि...', इंग्लैंड में सम्मान मिलने के बाद फारुख इंजीनियर ने भारत पर कसा तंज, सख्त लहजे में दर्द किया बयां
भारतीय टीम के पूर्व विकेटकीपर फारुख इंजीनियर के नाम मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रेफर्ड में स्टैंड का नाम रखा गया है। इसके बाद इंजीनियर खुश तो काफी दिखाई दिए लेकिन उन्होंने भारत को आड़े हाथों ले लिया है और कहा कि भारत में उन्हें वो सम्मान नहीं मिला जो मिलना चाहिए था।

विशेष संवाददाता, जागरण, मैनचेस्टर: पूर्व विकेटकीपर फारुख इंजीनियर के नाम पर बुधवार को मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रैफर्ड के एक स्टैंड का नामकरण किया गया जो विदेशी मैदान पर किसी भारतीय के लिए पहला सम्मान है। ओल्ड ट्रैफर्ड में खिलाड़ियों और मीडिया सेंटर के बीच तथा हिल्टन होटल के विस्तार पर स्थित बी स्टैंड को भारत और इंग्लैंड के बीच चौथे टेस्ट के पहले दिन औपचारिक रूप से सर क्लाइव लॉयड और फारुख इंजीनियर स्टैंड कर दिया गया।
लंकाशर क्रिकेट क्लब में उनके अपार योगदान के सम्मान में स्टैंड के अनावरण के समय इंजीनियर और वेस्टइंडीज के दिग्गज कप्तान लॉयड दोनों मौजूद थे। इंजीनियर ने बताया कि यह सिर्फ मेरे लिए ही नहीं बल्कि भारत के लिए भी गर्व का क्षण है। क्लाइव और मैं दोनों सुबह इसके बारे में बात कर रहे थे। हमने कभी नहीं सोचा था कि हमारे सम्मान में ऐसा कुछ किया जाएगा। ईश्वर महान है।
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अपने देश में नहीं मिली पहचान
इंजीनियर ने कहा कि अपने देश में पहचान नहीं मिलने की कमी पूरी हुई। इंजीनियर (87 वर्ष) ने अपना अधिकांश क्रिकेट मुंबई में विशेषकर ब्रेबोर्न स्टेडियम में खेला। उन्होंने कहा कि यह शर्म की बात है कि मेरी उपलब्धियों को वहां सम्मान नहीं मिला जहां मैंने अपना अधिकांश क्रिकेट खेला है। हालांकि, इंजीनियर ने 2024 में उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार प्रदान करने के लिए भारतीय क्रिकेट बोर्ड का आभार व्यक्त किया था।
लंकाशर के लिए खेल इंजीनियर
इंजीनियर ने 1968 से 1976 तक लंकाशर का प्रतिनिधित्व किया, उन्होंने क्लब के लिए 175 मैच खेले जिनमें 5,942 रन बनाने के साथ 429 कैच लिए और 35 स्टंपिंग की। इंजीनियर का क्लब में शामिल होना टर्निंग प्वाइंट रहा और उनकी मदद से क्लब ने 15 साल का सूखा खत्म करने के बाद 1970 और 1975 के बीच चार बार जिलेट कप जीता। मुंबई के ब्रेबोर्न स्टेडियम में यादगार प्रदर्शन और भारतीय क्रिकेट से गहरे जुड़ाव के बावजूद इंजीनियर के नाम पर वहां कोई स्टैंड नहीं है।
दो बार विश्व कप विजेता कप्तान लॉयड 1970 के दशक की शुरुआत में विदेशी खिलाड़ी के रूप में लंकाशर में शामिल हुए थे। लंकाशर के साथ लॉयड का दो दशक लंबा जुड़ाव अहम रहा। यह सम्मान इंजीनियर और लॉयड दोनों के काउंटी के लिए किए गए योगदान की अहमियत दर्शाता है। इंजीनियर ने संन्यास के बाद मैनचेस्टर को अपना घर बना लिया है और यहीं रहते हैं।
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