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    क्या है झीरम घाटी हमले का सच? पूर्व माओवादी रुपेश ने किया बड़ा दावा, जांच एजेंसियों को लेकर कही ये बात

    By ANIMESH PALEdited By: Garima Singh
    Updated: Thu, 25 Dec 2025 07:34 PM (IST)

    पूर्व माओवादी नेता रूपेश ने दावा किया है कि झीरम घाटी हमले की सच्चाई जांच एजेंसियों को पहले से ही पता है। उन्होंने कहा कि यह हमला सुनियोजित राजनीतिक स ...और पढ़ें

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    रूपेश ने नईदुनिया से विशेष बातचीत में किए कई दावे

    अनिमेष पाल, जगदलपुर। झीरम घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हुए माओवादी हमले को 12 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन हाल के दिनों में भाजपा और कांग्रेस नेताओं के बीच बयानबाजी के बाद यह मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है।

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    17 अक्टूबर को समर्पण करने वाले पूर्व माओवादी केंद्रीय समिति सदस्य रुपेश उर्फ सतीश ने नईदुनिया से विशेष बातचीत में दावा किया है कि झीरम हमले की वास्तविक सच्चाई जांच एजेंसियों को पहले से ज्ञात है। बता दें कि 25 मई 2013 को माओवादियों ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा व नंद कुमार पटेल सहित 30 से अधिक लोगों की हत्या कर दी थी।

    रुपेश के अनुसार, झीरम हमले के बाद अब तक कई आत्मसमर्पित माओवादियों के बयान जांच एजेंसियों द्वारा दर्ज किए जा चुके हैं, जिनसे पूरी घटना की पृष्ठभूमि और परिस्थितियां स्पष्ट हो गई हैं। उन्होंने कहा कि घटना के समय वे स्वयं मौके पर मौजूद नहीं थे, लेकिन बाद में भाकपा (माओवादी) की पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समिति की बैठकों में इस हमले को संगठन की बड़ी रणनीतिक भूल के रूप में स्वीकार किया गया था।

    पार्टी ने इस संबंध में पत्र जारी कर सार्वजनिक रूप से अपनी गलती भी मानी थी। रुपेश ने स्पष्ट किया कि झीरम हमला किसी राजनीतिक साजिश के तहत सुनियोजित नहीं था। यह टीसीओसी (टैक्टिकल काउंटर आफेंसिव कैंपेन) के तहत पुलिस बल को निशाना बनाने की योजना थी, लेकिन दुर्भाग्यवश इसकी चपेट में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा आ गई।

    उन्होंने बताया कि स्थानीय पहचान के कारण कवासी लखमा को छोड़ दिया गया था। हालांकि, झीरम हमले की समीक्षा के बावजूद नेतृत्व करने वाले माओवादी कैडर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई, बल्कि बाद में उसे संगठन में पदोन्नति भी दी गई।

    प्रश्न: जब टीसीओसी केवल जवानों के लिए थी, तो कांग्रेस नेताओं की हत्या क्यों की गई? क्या माओवादियों का सूचना तंत्र इतना कमजोर था कि परिवर्तन यात्रा की जानकारी नहीं मिल सकी?

    रुपेश: हमले का नेतृत्व कर रहे माओवादी कैडर में राजनीतिक समझ का अभाव था, जिससे स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई। इसी कारण नंद कुमार पटेल और उदय मुदलियार जैसे नेता भी मारे गए। माओवादियों का सूचना तंत्र उतना मजबूत नहीं है, जितना आमतौर पर समझा जाता है। सूचनाएं पहुंचाने के लिए आज भी पुराने और सीमित तरीकों का ही उपयोग किया जाता है।

    प्रश्न: 35 साल का भूमिगत जीवन छोड़कर मुख्यधारा में लौटने का कोई मलाल?

    रुपेश: छात्र जीवन में रेडिकल यूथ संगठन से जुड़ने के बाद 1990 में भूमिगत हो गया था। उस समय शोषण के खिलाफ लड़ाई जरूरी थी और जनता का भी भरपूर समर्थन मिला, इसलिए यह संघर्ष इतना लंबा चला। लेकिन बदले हुए दौर में सशस्त्र संघर्ष का कोई औचित्य नहीं रह गया था। संगठन के भीतर भी पिछले दो-तीन वर्षों से इस पर कई बार मंथन हुआ, लेकिन एक राय नहीं बन सकी। इधर सुरक्षा बलों का दबाव लगातार बढ़ रहा था।

    माओवादी प्रमुख बसवा राजू भी सशस्त्र संघर्ष जारी रखने के पक्ष में नहीं थे। उनके मारे जाने के बाद पोलित ब्यूरो और केंद्रीय रीजनल ब्यूरो सदस्य भूपति और मैंने उन्हीं के बताए रास्ते पर चलते हुए हथियार छोड़ने और मुख्यधारा में लौटने का निर्णय लिया। इतने वर्षों की लड़ाई को लेकर कोई हताशा नहीं है। अब आगे भी जनता की लड़ाई जारी रहेगी, लेकिन बंदूक नहीं, राजनीति हथियार होगी। अभी यह तय नहीं किया है कि नई पार्टी बनाएंगे या किसी दल को समर्थन देंगे।

    प्रश्न: माओवादी हिंसा में सैकड़ों निर्दोष मारे गए, जनअदालतों के जरिए हत्याएं की गईं, क्या इस खूनी आंदोलन से विरक्ति नहीं हुई?

    रुपेश: जब भी युद्ध होता है, लोग मारे जाते हैं। जो लड़ाई हम लड़ रहे थे, उसके सामने यह बलिदान हमें जरूरी लगते थे। माओवादी भी बड़ी संख्या में मारे गए, लेकिन हमने लड़ाई का मैदान नहीं छोड़ा। जनअदालतों को लेकर यह कहा जाता है कि हमने निर्दोषों को मारा, लेकिन भैरमगढ़ इलाके में एक जनअदालत में जनता की मांग पर पुलिस जवान को छोड़ भी दिया गया था। जनता की राय के अनुसार न्याय करना हमारी नीति का हिस्सा रहा है।

    प्रश्न: लेवी के नाम पर करोड़ों रुपये ठेकेदारों से वसूले जाते हैं, क्या भ्रष्टाचार की कमाई पर खड़ा यह आंदोलन जायज था? क्या विदेशी सहायता मिलती थी?

    रुपेश: माओवादी संगठन पूंजीवाद का विरोधी रहा है। करोड़ों रुपये की लेवी वसूलने के आरोप सही नहीं हैं। हमने किसी बड़े पूंजीपति से पैसा नहीं लिया। संगठन को चलाने के लिए जितनी जरूरत होती थी, उतने ही रुपये छोटे ठेकेदारों से लिए जाते थे। विदेशी सहायता मिलने की बात पूरी तरह झूठी है। हमारे हथियार कंट्री मेड थे। पटाखों के बारूद से हथियार बनाए गए और आटोमैटिक हथियार सुरक्षाबल से लूटे गए।

    प्रश्न: स्कूल तोड़कर बच्चों को शिक्षा से वंचित करना और सड़क-अस्पताल न बनने देना कैसे जनता की लड़ाई है?

    रुपेश: स्कूल, अस्पताल और सड़कें न बनने देना हमारी नीति का हिस्सा नहीं था। जब स्कूलों में सुरक्षाबल को ठहराया जाने लगा और सड़कों से होकर फोर्स की गाड़ियां जंगलों में पहुंचने लगीं, तब हमने स्कूल तोड़े और सड़कें काटीं। स्वास्थ्यकर्मियों को आज तक कहीं भी आने-जाने की मनाही नहीं रही है।

    प्रश्न: माओवादी विचारधारा अगर इतनी मजबूत थी, तो वह जंगलों तक ही क्यों सिमट गई और माओवादी प्रभावित क्षेत्र पिछड़े क्यों रह गए?

    रुपेश: यह सच है कि विचारधारा और संघर्ष को समय के साथ अपडेट नहीं किया गया। इसी कारण आंदोलन सीमित दायरे में सिमट गया और जनता का भरोसा धीरे-धीरे टूटता चला गया। विकास जनता की जरूरत और सहमति के अनुसार होना चाहिए, न कि थोपा हुआ। पूंजीपतियों को खदान देना और जंगल काटना विकास नहीं है। आदिवासी क्षेत्रों में पेसा कानून लागू है और उसी के अनुसार विकास की दिशा तय होनी चाहिए।

    प्रश्न: बस्तर में ईसाई मिशनरियों द्वारा बड़े पैमाने पर मतांतरण हुआ, इस पर माओवादी चुप क्यों रहे?

    रुपेश: ऐसा नहीं है कि हमने मिशनरियों का समर्थन किया हो। इससे हमें नुकसान ही हुआ है, क्योंकि मतांतरण के बाद लोग चर्च से जुड़ जाते हैं और संगठन में नहीं आते।

    प्रश्न: अगर माओवादी झीरम हमले को रणनीतिक भूल बता रहे हैं, तो इसके लिए सार्वजनिक रूप से माफी क्यों नहीं मांगी?

    रुपेश: संगठन की समीक्षा बैठक में यह माना गया था कि राजनीतिक हत्याएं गलत थीं। भले ही संगठन ने सार्वजनिक रूप से माफी नहीं मांगी, लेकिन प्रेस बयानों में गलती
    के रूप में स्वीकार किया था।

    प्रश्न : कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा के शव पर हथियार लेकर डांस करने को माओवादी क्या मानते हैं?

    रुपेश: संगठन की बैठक में कर्मा के शव पर डांस करने की बात नहीं थी। मैं भी इसे व्यक्तिगत रूप से बहुत गलत मानता हूं।

    प्रश्न : शीर्ष माओवादी देवजी समर्पण क्यों नहीं कर रहा है?

    रुपेश: देवजी केंद्रीय मिलिट्री कमेटी का प्रमुख व केंद्रीय पोलित ब्यूरो सदस्य है। भूपति की उपस्थिति में ही संघर्ष छोड़ने का निर्णय लिया गया था। देवजी मानता है कि संघर्ष को मरने नहीं देना है, भले ही हम मर जाएं।