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    बस्तर का चिड़पाल गांव, जहां जल संकट की कोख से जन्मा मतांतरण, बीमारी से टूटी आस्था

    Updated: Sun, 15 Jun 2025 09:55 PM (IST)

    बस्तर जिले के चिड़पाल गांव में जल संकट और दूषित पानी से परेशान होकर लगभग 30% लोगों ने मतांतरण कर लिया है। ग्रामीणों के अनुसार दूषित पानी पीने से वे बीमार हो रहे थे और पारंपरिक इलाज से ठीक नहीं हो रहे थे। चर्च में प्रार्थना करने से ठीक होने के बाद उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया।

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    उम्मीद में बस्तर के चिड़पाल गांव के 30 प्रतिशत लोग हो चुके मतांतरित

    अनिमेष पाल, जगदलपुर। बस्तर जिले का चिड़पाल गांव गंभीर जल संकट और दूषित पानी से फैल रही बीमारियों का दंश झेल रहा है। इस त्रासदी ने न केवल ग्रामीणों के जीवन को प्रभावित किया है, बल्कि उनकी पारंपरिक आस्था को भी झकझोर कर रख दिया है।

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    कभी देवगुड़ी का केंद्र रहे इस गांव में अब चर्च की पक्की इमारतें तेजी से तन रही हैं। एक अनुमान के अनुसार गांव के लगभग 30 प्रतिशत लोग मतांतरित हो चुके हैं। यह स्थिति इसकी गवाही है कि कैसे पानी जैसी मूलभूत आवश्यकता की कमी ने एक पूरे समुदाय की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को ही चुनौती दे डाली है।

    पुजारीपारा के मतांतरित भूरसुराम कश्यप बताते हैं कि उनका परिवार गांव का दूसरा परिवार था, जिसने लगभग दस साल पहले अपना मत बदला था। भूरसुराम की पत्नी मानो की आपबीती इस स्थिति को और स्पष्ट करती है। उन्होंने बताया कि दूषित पानी पीने से वह और उनकी सौतन गंभीर रूप से बीमार पड़ गई थीं।

    आस्था के पहिये को ही पलट दिया

    पारंपरिक ओझा-गुनिया से इलाज का कोई असर नहीं हुआ, तब पास के मंगनार गांव के रिश्तेदारों की सलाह पर उन्होंने चर्च का सहारा लिया। पादरी की प्रार्थना से ठीक होने के बाद उन्होंने मसीही मत अपना लिया। यह कथित चमत्कार ही गांव में मतांतरण का मुख्य कारण बन गया। गंदा पानी पीकर लगातार बीमार पड़ते रहने से ग्रामीण थक चुके थे। पानी के अभाव में उठती प्यास ने गांव में आस्था के पहिये को ही पलट दिया।

    बता दें कि चिड़पाल गांव बीते कई वर्षों से भीषण जलसंकट झेल रहा है। गांव के दो दर्जन हैंडपंप में दो-तीन ही काम करते हैं, जिनमें बूंद-बूंद ही पानी आता है, गर्मियों में यह भी सूख जाते हैं। चार वर्ष पहले 1.65 करोड़ खर्च कर जल जीवन मिशन से गांव में विशाल पानी टंकी बनाई गई और घर-घर पाइप लाइन बिछाकर नल लगा दिए गए। कागज में पूरे हो चुके इस मिशन में टंकी को किसी कार्यशील बोरवेल से जोड़ा नहीं गया, इसलिए नल अब भी पानी की प्रतीक्षा में हैं। प्यास बुझाने ग्रामीण खेतों में बने कुओं का दूषित पानी पीने पी रहे हैं, जिससे बीमार पड़ रहे हैं। एक सप्ताह पहले ही गांव के जुनापानी पारा में नौ लोग उल्टी-दस्त से बीमार पड़े थे।

    इसलिए फैला प्रार्थना से उपचार का भ्रमजाल

    उपसरपंच सुकुरराम कश्यप कहते हैं कि सूखे कंठ और दूषित पानी से फैल रही बीमारियों ने मिशनरियों को इलाज और प्रार्थना से उपचार का भ्रमजाल फैलाने का अवसर दे दिया। आज गांव में 70 ईसाई परिवार और छह चर्च हैं, जहां करीब 500 लोग प्रार्थना करते हैं। यह स्पष्ट है कि देवगुड़ी की कुलदेवी पर अटूट विश्वास रखने वाले गोंड जनजाति बहुल चिड़पाल गांव में आदिवासी संस्कार और सामूहिक परंपराएं अब चर्च की घंटियों से टकराने लगी हैं।

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