Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जानिए क्या होता है Human Development Index

    By Surbhi JainEdited By:
    Updated: Mon, 30 Apr 2018 09:58 AM (IST)

    भारत विश्व की सर्वाधिक विकास दर वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था है

    जानिए क्या होता है Human Development Index

    नई दिल्ली (हरिकिशन शर्मा)। किसी देश की प्रगति का पैमाना क्या है? क्या अकेले सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि को ही विकास का पैमाना मान लिया जाए? क्या विकास दर ऊंची होने भर से ही आम लोगों का भला हो जाएगा? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो नीति नियंताओं और शिक्षाविदों को झकझोरते रहे हैं। किसी देश की आर्थिक विकास दर उच्च हो सकती है, लेकिन वह मानव विकास के पैमाने पर पिछड़ सकता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    उदाहरण के लिए भारत विश्व की सर्वाधिक विकास दर वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था है। लेकिन मानव विकास सूचकांक पर इसका स्थान दर्जनों देशों से पीछे है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) नियमित तौर पर अलग-अलग देशों की प्रगति दर्शाने के लिए ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट जारी करता है। इस रिपोर्ट में ‘मानव विकास सूचकांक’ (एचडीआइ) के आधार पर देशों की रैंकिंग होती है। यूएनडीपी की ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट-2016 के अनुसार दुनियाभर में ‘मानव विकास सूचकांक’ पर 188 देशों की सूची में भारत 131वें स्थान पर है।

    दरअसल ‘मानव विकास सूचकांक’ हमें यह बताता है कि किसी देश में स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों तक लोगों की पहुंच कितनी है और उनका जीवन स्तर कैसा है। पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब अल हक ने ‘मानव विकास सूचकांक’ ईजाद किया था। यह इंडेक्स नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री डॉ. अमर्त्य सेन की मानवीय क्षमता की अवधारणा पर आधारित है। सेन जानना चाहते थे कि लोग अपने जीवन में बुनियादी चीजों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और समुचित जीवन स्तर पाने में सक्षम हैं या नहीं। मानव विकास सूचकांक भी इन्हीं बिन्दुओं पर आधारित है।

    एचडीआइ के तीन आयाम

    यूएनडीपी तीन आयामों - ‘स्वस्थ और दीर्घायु’, ‘ज्ञान’ और ‘जीवन का उचित स्तर’ को लेकर ‘मानव विकास सूचकांक’ तैयार करता है। इन आयामों के आधार पर किसी समाज और देश में मानव विकास के स्तर का आकलन किया जाता है। इन तीनों आयामों पर प्रगति दर्शाने वाले अलग-अलग सूचक होते हैं। ये सूचक हैं- ‘जन्म के समय जीवन प्रत्याशा’, संभावित स्कूली शिक्षा या मीन ईयर्स ऑफ स्कूलिंग और पीपीपी आधार पर प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय। स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रगति का आकलन जन्म के समय जीवन प्रत्याशा से लगाया जाता है। इसका मतलब यह है कि किसी बच्चे के पैदा होने के बाद उसके कितने वर्ष जीने की संभावना है।

    उदाहरण के लिए भारत की जीवन-प्रत्याशा लगभग 68 वर्ष है। इसका मतलब यह है कि भारत में जो बच्चा जन्म लेगा उसके लगभग 68 वर्ष जीने के आसार हैं। वहीं, शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति का आकलन करने के लिए दो पैमाने इस्तेमाल किए जाते हैं। पहला यह है कि 25 साल से अधिक उम्र के वयस्कों ने औसतन कितने साल की स्कूली शिक्षा ली। दूसरा यह है कि जो बच्चे स्कूल में दाखिल होने की उम्र के हैं, उनके कितने साल स्कूली शिक्षा में रहने की आशा है।

    वहीं जीवन स्तर मापने के लिए प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय देखी जाती है। किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद और उस देश के निवासियों द्वारा विदेश में अर्जित की गयी आय को सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआइ) कहते हैं। हालांकि घरेलू अर्थव्यवस्था में अनिवासियों यानी विदेशी निवासियों ने जो आय अर्जित की है उसे घटा दिया जाता है। जीएनआइ का आकलन पीपीपी यानी परचेजिंग पावर पैरिटी के आधार पर किया जाता है ताकि देशों की तुलना की जा सके। जब दो देशों की जीडीपी की तुलना की जाती है तो पीपीपी का सहारा लिया जाता है। पीपीपी एक प्रकार की विनिमय दर है जिस पर एक समान वस्तु और सेवाओं की खरीद के लिए एक देश की मुद्रा को दूसरे देश की मुद्रा में बदला जाता है।

    उदाहरण के लिए मैक्डोनाल्ड के बर्गर की कीमत। अगर लंदन में बर्गर की कीमत दो पौंड है और न्यूयार्क में चार डॉलर तो एक पौंड की पीपीपी विनिमय दर दो डॉलर के बराबर होगी। दोनों मुद्राओं की यह विनिमय दर वित्तीय बाजार में प्रचलित एक्सचेंज रेट से भिन्न हो सकती है।

    इस तरह इन तीनों आयामों का अलग-अलग इंडेक्स बनाकर एक कंपोजिट इंडेक्स बनाया जाता है जो मानव विकास सूचकांक (एचडीआइ) कहलाता है। इस तरह किसी भी देश का प्रति व्यक्ति जीडीपी जब अधिक होता है, जीवन प्रत्याशा अधिक होती है, शिक्षा का स्तर उच्च होता है तो मानव विकास सूचकांक पर उसका स्थान उच्च होता है। मानव विकास सूचकांक विकास के सिर्फ एक पक्ष को ही दर्शाता है। इससे हमें यह पता नहीं चलता कि समाज में गरीबी कितनी है, असमानताएं कितनी हैं, महिला सशक्तिकरण की क्या स्थिति है। यही वजह है कि मानव विकास को समग्रता में देखते हुए यूएनडीपी ‘इन्इक्वलिटी-एडजस्टेड ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स’, ‘जेंडर डेवलपमेंट इंडेक्स’, ‘जेंडर इन्इक्वलिटी इंडेक्स’ और मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स‘ भी जारी करता है।