100000 करोड़ की Liquidity, बैंकों के लिए संकट मोचक क्यों बना RBI, गवर्नर साहब ने समझाया
रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा है कि आरबीआई एक लाख करोड़ रुपये के सरकारी बांड खरीदेगा। बांड खरीद के अलावा रिजर्व बैंक 16 दिसंबर को डॉलर/र ...और पढ़ें

नई दिल्ली। बैंकों के पास नकदी का संकट (Cash Crunch in Banks) न हो, इसलिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने कुछ कदमों की घोषणा की है। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि महीने के मध्य में टैक्स भुगतान होना है। ऐसे मौकों पर अक्सर बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी यानी नकदी की कमी हो जाती है।
क्या करेगा RBI
रिजर्व बैंक एक लाख करोड़ रुपये के सरकारी बांड खरीदेगा। यह खरीद दो बार में होगी। वह 50,000 करोड़ के बांड 11 दिसंबर को और बाकी 50,000 करोड़ के बांड 18 दिसंबर को खरीदेगा। इसे ओपन मार्केट ऑपरेशन (OMO) कहा जाता है। आसान शब्दों में कहें तो बैंकों ने पहले जो सरकारी बांड खरीद रखे हैं, आरबीआई उन्हें खरीदकर बैंकों को पैसे देगा।
बांड खरीद के अलावा रिजर्व बैंक 16 दिसंबर को डॉलर/रुपया करेंसी स्वैप करेगा। कुल 5 अरब डॉलर का यह करेंसी स्वैप तीन साल की अवधि का होगा। इससे भी बैंकिंग सिस्टम में रुपया यानी नकदी आएगी।
आरबीआई ऐसा क्यों करने जा रहा है?
कंपनियां 15 दिसंबर के आसपास एडवांस टैक्स जमा करती हैं। ऐसे मौकों पर बैंकिंग सिस्टम में आम तौर पर नकदी की कमी हो जाती है। सिस्टम में अतिरिक्त नकदी डालकर आरबीआई यह सुनिश्चित करना चाहता है कि बैंकों के पास पर्याप्त फंड रहे, ब्याज दर स्थिर बने रहें, फंड की कमी के कारण ब्याज दरों में अचानक तेज वृद्धि न हो तथा बिजनेस गतिविधियां सुचारू रूप से चलती रहें।
इससे पहले RBI ने ऐसा कब किया था?
आखिरी बार मई 2025 में किया था। इस साल जनवरी से मई के बीच आरबीआई ने 4.84 लाख करोड़ रुपये के बांड खरीदे थे। इसके अलावा दो बार में 10 अरब डॉलर का करेंसी स्वैप भी किया था।
RBI गवर्नर ने क्या कहा
केंद्रीय बैंक के प्रमुख संजय मल्होत्रा ने कहा, आरबीआई का काम सिस्टम में ‘भरोसेमंद लिक्विडिटी’ का पर्याप्त स्तर बनाए रखना है। हम (डॉलर की तुलना में) रुपये का कोई स्तर या बैंड नहीं तय करते हैं। हम बाजार को रुपये की कीमत तय करने देते हैं। हमारा मानना है कि खास कर लांग टर्म में बाजार बहुत सक्षम स्थिति में है, इसमें काफी गहराई है। उन्होंने कहा कि करेंसी बाजार में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। आरबीआई का प्रयास हमेशा किसी असाधारण या अत्यधिक उतार-चढ़ाव को रोकना होता है। हम यह काम आगे भी करते रहेंगे। यह पूछने पर कि क्या डॉलर-रुपया स्वैप का कदम रुपये में गिरावट को रोकने के लिए उठाया जा रहा है, मल्होत्रा ने कहा कि यह तरलता दूर करने का उपाय है, रुपये को समर्थन देने का नहीं।
मौजूदा स्थिति क्या है
हाल के महीनों में बैंकों के पास अतिरिक्त नकदी की स्थिति रही है, लेकिन इसमें घट-बढ़ हो रही है। अगस्त 2025 में यह औसतन 2.9 लाख करोड़ रुपये प्रतिदिन थी। लेकिन सितंबर में यह घटकर 1.6 लाख करोड़ और अक्टूबर में 0.9 लाख करोड़ रुपये रह गई। नवंबर में फिर इसमें वृद्धि हुई और 1.9 लाख करोड़ रुपये हो गई। दिसंबर में पहले तीन दिन का औसत 2.6 लाख करोड़ रुपये रहा है।
एचडीएफसी बैंक की प्रधान अर्थशास्त्री साक्षी गुप्ता ने एचडीएफसी बैंक के पॉलिसी रिव्यू में बताया है कि साल के पहले छह महीनों में लिक्विडिटी में काफी सुधार हुआ। RBI ने OMO खरीद के जरिए लगभग 5.2 लाख करोड़ रुपये की लिक्विडिटी डाली। सीआरआर को 4% से घटाकर 3% करने से भी सितंबर और नवंबर के बीच 2.5 लाख करोड़ रुपये की लिक्विडिटी जुड़ने का अनुमान है। हालांकि, RBI की तरफ से लगातार डॉलर बेचने और रुपये की लिक्विडिटी को एब्जॉर्ब करने से इन उपायों का ज्यादतर असर खत्म हो गया।
सितंबर के मध्य से से लिक्विडिटी में कमी आई है। यह 16 सितंबर और 3 दिसंबर के बीच औसतन 1.2 लाख करोड़ डॉलर रही, जबकि अप्रैल 2025 और 15 सितंबर 2025 के बीच यह 2.4 लाख करोड़ डॉलर थी। अगर RBI की तरफ से फॉरेक्स इंटरवेंशन नहीं होता, तो नवंबर के आखिर तक लिक्विडिटी 3.8-4.5 लाख करोड़ डॉलर की रेंज में हो सकती थी।
क्या है विशेषज्ञों की राय
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इन उपायों से ग्रोथ में मदद मिलेगी, ब्याज दरों में तेजी से वृद्धि नहीं होगी और बांड बाजार में भी स्थिरता आएगी। साक्षी गुप्ता का मानना है कि ओएमओ और डॉलर/स्वैप के जरिए सिस्टम में तरलता डालने से रेट कट का ज्यादा फायदा मिलेगा। बांड मार्केट पर दबाव में भी कमी आएगी।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने इस वर्ष इक्विटी मार्केट से काफी पैसे निकाले हैं। साक्षी के अनुसार अगर अगर कैपिटल आउटफ्लो जारी रहता है और अमेरिका के साथ ट्रेड डील नहीं होती है, आरबीआई ओएमओ के जरिए सिस्टम में और लिक्विडिटी डाल सकता है।
कुछ विशेषज्ञ जल्दी ही रेपो रेट में एक और छोटी कटौती की उम्मीद कर रहे हैं क्योंकि इकोनामी गोल्डीलॉक जोन में है। जब महंगाई कम और विकास दर ज्यादा हो तो उसे गोल्डीलॉक कहते हैं।
रुपया और विदेशी मुद्रा की स्थिति
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार इस समय 686 अरब डॉलर का है। यह 11 महीने से अधिक के आयात के लिए पर्याप्त है। आरबीआई का कहना है कि वह बाजार फैक्टर के आधार पर रुपये में उतार-चढ़ाव की अनुमति देगा। वह तभी हस्तक्षेप करेगा जब बाजार में सट्टेबाजी की स्थिति होगी।
बाजार की प्रतिक्रिया
रिजर्व बैंक की घोषणा के बाद रुपये में थोड़ी गिरावट देखने को मिली। एक डॉलर 90 रुपये के पार चला गया। हालांकि ब्याज दरों में कटौती और फॉरेक्स स्वैप के कारण फॉरवर्ड प्रीमियम में कमी आई है। कंपनियां अपने आयात-निर्यात की हेजिंग के लिए फॉरवर्ड प्रीमियम का इस्तेमाल करती हैं।
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प्रीमियम से ही तय होता है कि किसी आयतक के लिए हेजिंग करना सस्ता पड़ेगा या महंगा। निर्यातक इससे यह देखते हैं कि भविष्य में डॉलर से होने वाली आय को कब लॉक किया जाए। ट्रेडर प्रीमियम पर इसलिए नजर रखते हैं क्योंकि इससे उन्हें पता चलता है कि रुपये को होल्ड करना उनके लिए मुनाफा देगा या नहीं।

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