इस IPO में गड़बड़ी है! प्रमोटर पर केस और गिरवी रखे शेयरों की बिक्री, लगे गंभीर आरोप, क्या आपने लगाया है पैसा?
प्रॉक्सी एडवाइजरी फर्म इनगवर्न ने वी वर्क इंडिया के आईपीओ को लेकर चिंता जताई है। सबसे बड़ी चिंता आईपीओ से पहले प्रमोटरों द्वारा गिरवी रखे गए शेयरों को अस्थायी रूप से जारी करने की है। दरअसल बुक बिल्डिंग के दौरान नॉन-एंकर इन्वेस्टर्स का सब्सक्रिप्शन कमजोर रहा जो कॉरपोरेट गवर्नेंस संबंधी जोखिमों को लेकर निवेशकों की बेचैनी को दर्शाता है।

नई दिल्ली। वी वर्क इंडिया के आईपीओ (Wework India IPO) की सब्सक्रिप्शन की आज आखिरी तारीख है। इस बीच एक प्रॉक्सी एडवाइजरी फर्म इनगवर्न (InGovern) ने इस कंपनी के आईपीओ को लेकर चिंता जताई है। मनीकंट्रोल की रिपोर्ट के अनुसार, इनगवर्न के फाउंडर श्रीराम सुब्रमण्यन ने बताया कि आईपीओ का ढाँचा- बिना किसी नई पूंजी निवेश के फुल ऑफर फॉर सेल (OFS) और इसकी लिस्टिंग से पहले की शर्तें, प्रमोटर की मंशा, वित्तीय स्थिरता और निगरानी पर सवाल उठाती हैं।
3,000 करोड़ रुपये के 'वी वर्क इंडिया' के आईपीओ का प्राइस बैंड 615-648 रुपये है और बिक्री के लिए 4.63 करोड़ शेयर हैं, जिनमें से लगभग 45 प्रतिशत एंकर निवेशकों को आवंटित किए गए हैं। यह पब्लिक इश्यू 3 अक्तूबर को खुला था और 7 अक्तूबर को बंद होने जा रहा है। बुक बिल्डिंग के दौरान नॉन-एंकर इन्वेस्टर्स का सब्सक्रिप्शन कमजोर रहा, जो कॉरपोरेट गवर्नेंस संबंधी जोखिमों को लेकर निवेशकों की बेचैनी को दर्शाता है।
गिरवी रखे शेयरों को लेकर चिंता
सबसे बड़ी चिंता आईपीओ से पहले प्रमोटरों द्वारा गिरवी रखे गए शेयरों को अस्थायी रूप से जारी करने की है। एम्बेसी बिल्डकॉन के पास वीवर्क इंडिया आईपीओ के शेयरों में से 53 प्रतिशत से ज़्यादा शेयर पहले लगभग 2,065 करोड़ रुपये की उधारी के बदले गिरवी रखे गए थे। सुब्रमण्यन ने कहा, "इन गिरवी शेयरों को मुख्य रूप से आईपीओ को सुगम बनाने के लिए रद्द किया गया था।
उनके समझौते के तहत, अगर लिस्टिंग नहीं होती, तो 45 दिनों के भीतर शेयरों को फिर से गिरवी रखना पड़ता। ऐसे बहुत कम उदाहरण हैं जब प्रमोटरों ने सिर्फ़ बिक्री के प्रस्ताव को संभव बनाने के लिए अस्थायी रूप से गिरवी शेयरों को रद्द किया हो।"
इनगवर्न के नोट में आगे कहा गया है कि इस तरह की अस्थायी रिलीज़ से लिस्टिंग से पहले प्रमोटर की होल्डिंग्स पर कोई भार नहीं दिखता। सुब्रमण्यन ने आगे कहा कि अगर बाद में फिर से गिरवी रखी जाती है या कर्ज चुकाने में देरी होती है, तो नियंत्रण जोखिम फिर से उभर सकता है।
चूंकि यह इश्यू पूरी तरह से एक ओएफएस था, इसलिए आय पूरी तरह से विक्रय शेयरधारकों - मुख्य रूप से एम्बेसी बिल्डकॉन एलएलपी और वीवर्क इंटरनेशनल को फ्लो हुई, न कि वीवर्क इंडिया को।
प्रमोटर पर दायर हैं मुकदमे
प्रमोटरों के मुकदमे से जोखिम बढ़ गया है। वीवर्क इंडिया के प्रमोटरों के खिलाफ सीबीआई, ईडी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कई प्रवर्तन कार्यवाही लंबित हैं। इसके अलावा, श्रीराम सुब्रमण्यन ने कंपनी की ब्रांड निर्भरता पर भी चिंता जताई है। क्योंकि, वीवर्क ग्लोबल से वीवर्क इंडिया का 99 साल का लाइसेंस प्रमोटर के नियंत्रण और अनुपालन पर निर्भर करता है। प्रमोटर की कोई भी सज़ा या बदलाव ब्रांड के अधिकारों को ख़तरे में डाल सकता है।
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