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    शेयर बाजार में 31 दिसंबर से होने जा रहा है ये बदलाव, लगाया है पैसा तो समझें इसका क्या असर होगा

    Updated: Tue, 30 Dec 2025 01:36 PM (IST)

    शेयर मार्केट में 31 दिसंबर से F&O कॉन्ट्रेक्ट के लॉट साइज बदल जाएंगे। एक्सचेंज के सर्कुलर के अनुसार, Nifty50, निफ्टी बैंक, निफ्टी फाइनेंशियल सर्विसेज़ ...और पढ़ें

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    नई दिल्ली। शेयर बाजार में 31 दिसंबर से अहम बदलाव होने जा रहा है, और यह बदलाव फ्यूचर एंड ऑप्शन ट्रेडिंग से संबंधित है। दरअसल, 31 दिसंबर, बुधवार से F&O कॉन्ट्रेक्ट के लॉट साइज बदल जाएंगे। अक्टूबर में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) ने कई बड़े इंडेक्स डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट्स के मार्केट लॉट साइज़ में बदलाव का ऐलान किया था, और ये बदलाव दिसंबर 2025 की एक्सपायरी साइकिल के बाद लागू होने जा रहे हैं।

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    एक्सचेंज के सर्कुलर के अनुसार, निफ्टी 50, निफ्टी बैंक, निफ्टी फाइनेंशियल सर्विसेज़ और निफ्टी मिडकैप सेलेक्ट के लॉट साइज़ कम किए जाएंगे। निफ्टी 50 का लॉट साइज़ 75 से घटाकर 65, निफ्टी बैंक का 35 से 30, निफ्टी फाइनेंशियल सर्विसेज़ का 65 से 60 और निफ्टी मिडकैप सेलेक्ट का 140 से 120 किया जाएगा। NSE ने यह भी साफ किया कि निफ्टी नेक्स्ट 50 का लॉट साइज़ पहले जैसा ही रहेगा।

    बदल जाएंगे वीकली और मंथली कॉन्ट्रेक्ट

    एक्सचेंज ने बताया कि 30 दिसंबर, 2025 को एक्सपायरी तक सभी वीकली और मंथली कॉन्ट्रैक्ट पर मौजूदा लॉट साइज़ लागू रहेंगे। अगले साइकिल से, यानी जनवरी 2026 के वीकली और मंथली कॉन्ट्रैक्ट में बदले हुए मार्केट लॉट दिखेंगे।

    वीकली कॉन्ट्रैक्ट के लिए, मौजूदा लॉट साइज़ के साथ आखिरी एक्सपायरी 23 दिसंबर, 2025 को होगी, जिसके बाद 6 जनवरी, 2026 को बदले हुए लॉट साइज़ के साथ पहली एक्सपायरी होगी। इसी तरह, मंथली कॉन्ट्रैक्ट 30 दिसंबर, 2025 की एक्सपायरी के बाद बदले हुए स्ट्रक्चर में बदल जाएंगे, जिसमें 27 जनवरी, 2026 की एक्सपायरी में अपडेटेड लॉट साइज़ होंगे।

    NSE ने यह भी बताया कि तिमाही और छमाही कॉन्ट्रैक्ट 30 दिसंबर, 2025 को दिन के आखिर में नए लॉट साइज़ में बदल जाएंगे। मार्च 2026 का कॉन्ट्रैक्ट, जिसे शुरू में तिमाही एक्सपायरी के तौर पर पेश किया गया था, अब दिसंबर 2025 की मासिक एक्सपायरी के बाद से फार-मंथ कॉन्ट्रैक्ट माना जाएगा।

    ट्रेडर्स को क्या करने की जरूरत?

    फ्यूचर एंड ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट मे बदलाव के अनुसार, ट्रेडर्स को पोजीशन साइज़ और मार्जिन की ज़रूरतों को एडजस्ट करना होगा, जबकि रिटेल इन्वेस्टर्स को कॉन्ट्रैक्ट ज़्यादा आसान लग सकते हैं क्योंकि उन्हें कम कैपिटल की ज़रूरत होगी।

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    बता दें कि NSE मुख्य रूप से कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू को एक स्टैंडर्ड रेंज में रखने, कॉन्ट्रैक्ट को किफायती और स्टैंडर्ड बनाने के लिए फ्यूचर्स और ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट के लॉट साइज़ को रिवाइज करता है।

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