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    रिटायरमेंट के बाद न हों पैसे के मोहताज, आज ही कर लें ये जरूरी उपाय

    अगर आप अपने रिटायरमेंट को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो आपको अपना कुछ पैसा इक्विटी में निवेश करना होगा। हालांकि दूसरी कई चीजों की तरह पर्सनल फाइनेंस की सफलता सिर्फ नंबरों को समझ कर ही नहीं मिल जाती। इसमें निवेशक का मनोविज्ञान ज्यादा अहमियत रखता है।

    By Siddharth PriyadarshiEdited By: Siddharth PriyadarshiUpdated: Sun, 08 Jan 2023 03:59 PM (IST)
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    What are the Necessary Steps for Retirement Financial Planning

    नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। अगर बचत और निवेश में कोई समस्या है तो वो रिटायरमेंट है, सिवाए उन चंद लोगों के जिनके पास काफी संपत्ति है या आमदनी का कोई सुरक्षित जरिया है। रिटायरमेंट के बाद अब जीवन लंबा होता है। 20 या 25 वर्ष तो आम बात है। अच्छी सेहत ज्यादा देर तक साथ नहीं देती और बाद के वर्षों में मेडिकल खर्च बढ़ते जाते हैं। ऐसे बुजुर्गों को हम जानते ही हैं जो रोजमर्रा का खर्च चलाने के लिए संघर्ष करते हैं। पैसे काफी न हों तो जिंदगी बोझ बन जाती है।

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    अक्सर देखा जाता है कि रिटायर होने वाले कई लोग शुरुआत में ज्यादा खर्च कर देते हैं। आमतौर पर वेतन पाने वाले किसी शख्स को रिटायर होने पर करीब 30 या 40 लाख रुपये मिलते हैं। देखने में ये रकम बड़ी लगती है। ऐसे में अक्सर लोगों को लगता है कि वो खुल कर खर्च कर सकते हैं। एक आसान सा गुणा-भाग बताता है कि 50 लाख रुपये में से हर महीने 25 हजार रुपये निकालें तो ये रकम कम-से-कम 15 साल चलेगी। इससे भी बड़ी बात है कि रिटायर होने वाले महसूस करते हैं कि क्योंकि पैसा फिक्स डिपाजिट या किसी सरकारी स्कीम में रखा है, तो पैसे कुछ बढ़ेंगे भी। बदकिस्मती से, इसे अटकल ही कहा जाएगा और सच्चाई से इसका लेना-देना कम है।

    ऐसे करें रिटायरमेंट की प्लानिंग

    बुनियादी तौर पर, इस समस्या की वजह वो गहरा विश्वास है जिसमें माना जाता है कि रिटायरमेंट बचत 100 प्रतिशत 'सुरक्षित' एसेट क्लास में ही जमा करनी चाहिए। ये एक भ्रम है। उनके लिए भी जिनकी बचत अच्छी-खासी है, क्योंकि रिटायरमेंट प्लानिंग में असल मुश्किल है महंगाई की भरपाई। अगर महंगाई साल में दो या तीन प्रतिशत के निचले स्तर पर ही रहे, तब तो पहले लिखे आंकड़े काम करते हैं। पर, सच तो ये है कि रुपये की गिरती हुई क्षमता, हमारी बचत पर भारी पड़ती है।

    सालाना 6 प्रतिशत की महंगाई दर पर रिटायरमेंट के 25वें साल में कीमतें करीब चार गुना बढ़ जाएंगी और तब बढ़ी हुई आमदनी की जरूरत होगी। यही महंगाई दर अगर 2 प्रतिशत रहती है, तो दाम महज 1.6 गुना ही बढ़ेंगे। ये काफी बड़ा फर्क है।

    आसान नहीं है समस्या को सुलझाना

    इसमें अहम ये है कि इस मानसिक कम्पाउंडिंग और डीकम्पाउंडिंग का ज्ञान, खुद-ब-खुद समझ में आने वाली चीज नहीं है। अगर आपको महीने भर के खर्च के लिए आज 50 हजार रुपये की जरूरत है तो 10-12 साल बाद यही जरूरत करीब एक लाख रुपये की होगी और 20 साल बाद आप 1.5 लाख रुपये महीने से कम होने पर घर चलाने में संघर्ष करेंगे। न सिर्फ आपके पैसों का खाते से निकलना तेज हो जाएगा, बल्कि ज्यादा पैसों की जरूरत के लिए बाकी पूंजी को भी बढ़ाने की जरूरत होगी। ये एक समस्या है और इसे सुलझाना आसान नहीं।

    गुरबत की काली छाया

    मेरे पास एक आसान-सा नियम है जो बताएगा कि बुढ़ापे में गरीबी के डर के बिना, खर्च के लिए कितने पैसे निकाले जा सकते हैं? पैसे निकालने की दर, महंगाई दर से ऊपर रखने के लिए आपको पैसे तभी निकालने होंगे जब आपकी बचत महंगाई दर से ज्यादा कमाकर दे रही हो। इसे ध्यान से समझें। अगर आपकी बचत आठ प्रतिशत की दर से कमाई कर रही है और महंगाई दर 6 प्रतिशत है, तो आपको हर साल केवल 2 प्रतिशत पैसे ही निकालने चाहिए। इससे कम-से-कम आपकी बचत महंगाई के साथ बढ़ेगी और ये पक्का हो जाएगा कि आपका बुढ़ापा गुरबत की काली छाया में नहीं बीतेगा।

    ऊपर बताए तथ्य समझने में आसान होंगे, मगर डर को हरा पाना और सुरक्षा पाने की सहज प्रवृत्ति से उबर पाना हमेशा ही मुश्किल होता है। मैं उन्हें दोष नहीं देता जिनके लिए ऐसा करना मुश्किल है, पर हां, इससे बाहर निकलने का कोई दूसरा उपाय भी नहीं है।

    (लेखक वैल्यू रिसर्च आनलाइन डाट काम के सीईओ हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

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