MP में 5% तो महाराष्ट्र में 18% तक घटी सोयाबीन की बुवाई; मक्का-धान, हल्दी-कपास पर शिफ्ट हो रहे किसान, पर क्यों?
किसान अब सोयाबीन छोड़कर दूसरी फसलों (crop shift) की ओर रुख कर रहे हैं। मध्य प्रदेश में किसान मक्का और धान की खेती की तरफ बढ़ (farmer preferences) रहे हैं तो महाराष्ट्र में हल्दी और कपास की खेती जोर पकड़ रही है। इस बदलाव की वजह बाजार में सोयाबीन की कीमतों में उतार-चढ़ाव मौसम की अनिश्चितता और दूसरी फसलों से बेहतर मुनाफे की उम्मीद बताई जा रही है।
नई दिल्ली | मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में इस साल सोयाबीन की बुवाई में भारी कमी देखने को मिल रही है। मध्य प्रदेश में 5% और महाराष्ट्र में 18% तक सोयाबीन की बुवाई घटी है। किसान अब सोयाबीन छोड़कर दूसरी फसलों की ओर रुख (crop shift) कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश में किसान मक्का और धान की खेती की तरफ (agricultural patterns) बढ़ रहे हैं, तो महाराष्ट्र में हल्दी और कपास की खेती जोर पकड़ रही है। इस बदलाव की वजह बाजार में सोयाबीन की कीमतों में उतार-चढ़ाव, मौसम की अनिश्चितता और दूसरी फसलों से बेहतर मुनाफे की उम्मीद बताई जा रही है।
यह शिफ्ट खेती के पैटर्न में बड़े बदलाव का संकेत दे रहा है, जो दोनों राज्यों की अर्थव्यवस्था और किसानों की आजीविका पर असर डाल सकता है। इस बात की जानकारी NCDEX की जुलाई 2025 की रिपोर्ट में सामने आई है।
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क्यों हो रहा है ये बदलाव?
इस बदलाव के तीन मुख्य कारण हैं। बाजार का असर, मौसम की मार, मांग और सप्लाई।
- बाजार का असर- पिछले सालों में सोयाबीन की कीमतें उम्मीद के मुताबिक नहीं रहीं। दूसरी तरफ मक्का, कपास और हल्दी जैसी फसलों के दाम बेहतर रहे और कमाई का भरोसा दिला रहे हैं।
- मौसम की मार- सोयाबीन बारिश पर ज्यादा निर्भर है। अनियमित मानसून और पानी की कमी से किसानों को बार-बार नुकसान हुआ।
- मांग और सप्लाई- हल्दी और मक्का की इंडस्ट्री में लगातार मांग है। हल्दी दवा, मसाले और कॉस्मेटिक तक में इस्तेमाल होती है। वहीं, मक्का का इस्तेमाल इंसानी खाने से लेकर पशु चारे और इंडस्ट्री तक में होता है।
क्या हो सकता है नुकसान?
तेल उत्पादन पर असर पड़ेगा, क्योंकि सोयाबीन देश की बड़ी ऑयलसीड फसल है। इससे तेल आयात पर निर्भरता और बढ़ सकती है। साथ ही तेल महंगा भी हो सकता है। जिसका सीधा असर आपकी जेब पर पड़ सकता है। इसके अलावा, सोयामील, जो पशु चारे का अहम हिस्सा है, उसकी सप्लाई भी घट सकती है।
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क्या-क्या हो सकते हैं फायदे?
किसान को ज्यादा डाइवर्सिफिकेशन और स्थिर कमाई के मौके मिलेंगे। हल्दी और कपास जैसी फसलें किसानों को कैश क्रॉप का फायदा देंगी। मक्का और धान जैसी फसलें बारिश की स्थिति में भी ज्यादा टिकाऊ साबित हो सकती हैं।
रिपोर्ट में बताया गया कि अगर ये रुझान जारी रहा तो आने वाले सालों में भारत का फसल पैटर्न बदल सकता है। सोयाबीन का दबदबा घटेगा और हल्दी, मक्का, कपास जैसी फसलों की हिस्सेदारी बढ़ेगी। इससे मार्केट और सप्लाई चेन पर बड़ा असर होगा।
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