New GST Rates: 'टैक्स घटने से खपत बढ़ेगी और बीमारी भी', बीड़ी-फ्रूट ड्रिंक पर GST घटने से हेल्थ इकोनॉमिस्ट जता रहे चिंता
GST Council Meeting में बीड़ी और फ्रूट ड्रिंक्स पर जीएसटी घटा दिया गया है। बीड़ी पर जीएसटी 28% से 18% और फ्रूट ड्रिंक्स पर 5% हो गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार का यह फैसला गलत है। बीड़ी और फ्रूट ड्रिंक्स पर जीएसटी घटाना क्यों चिंता का विषय है बता रहे हैं WHO के पूर्व सलाहकार और प्रोफेसर डॉ. रिजो जॉन।

नई दिल्ली| 3 सितंबर को जीएसटी काउंसिल की 56वीं बैठक हुई। जिसमें सरकार ने आम आदमी को बड़ी राहत दी। कुछ टैक्स घटा दिए गए तो कुछ जीरो हो गए। लेकिन इस बीच ध्यान खींचा बीड़ी ने, जिस पर सरकार ने जीएसटी 28% से घटाकर 18% (GST on Tobacco Products) कर दिया।
साथ ही तेंदू पत्ता पर भी जीएसटी 5% कर दिया गया। इसके अलावा फ्रूट डिंक्स पर भी जीएसटी (GST on Fruit Drinks) घटाकर 5% कर दिया गया है। और इसे लेकर हेल्थ इकोनॉमिस्ट्स ने चिंता जाहिर की है। बीड़ी और फ्रूट ड्रिंक्स पर जीएसटी घटाना क्यों चिंता का विषय है, बता रहे हैं WHO के पूर्व सलाहकार और प्रोफेसर डॉ. रिजो जॉन...
जीएसटी काउंसिल की कुछ सिफारिशें, खासकर तंबाकू और फ्रूट ड्रिंक्स पर निराश करने वाली हैं। अगर इन्हें लागू किया गया, तो यह भारत के लिए दो बड़ी स्वास्थ्य चुनौतियों को और मुश्किल बना देगा। पहली- तंबाकू से जुड़ी बीमारियां और दूसरी ज्यादा चीनी वाली डाइट से जुड़ी नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज़ यानी NCDs।
सबसे गंभीर प्रस्ताव है बीड़ी पर जीएसटी को 28% से घटाकर 18% करना। काउंसिल मीटिंग में बीड़ी बनाने वाली तेंदू पत्ता पर भी जीएसटी 18% से घटाकर सिर्फ 5% करने की बात कही गई है। यह सिर्फ टैक्स कम करना नहीं है, बल्कि तंबाकू नियंत्रण में वर्षों की मेहनत को पीछे धकेलना है। भारत में बीड़ी दूसरा सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला तंबाकू उत्पाद है।
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बीड़ी का गहरा कश पहुंचाता है नुकसान
2017 में करीब 7.2 करोड़ भारतीय वयस्क बीड़ी पीते थे। बीड़ी दिखने में सस्ती लगती है, लेकिन इसका नुकसान ज्यादा है। यह ठीक से नहीं जलती, इसलिए लोग ज्यादा गहरा कश लगाते हैं। इससे निकोटिन और जहरीली गैसें शरीर में ज्यादा जाती हैं। रिसर्च बताती है कि बीड़ी पीने से मुंह, फेफड़े और गले का कैंसर, सांस की बीमारी और टीबी जैसी गंभीर दिक्कतें होती हैं।
अर्थव्यवस्था पर 80,500 करोड़ रु. का बोझ
2017 में सिर्फ 30-69 साल की उम्र के लोगों पर बीड़ी पीने का आर्थिक बोझ 805.5 अरब रुपए (80,500 करोड़ रुपए) था। यह भारत की जीडीपी का लगभग 0.5% है। फिर भी बीड़ी की कीमत में टैक्स का हिस्सा सिर्फ 22% है, जबकि सिगरेट पर 52% और बिना धुएं वाले तंबाकू पर 64% है। ऐसे में टैक्स और घटाना गरीब तबके को और नुकसान पहुंचाएगा, क्योंकि वही इसे ज्यादा पीते हैं।
बीमारियां बढ़ेंगी तो खर्च भी बढ़ेगा
टैक्स घटेगा तो खपत बढ़ेगी, बीमारियां भी बढ़ेंगी और परिवार इलाज पर ज्यादा खर्च करेंगे। भारत WHO फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल (FCTC) का हिस्सा है। हमें सभी तंबाकू उत्पादों पर समान और ऊंचा टैक्स लगाना चाहिए। बीड़ी पर टैक्स घटाना इस वादे के खिलाफ है।
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फलों के जूस पर GST घटाना गलत
काउंसिल ने कार्बोनेटेड ड्रिंक्स पर जीएसटी 40% करने की सिफारिश की है। यह सही कदम है। लेकिन फलों के जूस पर जीएसटी 12% से घटाकर 5% करना गलत दिशा है। जूस, चाहे शुगर-फ्री कहलाए या नैचुरल, अक्सर ज्यादा शुगर वाला होता है।
यह मोटापा, डायबिटीज और हार्ट डिजीज का बड़ा कारण है। WHO भी कहता है कि हर सोर्स से चीनी कम करनी चाहिए। लेकिन टैक्स घटाने से लोग कोल्ड ड्रिंक छोड़कर जूस की ओर शिफ्ट होंगे। यानी एक हानिकारक चीज की जगह दूसरी हानिकारक चीज।
एकसमान पब्लिक हेल्थ टैक्स जरूरी
भारत को साफ और एकसमान टैक्स पॉलिसी चाहिए। तंबाकू हर साल 10 लाख से ज्यादा भारतीयों की जान लेता है। वहीं चीनी और खराब खानपान मोटापा और डायबिटीज फैला रहे हैं। ये सिर्फ सेहत का नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था का भी संकट है। जरूरी है कि बीड़ी, सिगरेट और बिना धुएं वाले तंबाकू पर जीएसटी 40% किया जाए। साथ ही कार्बोनेटेड और नॉन-कार्बोनेटेड मीठे पेयों पर टैक्स उनकी शुगर मात्रा के आधार पर लगे।
जीएसटी काउंसिल के ताजा फैसले सिर्फ टैक्स पॉलिसी नहीं, बल्कि जनस्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा हैं। बीड़ी और जूस पर टैक्स घटाना गलत संदेश देगा कि छोटी अवधि का फायदा, लंबे समय की सेहत से ज्यादा अहम है। भारत को तुरंत इस पर फिर से विचार करना होगा।
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