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    शर्मनाक! पैसों के लिए PoK में नेशनल एनिमल का शिकार कराता है पाकिस्तान; हर जानवर के लिए मांग रहा इतनी रकम

    Updated: Mon, 08 Sep 2025 09:10 PM (IST)

    पाकिस्तान अपनी आर्थिक तंगी मिटाने के लिए अब जानवरों की जान पर भी सौदेबाजी कर रहा है।निशाने पर है उसका ही नेशनल एनिमल मार्खोर (Markhor Hunting Price)। पाकिस्तान सरकार ने विदेशी अमीरों के लिए इसके शिकार की नीलामी कर दी है. 2025-26 सीजन में एक मार्खोर को मारने का परमिट 3.70 लाख डॉलर (करीब 3 करोड़ रुपए) में बिका है। यह अब तक का सबसे ऊंचा दाम है।

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    पैसों के लिए PoK में नेशनल एनिमल का शिकार कराता है पाकिस्तान।

    नई दिल्ली| आर्थिक तंगी से जूझ रहा पाकिस्तान पैसों के लिए किस हद तक गिर सकता है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह अपने दुर्लभ जीव का शिकार करा रहा है। यह दुर्लभ जीव मार्खोर (Markhor) है, जो पाकिस्तान का नेशनल एनिमल है। इसे पाकिस्तान की शान भी माना जाता है।

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    दुर्लभ और खूबसूरत सींगों वाली यह जंगली बकरी हिमालय और काराकोरम की ऊंचाइयों पर पाई जाती है। लेकिन पाकिस्तान सरकार ने विदेशी अमीरों के लिए इसके शिकार की नीलामी कर दी है। पाकिस्तान ने 2025-26 सीजन में एक मार्खोर को मारने का परमिट 3.70 लाख डॉलर (करीब 3.25 करोड़ रुपए) में जारी किया है। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा है कि यह अब तक का सबसे ऊंची कीमत है। 

    क्यों बिकता है मार्खोर?

    गिलगित-बाल्टिस्तान और PoK में हर साल 'ट्रॉफी हंटिंग सीजन' होता है। इस बार 2025-26 सीजन के लिए परमिट बेचे गए। इसमें पाकिस्तान का नेशनल एनिमल मार्खोर सबसे महंगा साबित हुआ। बोली लगाकर इसका शिकार करने की परमिशन सिर्फ अमीर शिकारीयों को दी जाती है। पिछले साल यही परमिट 2.71 लाख डॉलर में बिका था, लेकिन इस बार कीमत रिकॉर्ड तोड़ गई।

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    मार्खोर इतना महंगा क्यों?

    मार्खोर हिमालय, काराकोरम और हिंदुकुश की ऊंची पहाड़ियों पर पाया जाता है। इसकी ऊंची सीढ़ीनुमा सींग और लंबी दाढ़ी इसे और भी खास बनाती है। इसे शिकार करना बेहद मुश्किल है, क्योंकि यह 3,000 से 4,000 मीटर की ऊंचाई पर रहता है। वहां पहुंचना और फिर इसका शिकार करना बड़ी चुनौती है। इसी वजह से इसे 'Everest of Hunting' भी कहा जाता है।

    सरकार कैसे कमाती है पैसा?

    हर साल पाकिस्तान सीमित संख्या में बुजुर्ग और प्रजनन क्षमता खो चुके नर मार्खोर के शिकार की इजाजत देता है। इसकी नीलामी से होने वाली आमदनी का 80% हिस्सा स्थानीय गांवों को दिया जाता है। दावा है कि इस पैसे से स्कूल, अस्पताल और सड़कें बनती हैं। बाकी 20% रकम सरकार अपने पास रखती है।

    क्या बचा पाएगा ये सिस्टम?

    मार्खोर कभी विलुप्त होने की कगार पर था। लेकिन 1990 में शुरू हुए इस कार्यक्रम से इनकी संख्या अब बढ़कर 5,000 से ज्यादा हो गई है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने भी 2015 में इसका दर्जा 'Endangered' से घटाकर 'Near Threatened' कर दिया।

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    भले ही पाकिस्तान इसे 'कंजर्वेशन प्रोग्राम' बताता है, लेकिन हकीकत यह है कि उसके लिए यह सिर्फ डॉलर कमाने का तरीका बन गया है। विदेशी शिकारी शौक पूरा करते हैं, पाकिस्तान सरकार तिजोरी भरती है और दुर्लभ जानवर गोलियों का शिकार बनते हैं।