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    चिप्स, नमकीन, बिस्किट से मसाले तक, 5 और 10 रुपए में क्यों आते हैं इनके पैकेट? छोटे दामों में छिपा है बड़ा राज!

    Updated: Wed, 17 Sep 2025 09:09 PM (IST)

    5 और 10 रुपए सिर्फ दाम नहीं बल्कि भारत के एफएमसीजी (FMCG) सेक्टर की रीढ़ हैं। कंपनियां कितनी भी बड़ी क्यों न हों इन दो प्राइस पॉइंट्स को कभी नहीं छोड़तीं। 5 और 10 रुपए (5 and 0 rupee strategy) ऐसे दाम हैं जिन्हें देश का हर उपभोक्ता आसानी से समझता है और स्वीकार करता है। कोई बड़ा हिसाब-किताब नहीं करना पड़ता। इससे कंपनियों को बड़ा मुनाफा भी होता है।

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    बिस्किट, नमकीन से लेकर मसाले तक... 5 और 10 रुपए में क्यों आते हैं इनके पैकेट?

    नई दिल्ली| अगर आप रोजाना चाय के साथ बिस्किट खाते हैं या बच्चों के लिए चॉकलेट खरीदते हैं, तो आपने एक बात नोटिस की होगी। ज्यादातर पैकेट 5 रुपए या फिर 10 रुपए (Parle Rs 5 biscuit strategy) में ही मिलते हैं। ये सिर्फ दाम नहीं, बल्कि भारत के एफएमसीजी (FMCG) सेक्टर की रीढ़ हैं। कंपनियां कितनी भी बड़ी क्यों न हों, इन दो प्राइस प्वाइंट्स को कभी नहीं छोड़तीं।

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    दरअसल, 5 और 10 रुपए ऐसे दाम हैं, जिन्हें देश का हर उपभोक्ता आसानी से समझता है और स्वीकार करता है। कोई बड़ा हिसाब-किताब नहीं करना पड़ता। जेब से सिक्का निकालो और सामान ले लो। खासकर ग्रामीण और छोटे कस्बों में जहां लोग रोजाना या हफ्ते-दर-हफ्ते कैश में खरीदारी करते हैं, वहां ये दाम भरोसे और सुविधा का दूसरा नाम बन चुके हैं।

    क्यों नहीं बदलते ये दाम?

    सरकार ने हाल ही में जीएसटी (GST Council Meeting) में कई चीजों पर टैक्स कम किया है। अब कंपनियों को फायदा मिला है। लेकिन फिर भी वे 5 और 10 रुपए की सीमा तोड़ने को तैयार नहीं हैं। दाम घटाने की बजाय वे पैक का वजन बढ़ा देती हैं। यानी पहले जिस पैकेट में 40 ग्राम बिस्किट था, अब वही 10 रुपए में 50 ग्राम मिल सकता है।

    असल में दाम बदलने का मतलब सिर्फ एमआरपी बदलना नहीं होता। इसके साथ पैकेजिंग, डिस्ट्रीब्यूशन और रिटेल डिस्प्ले सब कुछ बदलना पड़ता है। यही वजह है कि कंपनियां इन दामों से छेड़छाड़ नहीं करतीं।

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    ब्रांड से ज्यादा दाम पर भरोसा

    इस मार्केट में दाम ही सबसे बड़ा ब्रांड है। मान लीजिए अगर कोई कंपनी बिस्किट का पैक 12 रुपए में बेचने लगे और दूसरी कंपनी वही बिस्किट 10 रुपए में देती रहे, तो ग्राहक तुरंत दूसरी कंपनी की ओर चला जाएगा। यानी यहां लॉयल्टी पैसों की है, नाम की नहीं।

    यही वजह है कि पारले जैसी कंपनियां दशकों से 5 रुपए और 10 रुपए के पैक बनाए हुए हैं। इससे उनका सामान छात्रों, मजदूरों और आम परिवार तक आसानी से पहुंचता है। बड़ी कंपनियां जहां प्रीमियम प्रोडक्ट्स पर ध्यान देती हैं, वहीं पारले जैसे ब्रांड वॉल्यूम से कमाई करते हैं।

    क्यों जरूरी है ये प्राइस पॉइंट?

    पूरी सप्लाई चेन 5 और 10 रुपए पर ही खड़ी है। पैकेजिंग से लेकर कार्टन साइज और किराना दुकानों की शेल्फ तक सब कुछ इन्हीं पर ट्यून है। दुकानदार भी इन छोटे पैक्स को इसलिए पसंद करते हैं, क्योंकि ये जल्दी बिक जाते हैं और ग्राहक बार-बार लौटते हैं।

    10 रुपए बना न्यू नॉर्मल

    पहले कभी एक या फिर दो रुपए में सामान मिल जाता था। फिर 5 रुपए ने जगह बनाई। अब धीरे-धीरे 10 रुपए सबसे पॉपुलर प्राइस पॉइंट बन गया है। खासकर स्नैक्स, टॉयलेट्रीज और पर्सनल केयर में। यह दिखाता है कि लोगों की खरीद क्षमता बढ़ी है और अब वे 10 रुपए को बेसिक मानने लगे हैं।

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    भारत जैसे देश में जहां करोड़ों लोग कम आय वर्ग में आते हैं, वहां छोटे दाम ही बड़े कारोबार की कुंजी हैं। 5 और 10 रुपए न सिर्फ कीमतें हैं, बल्कि आम जनता के लिए भरोसे और सुविधा का पैमाना भी हैं। यही वजह है कि आने वाले सालों में भी ये दाम भारतीय एफएमसीजी सेक्टर का आधार बने रहेंगे।