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    क्यों गुमनाम हुई ग्रीटिंग कार्ड बनाने वाली कंपनी, Archies Limited के बनने और बिगड़ने की दास्तान

    Updated: Wed, 24 Sep 2025 05:16 PM (IST)

    आर्चीज के ग्रीटिंग कार्ड्स के पीछे अनिल मूलचंदानी का दिमाग था। दिल्ली के कनॉट प्लेस में सड़क पर पोस्टर बेचने वाले इस शख्स को यह आइडिया आया और 1980 में उन्होंने ग्रीटिंग कार्ड बनाने की शुरुआत कर दी। देशभर में आर्चीज के ग्रीटिंग कार्ड्स की डिमांड इतनी बढ़ी कि 90 के दशक के आखिरी तक देशभर में आर्चीज़ के 300 से ज़्यादा फ्रैंचाइज़ी और 100 से ज़्यादा स्टोर थे।

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    आर्चीज ग्रीटिंग कार्ड का बिजनेस दिल्ली के अनिल मूलचंदानी ने शुरू किया था।

    नई दिल्ली। आज से तीस साल पहले 90 के दशक में ग्रीटिंग्स कार्ड को लेकर युवाओं में बड़ा क्रेज था। किसी को बधाई देनी हो या किसी से दिल की बात कहनी हो..ऐसे तमाम इमोशन्स को ग्रीटिंग कार्ड्स के जरिए पूरा किया जाता था, और जब भी ग्रीटिंग कार्ड की बात आती थी तो आर्चीज (Archies Greeting Card) का नाम लोगों की जुबां पर आ जाता था। दरअसल, उस वक्त में ग्रीटिंग कार्ड्स के दौर में आर्चीज एकमात्र बड़ा ब्रांड था और बाजार उसके कार्ड्स से भरे पड़े रहते थे।

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    आज तो Gen Z इंस्टाग्राम रील्स और व्हाट्सएप पर विशेज़ शेयर कर देते हैं, लेकिन 30 साल पहले मिलेनियल्स के पास ग्रीटिंग कार्ड विशेज सेंड करने का बड़ा जरिया था। यही वजह थी कि आर्चीज के ग्रीटिंग्स कार्ड्स को लेकर उस समय बच्चों से लेकर युवाओं तक में जबरदस्त क्रेज था। लेकिन, ऐसा क्या हुआ कि अब यह ग्रीटिंग कार्ड बनाने वाली कंपनी बाजार से गुमनाम हो गई। आइये आपको बताते हैं इस ग्रीटिंग कार्ड कंपनी के बनने और बिगड़ने की कहानी...

    किसने बनाया आर्चीज ब्रांड

    आर्चीज की शुरुआत साल 1979 में दिल्ली में शुरू हुई। ग्रीटिंग कार्ड बनाने का यह आइडिया अनिल मूलचंदानी को आया। उन दिनों फिल्मों को लेकर लोगों की दीवानगी को देखते हुए उन्होंने दिल्ली के कनॉट प्लेस में फुटपाथ पर पोस्टर बेचने का काम शुरू किया।

    इस कामयाबी से प्रेरित होकर अनिल मूलचंदानी ने सॉन्ग बुक बनाने शुरू कर दिया। इस आइडिया को भी जबरदस्त कामयाबी मिली। इसके बाद 1981-82 में अनिल मूलचंदानी ने दिल्ली के कमला नगर में एक छोटी सी दुकान खोलने के लिए एक रिश्तेदार से 5,000 रुपये उधार लिए, और अपने बिजनेस को बढ़ाया।

    सॉन्ग बुक्स के बाद ग्रीटिंग कार्ड

    इस शॉप का नाम उन्होंने आर्चीज गैलरी रखा और यहां पोस्टर और सॉन्ग बुक्स के अलावा ग्रीटिंग कार्ड भी बेचे। यहीं से आर्चीज ग्रीटिंग कार्ड्स के बिजनेस की शुरुआत हो गई। अनिल मूलचंदानी को अंदाजा नहीं था कि एक दिन उनका यह ग्रीटिंग कार्ड बिजनेस करोड़ों के कारोबार में तब्दील हो जाएगा।

    आर्चीज के ग्रीटिंग्स कार्ड के लिए मुंबई, कोलकाता और पंजाब जैसी जगहों से ऑर्डर आने लगे। 80 के दशक में शुरुआत के बाद 90 के दौर में इस ग्रीटिंग कार्ड ब्रांड का तेजी से विस्तार हुआ। आर्चीज़ ने भारत में अपने स्टोर खोलने के लिए सबसे पहले फ्रैंचाइज़ी मॉडल पेश किया। 90 के दशक के आखिरी तक देशभर में आर्चीज़ के 300 से ज़्यादा फ्रैंचाइज़ी और 100 से ज़्यादा अपने स्टोर थे।

    क्यों धीरे-धीरे गुमनाम हुई कंपनी

    स्मार्टफोन्स के बढ़ते चलन से ग्रीटिंग कार्ड्स का इस्तेमाल धीरे-धीरे कम होने लगा है। हालांकि, आर्चीज, कार्ड्स के अलावा, गिफ्ट और टॉयज भी बनाती है, ऐसे में कंपनी का बिजनेस जारी रहा, लेकिन ग्रीटिंग्स कार्ड की डिमांड कम होने लगी।

    कोविड-19 के आने तक गिफ्ट आइट्मस को लेकर आर्चीज का बिजनेस तेजी से बढ़ रहा था। लेकिन, कोरोना महामारी के चलते शॉप के महंगे किराये और उच्च लागत के चलते बिजनेस ऑफलाइन से ऑनलाइन मोड पर आ गया।

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    एक समय था जब आर्चीज लिमिटेड का मार्केट कैप 100 करोड़ के पार चला गया था लेकिन अब शेयरों की मौजूदा कीमत के लिहाज से बाजार पूंजीकरण 73 करोड़ रुपये रह गया है।